Saturday 27 April 2013



भय नाशक महाकाली साधना 




हमारे साधक भाईयों के मन में सदा उग्र साधना करने की लालसा रहती ही है।परन्तु कई बार दुसरे साधको से साधना के उग्र अनुभव सुन वे डर जाते है।और इसी कारन साधना करने का मन त्याग देते है।एक बात यहाँ कहना चाहुगा की हम सिर्फ दुसरो से साधना ले पर अनुभव स्वयं करे।क्युकी हर साधक का अनुभव एक जैसा नहीं होता है।और डरते रहंगे तो साधना कैसे होगी।ये तो वही बात हुई न की में तैरना तो चाहता हु पर समंदर में जाऊंगा नहीं क्युकी मुझे पानी से डर लगता है।किनारे पर रहकर तो चार युग भी बीत जाये तो हम तैर न सकेंगे।अतः सागर में कूदने की हिम्मत जुटाए और कूद जाये तैरना स्वयं आ जायेगा।प्रस्तुत साधना साधक के जीवन से उग्र साधनाओ का भय समाप्त कर उसे निडर बनाती है।उग्र साधनाओ में साधक निर्भय होकर साधना कर पाता है।साथ ही इस साधना के प्रभाव से साधक के ज्ञात अज्ञात शत्रुओ का भी नाश होता है।अतः देर कैसी माँ काली की इस साधना को कर निर्भय हो जाये ताकि माँ को गर्व हो आपको अपनी संतान कहने में।

साधना विधि: ये साधना कृष्णा पक्ष की अष्टमी को आरम्भ करे।समय रात्रि 10 के बाद का हो।आसन तथा वस्त्र आपके लाल हो या काले।आपका मुख उत्तर की और हो।यदि आपके आसन वस्त्र लाल है तो माला मुंगे की हो या रुद्राक्ष की,अगर काले है तो काले हकिक की माला से जाप होंगे।अपने सामने माँ काली का कोई भी चित्र या यन्त्र स्थापित करे। अब गुरु पूजन कर एक माला गुरु मंत्र की करे तथा सफलता की प्रार्थना करे।गणेश पूजन तथा भैरव पूजन सम्प्पन करे।अब माँ का पूजन करे,तील के तेल का दीपक लगाये जो की मिटटी के दीपक में हो।भोग में कोई भी फल या मिठाई अर्पण करे,जो साधक को स्वयं ग्रहण करना होगी।हाथ में जल लेकर संकल्प ले की, में ये साधना अपने आतंरिक भय की समाप्ति के लिये कर रहा हु।महाकाली तथा सदगुरुदेव मुझ पर कृपा कर मुझे सफलता प्रदान करे। अब 21 माला निम्न मंत्र की करे,उसके बाद घी में पञ्च मेवा मिलाकर 108 आहुति दे।अंत में एक अनार फोड़कर उसका रस हवन कुंड में निचोड़ दे तथा अनार भी उसी में डाल दे,इस तरह ये एक दिवसीय साधना संपन्न होती है।आप स्वयं इसके प्रभाव अनुभव करने लगेंगे।साधक चाहे तो बार बार इस साधना को कर सकता है,जिससे इसका प्रभाव बना रहे।माला का विसर्जन न करे।अन्य साधना में प्रयोग की जा सकती है।

मंत्र: ॐ क्रीं क्रीं महाकाली भयनिवारिणी सर्व शक्ति दात्री क्रीं क्रीं नमः

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