Sunday 23 February 2014

भस्मेश्वर प्रयोग



 मित्रो कुछ दिन पहले शिवरात्रि हेतु आप सभी को अघोर मुंडेश्वर साधना दी गयी.जो कि रात्रिको संपन्न कि जाने वाली साधना है.आज आप सभी को शिवरात्रि पर किया जाने वाला भसमेश्वर प्रयोग दिया जा रहा है.मित्रो इस साधना के माध्यम से साधक के सभी पापो का नाश होता है.भगवान भस्मेश्वर कि कृपा साधक पर होती है.इस साधना को में आज इसलिए दे रहा हु,क्युकी ये साधना शिवरात्रि पर दिन में कि जाती है.और ये एक दिवसीय प्रयोग है.और साधना देने के पीछे एक मुख्य कारण ये है कि इनकी साधना से सर्व प्रथम आप स्वयं को ब्रह्म काल में शुद्ध करे,इसके बाद आप रात्रि में अघोर मुंडेश्वर साधना करे.ताकि आदि देव कि कृपा से आपकी साधना शीघ्रता से सफल हो.क्युकी जब तक आतंरिक शुद्धता न हो बाहरी क्रिया व्यर्थ ही रहती है.इस साधना के माध्यम से आपके भीतर एक विशेष ऊर्जा का संचार होता है.और यही ऊर्जा आपको शुद्ध करती है.जाने अनजाने हमसे पाप होते ही है.इस साधना के माध्यम से वो पाप क्षण भर में भस्म हो जाते है.साधक का हृदय शुद्ध हो जाता है तथा वो साधना मार्ग में प्रगति प्राप्त करता है.साधना में हमसे जो त्रुटि आदि होती है वो भी शिव कृपा से क्षमा कर दी जाती है.तथा साधक एक दिव्यता को प्राप्त करता है.जिन साधको कि मानसिकता अस्थिर होती है उनकी अस्थिरता को भस्म करती है ये साधना और बुद्धि को स्थिर कर साधना मार्ग पर बढ़ने कि प्रेरणा प्रदान करती है.शिवरात्रि से ही तंत्र माह आरम्भ हो रहा है.बाद में होलाष्टक और होली है.मित्रो इस समय साधक तीव्र तंत्र साधनाये करते है.उन साधनाओ में सुरक्षा मिलती है भस्मेश्वर  कि कृपा से.अधिक लिखने से कोई लाभ नहीं है.आप साधना करे और शिव कृपा प्राप्त करे.साधना आप शिवरात्रि कि प्रातः अर्थात ब्रह्म मुहर्त में करे.स्नान कर श्वेत अथवा पीले वस्त्र धारण करे.आपने जो वस्त्र धारण किये है उसी  रंग का आसन भूमि पर बिछाये और पूर्व कि और मुख कर बैठ जाये।जिस रंग के आपने वस्त्र पहने हो उसी रंग का वस्त्र आप सामने बाजोट रखकर उस पर बिछा दे.अब एक अक्षत कि ढेरी बनाये और उस पर आपके पास जो भी शिवलिंग हो उसे स्थापित करे.सर्व प्रथम आप अपने गुरुदेव का पूजन कर गुरु मंत्र का यथा शक्ति जाप करे.फिर गणपति पूजन करे.तत्पश्चात शिवलिंग का सामान्य पूजन करे.शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित करे,तथा भोग में कोई भी मिष्ठान्न अर्पित करे.इसके बाद गाय के कंडे ( उपले ) से बनी भस्म ले.ये भस्म आप एक दिन पहले भी तैयार  करके रख सकते है.और इसे थोड़ी अधिक मात्रा  में ही तैयार करे.अब भसमेश्वर मंत्र का जाप करते जाये और भस्म शिवलिंग पर अर्पित करते जाये।एक बार मंत्र पड़े और एक चुटकी भस्म अर्पित कर दे.इसी प्रकार ये कार्य आपको कम से कम ७५ मिनट करना होगा इससे अधिक हो जाये तो कोई समस्या नहीं है परन्तु इससे कम न हो.जब ये क्रिया पूर्ण हो जाये तो अग्नि प्रज्वलित कर इसी मंत्र से शुद्ध घी,गूगल,और काले तील मिलाकर १०८ आहुति अग्नि में प्रदान करे.आहुति पूर्ण होने के बाद इस मंत्र को पड़ते हुए एक निम्बू काटे  और मंत्र पड़ते हुए ही निम्बू अग्नि में निचोड़ दे.

भस्मेश्वर मंत्र 

ॐ ह्रौं हूं सर्वशक्ति प्रदाय भस्मेश्वराय हूं ह्रौं फट 

इस प्रकार ये प्रयोग पूर्ण होता है.कुछ देर पश्चात् अथवा शाम को बाजोट पर बिछे वस्त्र में ही अक्षत और भस्म को बांध दे और अपने सर पर से ७ बार वारकर कही निर्जन स्थान में,पीपल वृक्ष के निचे रख दे अथवा जल प्रवाह कर दे.भोग में अर्पित कि गयी मिठाई स्वयं खाये किसी अन्य को न दे.मित्रो साधना करे और लाभ प्राप्त कर अपने जीवन को सद्गति प्रदान करे.

साथ ही एक निवेदन और करना चाहता हु कि पोस्ट से सम्बंधित सभी प्रश्न आप पोस्ट के निचे ही कमेंट बॉक्स में पूछे क्युकी इनबॉक्स में सभी के उत्तर देना थोडा मुश्किल हो जाता है.साथ ही यदि आप पोस्ट पर प्रश्न पूछते है तो उससे सभी को एक साथ उत्तर मिल जाते है.इससे दुसरो का,आपका तथा मेरा समय बच जाता है.अतः निवेदन है कि पोस्ट से सम्बंधित प्रश्न पोस्ट के निचे ही पूछे कमेंट में.आप सभी कि साधना सफल हो इसी कामना के साथ.

जय अम्बे 

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Tuesday 18 February 2014

शिवरात्रि और अघोर मुंडेश्वर प्रयोग


मित्रो शिवरात्रि निकट ही है,तंत्र के जनक और समस्त संसार के गुरु भगवान शिव कि इस दिन हर कोई साधना करना चाहता है.और कई साधको ने इसकी तैयारी पहले से ही कर रखी होगी।भगवान शिव ही एक ऐसे देवता है जिनकी पूजा मनुष्य ही नहीं अपितु इतर योनियां भी करती है.देवता,मनुष्य तथा दानव भी शिव आराधना नित्य करते है.शिव को कई कई नामो  से पुकारा जाता है.भूतेश्वर,अघोरेश्वर,पिपलेश्वर,  आदि सहस्त्रो नाम है जिनके द्वारा शिव कि स्तुति कि जाती है.इन नामो  में से ही एक नाम है " मुंडेश्वर " , मुंडेश्वर नाम का यदि हम शाब्दिक अर्थ निकाले  तो केवल इतना ही निकलता है कि जो समस्त मुंडो अर्थात मस्तक के ईश्वर है वही मुंडेश्वर है.परन्तु इस नाम में कई सारे  रहस्य  छुपे हुए है.तंत्र मार्ग में तो मुंडेश्वर पूजन का बहुत महत्व है.हमारा मुंड अहंकार का प्रतिक है,शंका कुशंका,तर्क कुतर्क हमारे मुंड के भीतर ही तो उत्पन्न होते है.यही मुंड है जो नित्य नविन सोचता है और यही मुंड है जो हम पर शासन  करता है.और इस पर शासन करते है भगवान मुंडेश्वर। मित्रो इनकी साधना के कई लाभ है.इनके साधक कि बुद्धि से अस्थिरता समाप्त हो जाती है.तथा साधक के विचारो को सही तथा उचित दिशा प्राप्त होती है.सदा अकारण चिंता से ग्रसित रहने वाली बुद्धि को शांति मिलती है मुंडेश्वर कि साधना से.साथ ही साधक को आर्थिक कष्टो एवं शत्रुओं के षड़यंत्र से मुक्ति मिलती है.यदि साधक पर कोई तंत्र प्रयोग किया गया हो तो इस प्रयोग के माध्यम से साधक के ऊपर से वो बाधा  भी समाप्त हो जाती है.रुके हुए कार्यो को गति मिलती है मुंडेश्वर साधना से.मित्रो अघोर मार्ग में प्रभु को अघोर मुंडेश्वर के नाम से जाना जाता है.अघोर वो जो मुक्त हो बंधनो से,मुंडेश्वर मुक्त है हर बंधन से,और इनका साधक भी मुक्त हो जाता है व्यर्थ कि चिंताओं से,शत्रुओं से,दरिद्रता से,अघोर मुंडेश्वर आपको मुक्त होकर जीना सिखाते है साथ ही सिखाते है कि मुक्त रहते हुए भी किस प्रकार आनंद लिया जाये इस संसार का.मित्रो आज हम आपको अघोर मुंडेश्वर कि  साधना दे रहे है.ये साधना अघोर मार्ग कि है तथा इनकी साधना में जो मंत्र प्रयोग किया जायेगा वो अघोर मार्ग का ही शाबर मंत्र होगा।प्रस्तुत साधना आपको शिवरात्रि को रात्रि ११ बजे के बाद आरम्भ करनी होगी।आपके आसन वस्त्र काले हो तो अति उत्तम है अन्यथा श्वेत या लाल वस्त्र भी लिए जा सकते है.स्नान कर दक्षिण कि और मुख कर बैठ जाये।अब गेहू के आटे में थोड़ी सी भस्म मिलाये ये भस्म आप गाय के उपले ( कंडे ) को जलाकर बनाये।और उसे ही आटे में मिलाये ये सम्भव न होतो आप धुप बत्ती से भी भस्म बना सकते है.भस्म और आटे को मिलाकर अब इसे जल तथा अनार के रस से गुथ ले और एक शिवलिंग का निर्माण करे.ये निर्माण आप पहले ही करके रख ले अर्थात दिन में भी किया जा सकता है.या घर कि किसी महिला  से भी निर्मित करवाया जा सकता है.अब आप साधना के समय अपने सामने भूमि पर ही एक काला वस्त्र बिछा दे और वस्त्र के मध्य काले तील कि एक ढेरी बनाकर उस पर इस शिवलिंग को स्थापित कर दे.अब शिवलिंग के चारो और एक एक उड़द कि ढेरी बना दे,अर्थात आपको चार ढेरी बनाना है.अब पानी वाले नारियल कि सारी  जटा निकाल ले और बिना जटा वाले इस नारियल को उड़द कि ढेरी पर स्थापित कर दे.इस प्रकार आपको उड़द कि चारो ढेरी पर एक एक नारियल स्थापित करना होगा।अब शिवलिंग का सामान्य पूजन करे.तील के तेल का दीपक प्रज्वलित करे.भोग में तले हुए पापड़,उड़द के बड़े या बेसन के पकोड़े अर्पित करे,एक पात्र में थोडा दूध और गुड़ मिलाकर भोग रूप में अर्पित करे.इस पूजन के पश्चात् अब " ॐ अघोर मुंडेश्वराय हूं " मंत्र का जाप करते हुए २१ बार प्रत्येक नारियल पर बिंदी लगाये।अर्थात हर नारियल पर मंत्र पड़ते हुए सिन्दूर कि २१ बिंदी लगानी है.इस क्रिया के बाद थोड़े काले तील ले और उपरोक्त मंत्र को पड़ते हुए शिवलिंग पर अर्पित करे इस प्रकार शिवलिंग पर आपको उपरोक्त मंत्र पड़ते हुए १०८ बार तील अर्पित करना होंगे।जब ये क्रिया पूर्ण हो जाये तब शाबर अघोर मुंडेश्वर मंत्र का जाप बिना माला के एक घंटे तक करे.इसमें आपको एक बार मंत्र पड़ना है और थोड़े काले तील मंत्र के अंत में शिवलिंग पर अर्पित करना है.इस प्रकार एक घंटे तक ये जप तथा तील अर्पित करने कि क्रिया करते रहे.जब ये क्रिया पूर्ण हो जाये।तो अग्नि प्रज्वलित करे और शाबर अघोर मुंडेश्वर मंत्र के अंत में स्वाहा लगाकर २१ आहुति घी तथा गूगल को मिलाकर प्रदान करे.जिन लोगो के लिए आहुति सम्भव ना हो वे मंत्र को पुनः २१ बार पड़कर काले तील अर्पित कर दे शिवलिंग पर.परन्तु आहुति दी जाये तो अधिक उत्तम रहता है.आहुति पूर्ण होने के बाद.वस्त्र पर से एक नारियल ले और " हूं हूं अघोर मुण्डेश्वराय हूं हूं फट " मंत्र का उच्चारण करते हुए नारियल फोड़ दे और शिवलिंग के समक्ष अर्पित कर दे,इसी प्रकार चारो नारियल आपको अर्पित करने होंगे।इस प्रकार ये लघु अघोर मुंडेश्वर प्रयोग संपन्न हो जायेगा। अगले दिन स्नान आदि करके समस्त सामग्री उसी वस्त्र में बांधकर किसी निर्जन स्थान पर रख आये या जल प्रवाह कर दे.

अघोर मुंडेश्वर मंत्र 

ॐ ह्रौं ह्रौं ह्रौं अघोर अघोरेश्वर दरिद्रता हरे कारज  सिद्ध करे,धन बरसावे सत्रु मारे ,हा हाकार करे शत्रुन,लगी हो अघोर मुंडेश्वर धुन,सकल कारज सिद्ध करे,मुंडेश्वर किरपा करे धन दे मान दे सुखन कि खान दे इतनी अरज मुंडेश्वर समपूरण भई दुहाई अघोर गौरा कि.

मंत्र जैसा लिखा गया है वैसे ही पड़े अपनी और से कोई परिवर्तन न करे.ये साधना आप शिवरात्रि के बाद भी किसी भी अमावस्या को भी कर सकते है,जिन साधको को " शिव शक्ति महाअघोर कवच " भेजे गए है वे कवच तथा साथ  में भेजे  गए सिद्धि प्रद रुद्राक्ष को एक लाल वस्त्र में बांधकर अपनी दायी भुजा या कलाई पर बांध ले इस कवच कि सहायता से साधक को साधना का पूर्ण फल प्राप्त होगा तथा वो अघोरेश्वर कि विशेष कृपा का पात्र होगा।बाद में कवच तथा रुद्राक्ष को सुरक्षित रख ले.जिनके पास पारद शिवलिंग हो वे लोग पारद शिवलिंग पर ही ये क्रिया संपन्न कर सकते है.जिनके पास कवच ना हो वे ऐसे ही इस साधना को करे.ये छोटा सा प्रयोग आपके जीवन कि कई समस्यायों को दूर कर देगा।साधना के पहले शिव कवच,या दुर्गा कवच का एक पाठ अवश्य कर ले.साधना के मध्य घबराहट,बेचेनी,थकान,चक्कर आना,या पसीना आने जैसी क्रिया हो सकती है तथा सर में भारीपन हो सकता है.परन्तु चिंता ना करते हुए साधना करे क्यूकि ये विकारो के बाहर  आने कि क्रिया है.आप सभी साधना में सफलता प्राप्त करे तथा आप सभी पर आशुतोष भगवान शंकर कि कृपा हो इसी कामना के साथ.

जय अम्बे 

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Friday 7 February 2014

छोटी पर आवश्यक बाते

साधको ये बाते छोटी छोटी तो अवश्य है परन्तु आपको यदि इन बातो का ज्ञान नहीं है.तो आपको साधना में असफलता का मुह देखना पड़ सकता है.अतः इन्हे अवश्य याद रखे.

१. जिस आसन पर आप अनुष्ठान,पूजा या साधना करते है उसे कभी पैर से नहीं सरकाना चाहिए।कुछ लोगो कि आदत होती है कि आसन पर बैठने के पहले खड़े खड़े ही आसन को पैर से सरका कर अपने बैठने के लिए व्यवस्थित करते है.ऐसा करने से आसन दोष लगता है और उस आसन पर कि जाने वाली साधनाये सफल नहीं होती है.अतः आसन को केवल हाथो से ही बिछाये।

२. अपनी जप माला को कभी खुटी या कील पर न टांगे,इससे माला कि सिद्धि समाप्त हो जाती है.जप के पश्चात् या तो माला को किसी डिब्बी में रखे,गौ मुखी में रखे या किसी वस्त्र आदि में भी लपेट कर रखी जा सकती है.जिस माला पर आप जाप कर रहे है उस पर किसी अन्य कि दृष्टि या स्पर्श न हो इसलिए उसे साधना के बाद वस्त्र में लपेट कर रखे.इससे वो दोष मुक्त रहेगी।साथ ही कुछ लोगो कि आदत होती है जिस माला से जप करते है उसे ही दिन भर गले में धारण करके भी रहते है.जब तक किसी साधना में धारण करने का आदेश न हो.जप माला को कभी धारण ना करे.

३. साधना के मध्य जम्हाई आना,छिक आना,गैस के कारन वायु दोष होना,इन सभी से दोष लगता है और जाप  का पुण्य क्षीण होता है.इस दोष से मुक्ति हेतु आप जप करते समय किसी ताम्र पात्र में थोडा जल तथा कुछ तुलसी पत्र डालकर रखे.जब भी  आपको जम्हाई या छीक आये या वायु प्रवाह कि समस्या हो,तो इसके तुरंत बाद पात्र में रखे जल को मस्तक तथा दोनों नेत्रो से लगाये इससे ये दोष समाप्त ओ जाता है.साथ ही साधको को नित्य सूर्य दर्शन कर साधना में उत्पन्न हुए दोषो कि निवृति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।इससे भी दोष समाप्त हो जाते है.साथ ही यदि साधना काल में हल्का भोजन लिया जाये तो इस प्रकार कि समस्या कम ही उत्पन्न होती है.

४. ज्यादातर देखा जाता है कि कुछ लोग बैठे बैठे बिना कारन पैर हिलाते रहते है.या एक पैर के पंजे से दूसरे पैर के पंजे या पैर को आपस   में अकारण रगड़ते रहते है.ऐसा करने से साधको को सदा बचना चाहिए।क्युकी जप के समय आपकी ऊर्जा मूलाधार से सहस्त्रार कि और बढ़ती है.परन्तु सतत पैर हिलाने या आपस में रगड़ने से.वो ऊर्जा मूलाधार पर पुनः गिरने लगती है.क्युकी आप देह के निचले हिस्से में मर्दन कर रहे है.और ऊर्जा का सिद्धांत है जहा अधिक ध्यान दिया जाये ऊर्जा वहाँ  जाकर स्थिर हो जाती है.इसलिए ही तो कहा जाता है कि जप करते समय आज्ञा चक्र या मणिपुर चक्र पर ध्यान लगाना चाहिए।अतः अपने इस दोष को सुधारे।

५.साधना काल में अकारण क्रोध करने से बचे,साथ ही यथा सम्भव मौन धारण करे.और क्रोध में अधिक ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने से बचे.इससे संचित ऊर्जा का नाश होता है.और सफलता शंका के घेरे में आ जाती है.

६. साधक जितना भोजन खा सकते है उतना ही थाली में ले.यदि आपकी आदत है अन्न जूठा फेकने कि है तो इस आदत में सुधार करे.क्युकी अन्नपूर्णा शक्ति तत्त्व है, अन्न जूठा फेकने वालो से शक्ति तत्त्व सदा रुष्ट रहता है.और शक्ति तत्त्व कि जिसके जीवन में कमी हो जाये वो साधना में सफल हो ही नहीं सकता है.क्युकी शक्ति ही सफलता का आधार है.

७. हाथ पैर कि हड्डियों को बार बार चटकाने से बचे ऐसा करने वाले व्यक्ति अधिक मात्रा  में जाप नहीं कर पाते है क्युकी,उनकी उंगलिया माला के भार  को अधिक समय तक  सहन करने में सक्षम नहीं होती है.और थोड़े जाप के बाद ही उंगलिओ में दर्द आरम्भ हो जाता है.साथ ही पुराणो  के अनुसार बार बार हड्डियों को चटकाने वाला रोगी तथा दरिद्री होता है.अतः ऐसा करने से बचे.

८.मल त्याग करते समय बोलने  से बचे,आज के समय में लोग मल त्याग करते समय भी बोलते है,गाने गुन गुनाते है,गुटखा खाते है,या मोबाइल से बाते करते है.यदि आपकी आदत ऐसी है तो ये सब करने से बचे क्युकी ऐसा करने से जिव्हा संस्कार समाप्त हो जाता है.और ऐसी जिव्हा से जपे गए मंत्र कभी सफल नहीं होते है.आयुर्वेद तथा स्वास्थ्य कि दृष्टि से भी ऐसा करना ठीक नहीं है.अतः ऐसा ना करे.

९. यदि आप कोई ऐसी साधना कर रहे है,जिसमे त्राटक करने का नियम है तो.आप नित्य बादाम के तैल कि मालिश अपने सर में करे.और नाक के दोनों नथुनो में एक एक बूंद बादाम का तेल डाले।इससे सर में गर्मी उत्पन्न नहीं होगी और नेत्रो पर पड़े अतिरक्त भार कि थकान  भी समाप्त हो जायेगी।साथ ही आवला या त्रिफला चूर्ण का सेवन भी नित्य करे तो सोने पर सुहागा।

१०. जप करते समय अपने गुप्तांगो को स्पर्श करने से बचे.साथ ही माला को भूमि से स्पर्श न होने दे.यदि आप ऐसा करते है तो जाप  कि तथा माला कि ऊर्जा भूमि में समा जाती है.

११  जब जाप समाप्त हो जाये तो आसन से उठने के पहले आसन के निचे थोडा जल डाले और इस जल को मस्तक तथा दोनों नेत्रो पर अवश्य लगाये।ऐसा करने से आपके जप का फल आपके पास ही रहता है.यदि आप ऐसा किये बिना उठ जाते है तो आपके जप का सारा पुण्य इंद्र ले जाते है.ये नियम केवल इसलिए ही है कि हम आसन का सम्मान करना सीखे जिस पर बैठ कर जाप किये अंत में उसे सम्मान दिया जाये।

मित्रो ये कुछ नियम थे जिनका पालन हर साधक को करना ही चाहिए।क्युकी ये छोटी छोटी त्रुटियाँ हमें सफलता से कोसो दूर फेक देती है.भविष्य में भी ऐसी कई छोटी छोटी बाते आपके समक्ष रखने का प्रयत्न किया जायेगा।तब तक आप इन नियमो के पालन कि आदत डाले।तथा सदा प्रसन्न रहे इसी कामना के साथ.

जय अम्बे 

Saturday 1 February 2014

शाबर सरस्वती प्रयोग



सरस्वती नमस्तुभ्यं वरदे कामरुपिणि। 

विद्यारंभं करिष्यमी सिद्धिर्भवतु में सदा।।

माता सरस्वती कि कृपा के बिना मनुष्य ही नहीं अपितु 
हर जीव अधूरा ही है.क्युकी यही वो आदिशक्ति है जो सब को विचार करने कि शक्ति प्रदान करती है.स्मरण कि शक्ति प्रदान करती है.जिज्ञासा के भाव भी सरस्वती कि ही कृपा से जाग्रत होते है.अधिक लिखने कि आवश्यकता ही नहीं है,क्युकी माता सरस्वती का जीवन में क्या महत्व है ये सभी जानते है.मित्रो माँ सरस्वती कि साधना का सबसे उत्तम दिवस बसंत पंचमी निकट ही है.और ऐसे श्रेष्ठ समय का आप सभी लाभ उठाना चाहते होंगे।अतः आप  सभी के लिए आज ब्लॉग पर शाबर सरस्वती प्रयोग दिया जा रहा है.इस प्रयोग के माध्यम से साधक माँ सरस्वती कि कृपा का पात्र बन सकता है.मलिन होती बुद्धि को निर्मल किया जा सकता है.जिन साधको कि स्मरण शक्ति दुर्बल होती जा रही है,उन्हें इस प्रयोग के माध्यम से बल मिलता है.तथा साधक ज्ञान मार्ग में प्रगति प्राप्त करता है.अब अधिक लिखने से कोई लाभ नहीं है क्युकी माँ कि कृपा से सभी परिचित है.ये प्रयोग आप बसंत पंचमी के दिन प्रातः ४ से ११ के मध्य कर सकते है या संध्या ७ से ९ के मध्य भी किया जा सकता है.आप इस साधना में श्वेत वस्त्र धारण कर श्वेत आसन पर पूर्व कि और मुख कर बैठे।अपने सामने बाजोट रखकर उसपर श्वेत वस्त्र बिछा दे.तथा अक्षत से वस्त्र पर एक स्वस्तिक बनाये।और उस स्वस्तिक के मध्य एक पानी वाला नारियल रखे.नारियल पर सिंदूर से बीज मंत्र " ऐं " लिखकर ही स्थापित करे.अब स्वस्तिक के चारो कोने पर एक एक दीपक रखकर प्रज्वलित करे.दीपक मिटटी के होने चाहिए और तील का तेल दीपक में डाले।अब नारियल का सामान्य पूजन करे सरस्वती माता का प्रतिक मानकर।भोग में खीर अर्पित करे.जिसे बाद में पुरे परिवार को दिया जा सकता है.स्मरण रखे आप  जो पंचोपचार पूजन करेंगे उसमे एक घी का दीपक अलग से प्रज्वलित करना है.और पांचो दीपक साधना पूर्ण होने तक जलना चाहिए।इसके बाद आप सरस्वती शाबर मंत्र का बिना माला जाप करे और थोड़े थोड़े अक्षत नारियल पर अर्पित करते जाये।ये क्रिया आपको कम से कम एक घंटे तक करनी होगी इससे अधिक साधक कि इच्छा पर निर्भर करता है.जब ये क्रिया पूर्ण हो जाये तो माँ से पुनः आशीर्वाद देने कि प्रार्थना करे.यदि आपने साधना सुबह कि है तो शाम को सारी सामग्री अक्षत,वस्त्र मिटटी के दीपक आदि किसी मंदिर में रख दे या किसी वृक्ष के निचे रख आये.यदि आपने  साधना शाम को कि है तो ये क्रिया अगले दिन करे.इस प्रकार ये लघु परन्तु दिव्य प्रयोग संपन्न होता है.तथा माँ कि कृपा से साधक कि मेधा शक्ति का विकास होता है.

सरस्वती मंत्र 

 ॐ नमो सारसूति मायी,मेधा बड़े करो सवाई,अमृत बरसे बुद्धि का,बाजे डंका सुद्धि का,आदेश आदेश आदेश शिव गोरख जोगी को आदेश 

मंत्र जैसा लिखा गया है वैसा ही जप करे,विधि या मंत्र में अपनी इच्छा से कोई परिवर्तन न करे.आप सभी साधना में सफलता प्राप्त करे इसी कामना के साथ.

जय अम्बे 


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pitambara366@gmail.com

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