Monday 2 March 2015

रसतंत्र और काम रूपिणी प्रयोग 


मनुष्य जितनी प्रगति करता जा रहा है ,उतना ही आलसी भी होता जा रहा है.और साधना क्षेत्र में तो बहुत कम लोग ही है ,जो परिश्रम करते है. वे भी केवल साधनाओं को पड़ते है,और फिर किसी सरल साधना की खोज में निकल जाते है। परन्तु साधना कितनी ही कठिन क्यों न आपको केवल एक कदम ही तो उसकी और बढ़ाना है। बाकि काम तो इष्ट स्वयं कर लेंगे। विशेषकर अगर बात महाविद्या की हो तो,जब भी आप किसी महाविद्या की साधना करते है,तो आरम्भ में अड़चने अवश्य आती है ,किन्तु जैसे जैसे आपका समर्पण बढ़ता जाता है.महाविद्या आपकी और अपना हाथ बढ़ाने लगती है.बस आपमे उतना धैर्य होना चाहिए।भगवती कृपा एक या दो दिन का कार्य नहीं है,अपितु नित्य जब हम माँ के आश्रित हो साधना करते है,तो हम उनकी और शनेः शनेः बढ़ने लगते है। महाविद्या साधना जितनी क्लिष्ट है उतनी ही कल्याणकारी भी है.

रसक्षेत्र में महाविद्या से सम्बंधित कई साधनाए प्राप्त होती है.या यु कहु की सहस्त्रो विधानों से रसक्षेत्र भरा पड़ा है तो अतिश्योक्ति न होगी।प्रस्तुत प्रयोग भगवती कामाख्या से सम्बंधित है.भगवती कामाख्या दसो महाविद्या का मूल है.निसंदेह रसक्षेत्र के सिद्धो ने माँ की साधनाओं पर बहुत कार्य किया और अथक परिश्रम कर हमारे समक्ष उन साधनाओं को लाये,जो कभी ब्रह्माण्ड में केवल नाद के रूप में थी.कामाख्या  साधना महाविद्या साधना की प्रथम सीड़ी है. इनकी साधना से साधक स्वयं को महाविद्या साधना के योग्य बना पाता है.यही वो शक्ति है जो साधक में महाविद्या साधना के लिए ऊर्जा का संचार करती है.इसी कारण रस साधक सबसे अधिक पारद योनि का पूजन करते है.खैर इस विषय पर फिर कभी चर्चा होगी,या होगी भी या नहीं मुझे नहीं पता क्युकी यह अत्यंत गोपनीय तथा गंभीर विषय है.अतः हम कामरूपिणी प्रयोग की और आते है.साधक को इस प्रयोग को तब करना चाहिए जब उसे किसी महाविद्या से सम्बंधित जाप करना हो या कोई लघु प्रयोग करना हो.इस प्रयोग से साधक में सफलता के लिए ऊर्जा का संचार हो जायेगा।तथा वो अपने लक्ष्य की और शीघ्रता से बड़ पायेगा।परन्तु एक बात और यहाँ कहना चाहूंगा की,जिस तरह हर महाविद्या का मूल कामाख्या है,उसी प्रकार हर साधना में सफलता का प्रथम आधार विश्वास है.अतः नास्तिक,गुरुद्रोही,शिव निंदक तथा जो शक्ति में विश्वास न करता हो उसे यह साधना नहीं करनी चाहिए।क्युकी उसका केवल समय ही व्यर्थ होगा।

प्रस्तुत प्रयोग को आप किसी भी अष्टमी को कर सकते है.या किसी भी महाविद्या साधना के एक दिन पहले करना उत्तम होता है.साधक को साधना के एक दिन पहले हल्दी मिश्रित अक्षत लेकर किसी लाल पुष्प के वृक्ष के पास जाना चाहिए,और इसे उस वृक्ष की जड़ में अर्पित करते हुए कहना चाहिए की.कामरूपिणी प्रयोग हेतु में कल आपकी एक डाली  लेने आऊंगा।अगले दिन जाकर वृक्ष को नमन करे और कहे,की कामरूपिणी प्रयोग हेतु आप मुझे अपनी एक डाली प्रदान करे.और एक डाली साधक तोड़ लाये। अब रात्रि में साधक स्नान कर लाल वस्त्र धारण कर,लाल आसन पर उत्तर की और मुख कर बैठे।भूमि को जल से स्वच्छ कर कुमकुम से एक त्रिकोण बनाये यह त्रिकोण उधर्वमुखी होना चाहिए। अब त्रिकोण के मध्य हल्दी से एक बिंदु बनाये जो थोड़ा बड़ा होना चाहिए।इस बिंदु पर अक्षत की एक ढेरी बनाकर उस पर महाविद्या सिद्धि गोलक स्थापित करे.अब त्रिकोण के तीनो कोनो पर मिट्टी का एक एक दीपक रखकर प्रज्वलित करे.दीपक में तिल के तेल का प्रयोग करे,तथा तीनो दीपक की बत्ती का मुख महाविद्या सिद्धि गोलक की और होना चाहिए।

अब साधक गोलक का सामान्य पूजन करे,संभव होतो लाल पुष्प अर्पित करे. एक शुद्ध घृत अथवा तिल के तेल का दीपक प्रज्वलित करे गोलक के समक्ष।अर्थात अब साधना में ४ दीपक हो जायेंगे जो प्रज्वलित होंगे।गोलक के समक्ष जो दीपक प्रज्वलित करेंगे वो धातु का भी लिया जा सकता है.नैवेद्य में गोलक के समक्ष अनार के दाने निकालकर रखे,तथा एक पात्र  में मीठा दूध रखे जिसमे केसर डाली गयी हो.ये भोग की दोनों चीज़े बादमे साधक को आसन पर ही ग्रहण करना है.उठने के पहले।इसके पश्चात हाथ में थोड़े अक्षत ले,और " ॐ काम रूपिणी त्रीं हूं फट " मंत्र को २१ बार वाचिक पड़कर गोलक पर अक्षत अर्पित कर दे.तत्पश्चात एक निम्बू उपरोक्त मंत्र को पड़ते हुए काटकर,गोलक के समक्ष रख दे.अब माँ कामाख्या से सर्वत्र विजय तथा समृद्धि तथा सफलता के लिए प्रार्थना करे.प्रार्थना के पश्चात जो डाली आप लाये थे,उसे अपने सामने रखकर,निम्न मंत्र को पड़ते हुए डाली पर कुमकुम की बिंदी लगाये।

हूं ह्रीं त्रीं त्रीं त्रीं ह्रीं हूं रक्तवर्णायै हूं 

एक बार मंत्र पड़े और एक बिंदी लगाये,इस प्रकार यह क्रिया ११ बार करे,अर्थात ११ बिंदी लगाये।

इसके पश्चात साधक निम्न मंत्र का ११ माला जाप रुद्राक्ष माला से करे,जिनके पास मुण्डमाला है वो लोग मुण्डमाला से जाप करे.

ॐ ईं ह्रीं त्रीं क्रौं हूं कामरूपिणी सर्व शक्ति संचारिणी हूं क्रौं त्रीं ह्रीं ईं फट 

साधना में दिए गए तीनो मंत्रो का जाप वाचिक होगा।मंत्र जाप के मध्य साधक को ऐसा अनुभव हो सकता है की,कोई कंठ पकड़ रहा है,अथवा बैचेनी सी हो सकती है.परन्तु भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है.यह मंत्र ऊर्जा के कारण होता है.प्रत्येक माला की समाप्ति पर रखी हुई डाली से भूमि पर ३ बार प्रहार करना चाहिए।इस प्रकार प्रत्येक माला की समाप्ति पर ऐसा करे.जब ११ माला पूर्ण हो जाये तब घृत में अनार के दाने  मिलाकर १०८ आहुति अग्नि में प्रदान करे.और अंत में माँ के समक्ष रखा हुआ,कटा निम्बू मंत्र पड़ते हुए हवन में डाल दे.इस प्रकार यह साधना पूर्ण हो जाएगी।साधक भोग सामग्री को स्वयं ग्रहण कर ले.तथा रखी  हुई डाली पर हल्दी का लेप  लगा दे.मूल मंत्र को पड़ते हुए जिसका आपने जाप किया था.भूमि को रात्रि में ही साफ़ करदे,और महाविद्या सिद्धि गोलक को नमक मिले पानी से स्नान कराकर सुरक्षित रख दे ,गोलक को सम्मान पूर्वक संभलकर रखना चाहिए क्युकी यह कामाख्या और दस महाविद्याओं का प्रतिक है,अतः ठीक से संभालकर रखे ताकि भविष्य में अन्य साधनाए इस पर की जा सके .सेंधा नमक का प्रयोग करे तो उत्तम है.अक्षत किसी मंदिर में अगले दिन रख आये.और डाली को धुप में सुखा  दे.यह डाली कामरूपिणी अस्त्र कहलाती है.इसके क्या प्रयोग किये जा सकते है.वो अगले लेख में बताये जायेंगे।आप सभी साधना कर जीवन को उच्च स्तर की और ले जाये इसी कामना के साथ,

जगदम्ब प्रणाम 


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