Monday 24 November 2014

अश्वत्थ प्रयोग 


हमारे शास्त्रो में पीपल वृक्ष की अत्यधिक प्रशंसा की गयी है.सभी देवी तथा देवताओं का निवास इस वृक्ष में माना गया है.विशेष रूप से श्री नारायण को यह वृक्ष अत्यंत प्रिय है,उन्होंने कहा भी है की वृक्षों में,मै पीपल हु.इसलिए विष्णु से जुड़े हुए कई प्रयोग पीपल वृक्ष के निचे किये जाते है.जीवन में सफलता बड़े ही परिश्रम के बाद प्राप्त होती है.किन्तु कई बार परिश्रम भी काम नहीं आता है.इसका सीधा सा अर्थ है की भाग्य कही ना कही रोड़े अटका रहा है.ऐसी स्थिति में यह प्रयोग साधक को सफलता की और बढ़ाता है साथ ही,उसके द्वारा किये जा रहे परिश्रम में भी उसे सफलता की प्राप्ति होती है.इसमें आपको अधिक परिश्रम भी नहीं करना होता है.हा परन्तु नियम पूर्वक इस क्रिया को आपको करना पड़ेगा।यह क्रिया साधक को ४० दिवस सतत करनी होती है.साधक चाहे तो बाद में भी इस क्रिया को करते रहे.यदि ४० दिनों के मध्य में किसी कारण आप एक या दो दिन चूक जाते है,तो भी इस क्रिया में कोई समस्या नहीं है.आप आगे उन दिनों को  जोड़कर इस क्रिया को पूर्ण कर सकते है.परन्तु करे अवश्य।साधक को नित्य एक पात्र में दूध, पानी और श्वेत तिल मिलाकर पीपल वृक्ष में अर्पित करना चाहिए।और वही खड़े खड़े अथवा बैठकर निम्न मंत्र का कुछ देर जाप करना चाहिए।पात्र ताम्बे का नहीं होना चाहिए।जाप के पश्चात भगवान विष्णु का पीपल वृक्ष में ध्यान कर उनसे सफलता प्रदान करने की प्रार्थना करनी चाहिए।

ॐ चैतन्य अश्वथाय शरणं नमः 

Om Chayitanya Ashwathaay Sharnam Namah 

नित्य इस क्रिया को करते रहने से साधक पर श्री हरी की कृपा होती है,और वो सफलता की और अग्रसर होता है.नारायण कृपा प्राप्त होने लगती है तथा जीवन में धनागमन के मार्ग भी खुलने लगते है.इतने सरल प्रयोग होने के पश्चात भी यदि कोई इसे ना करे तो इसे उसका दुर्भाग्य ही कहा जायेगा।अतः इस सरल से प्रयोग को अपने जीवन में उतारकर जीवन में आनंद का अनुभव करे.

श्री हरी 



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Monday 20 October 2014

त्रिदेवी प्रयोग 


सभी भाई बहनो को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाऐ 

मित्रो दीपावली की रात्रि विशेष रात्रि होती है.प्रत्येक साधक चाहता है की इस रात्रि का वो पूर्ण लाभ उठाए,और अधिक से अधिक साधना करे.और साधना तो करना भी चाहिए,क्युकी साधक की असल पूंजी तो उसकी मंत्र ऊर्जा ही है.आज आपको त्रिदेवी प्रयोग दिया जा रहा है.इस प्रयोग के माध्यम  से साधक तीनो देवी, महाकाली ,महा सरस्वती तथा महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त कर लेता है.अर्थात उसे सुरक्षा ,ज्ञान और धन तीनो की दृष्टि से लाभ की प्राप्ति होती है. बहुत कम लोग ही जानते है की,दीपावली की रात्रि में लक्ष्मी के अतिरिक्त सरस्वती और काली पूजन भी विशेष लाभदायी होता है.सरस्वती साधक के मंत्रो को चेतना प्रदान करती है,तो महाकाली साधक को सर्वत्र सुरक्षा प्रदान करती है,वही महालक्ष्मी आर्थिक संकटो का निवारण कर देती है.अतः इस रात्रि में तीनो माताओं का आशीर्वाद प्राप्त करना सौभाग्य की बात है.

साधक दीपावली की रात्रि में स्नान कर लाल वस्त्र धारण करे,साधना का समय रात्रि ११ बजे के बाद रखे.लाल आसन पर उत्तर की और मुख कर बैठ जाये।भूमि पर हल्दी से चोका लिप दे.और उस पर एक लाल वस्त्र बिछा दे.अब इस पर तीन अक्षत की ढेरी बनाये,और तीनो पर एक एक मिटटी का नया दीपक रखकर प्रज्वलित करे.इस दीपक में  सरसो के तेल के अतिरिक्त किसी भी तेल का प्रयोग किया जा सकता है.तीनो दीपको की लौ साधक की और होनी चाहिए।अब तीनो दीपक के अंदर थोड़े अक्षत,थोड़ी सफ़ेद तिल और थोड़े काले तिल भी डाल दे.अब तीनो दीपको का त्रिदेवी मानकर पूजन करे.पूजन सामान्य ही करना है.पञ्च मेवे का भोग अर्पित करना है.तीनो दीपको के आगे अलग अलग प्रसाद अर्पित करे.इस साधना में आपको अन्य दीपक लगाने की आवश्यकता नहीं है.बस सामान्य पूजन कर भोग अर्पित करे.और त्रिदेवी की कृपा प्राप्ति हेतु आप यह साधना कर रहे है ,ऐसा संकल्प लीजिये।इसके पश्चात निम्न मंत्र की ५१ माला जाप करे.

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं ॐ 

Om Aim Hreem Shreem Kreem Om 

जब जाप पूर्ण हो जाये तब साधक अग्नि प्रज्वलित कर,उपरोक्त मंत्र से घृत ,श्वेत तिल ,काले तिल तथा पञ्च मेवे से १०८ आहुति प्रदान करे.तथा माता से आशीर्वाद प्राप्त करे.इस प्रकार यह साधना पूर्ण हो जाएगी।और साधक को तीनो माताओं का आशीर्वाद प्राप्त हो जायेगा।जो साधक इस मंत्र का २४ लाख जाप कर दशांश हवन करता है.त्रिदेवी आजीवन उसकी रक्षा करती है.तथा उस पर माँ का वरद हस्त बना रहता है.अगले दिन दीपक किसी मंदिर में दे दीजियेगा,साथ ही बिछा हुआ वस्त्र,तथा अक्षत भी मंदिर में दान कर दे.प्रसाद पुरे परिवार को दे सकते है.हवन की भस्म को सुरक्षित रख ले.जब घर में कोई बीमार हो तो यह भस्म मंत्र पड़ते हुए मस्तक पर लगा दे माता की कृपा से रोगी ठीक हो जायेगा।नित्य मंत्र पड़कर यदि भस्म घर में छिड़क दी जाये तो त्रिदेवी की कृपा घर में बनी  रहती है.नित्य मस्तक पर भस्म धारण करने से लक्ष्मी दोष का नाश हो जाता है.साथ ही सर्वत्र रक्षा होती है.

आप सभी की दीपावली मंगलमय हो इसी कामना के साथ जगदम्ब प्रणाम। 

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Sunday 21 September 2014

मनोकामना पूर्ति आनंद भैरवी साधना 



मित्रो शीघ्र ही नवरात्र आरम्भ होने वाले है.यह समय साधको के लिए माँ की और से वरदान है.अतः इस समय में ऐसी कोई साधना की जाये जिससे लक्ष्मी की कृपा प्राप्त हो तथा माँ की और से रक्षा भी प्राप्त हो.प्रस्तुत साधना माँ आनंद भैरवी की है.माँ का यह स्वरुप सभी को आनंद देने वाला है.तथा समस्त रुके हुए कार्यो को गति प्रदान करने वाला है.इसके अतिरिक्त धन में आ रही बाधाओं को शांत करने वाला है.यह साधना आप २५ सितम्बर से आरम्भ करे,तथा ३ अक्टूबर को इसका समापन करे.यह समय इस साधना के लिए श्रेष्ठ है.साधक स्नान कर लाल वस्त्र धारण करे,तथा लाल आसन पर उत्तर की और मुख कर बैठ जाये।इस साधना को आप रात्रि १० के बाद ही करे.भूमि पर बाजोट रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछा दे.अब इस पर एक अक्षत के ढेरी बनाकर उस पर " दस महाविद्या सिद्धि गोलक " को स्थापित करे.जिन साधको के पास यह गोलक नहीं है वे सुपारी स्थापित करे.अब गोलक अथवा सुपारी के आसपास १० छोटी सुपारी गोलाकार स्थिति में रख दे,यह दस महाविद्या का प्रतिक है.अब सर्वप्रथम गोलक तथा अन्य सभी सुपारियों का सामान्य पूजन करे.भोग में कोई फल   अर्पित करे.शुद्ध घृत का दीपक प्रज्वलित करे.तथा अपनी किस मनोकामना की पूर्ति हेतु आप यह साधना कर रहे है संकल्प ले.इसके पश्चात निम्न मंत्र को पड़ते हुए गोलक पर अक्षत अर्पित करते जाये।ऐसा आपको १०८ बार करना होगा।अतः थोड़े थोड़े अक्षत अर्पित करे.

ॐ श्रीं आनन्दायै नमः 

इस क्रिया के बाद एक कटोरी पास में रखे और उसमे निम्न मंत्र को पड़ते हुए २१ बार जल छोड़े।

हूं आनंद भोगिनी भैरवी हूं  फट 

इस जल को साधक को साधना के बाद नित्य पीना है.

अब रुद्राक्ष माला से निम्न मंत्र की २१ माला जाप करे। 

ॐ  ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं हूं हूं आनंद भैरवी हूं हूं फट 

Om Aim Hreem Kleem Shreem Hoom Hoom Anand Bhairvi Hoom Hoom Phat 

मंत्र जाप के बाद अग्नि प्रज्वलित कर घृत से १०८ आहुति प्रदान करे.यह पूरा क्रम नित्य आपको करना होगा।नित्य भोग आपको स्वयं ही खाना है.तथा साधना समाप्ति के बाद समस्त सामग्री प्रवाहित कर दे.गोलक को नमक मिश्रित जल में ३ घंटे के लिए डुबो दे और बाद में सुरक्षित रख ले ताकि।अन्य साधनाए इस पर की जा सके.जिन साधको ने सुपारी का प्रयोग किया है वे सुपारी का विसर्जन कर दे.माला का विसर्जन नहीं होगा।यह साधना आपकी किसी भी नैतिक मनोकामना को पूर्ण करने में सक्षम है.और उपरोक्त लाभ स्वतः प्राप्त हो जायेंगे।

जय अम्बे 


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Wednesday 27 August 2014

गजमुख प्रयोग 



मित्रो गणेश चतुर्थी निकट ही है,आप सभी के घर में विघ्नहर्ता पधारेंगे,और सभी को उनकी सेवा का अवसर प्राप्त होगा।परन्तु मोदक के स्वाद के साथ ही आपको साधना का अमृत पान भी करना चाहिए।क्युकी ऐसा सुअवसर वर्ष में एक बार ही आता है.अतः इस समय को  हाथ से ना जाने दे.गजमुख प्रयोग उन साधको को करना चाहिए।जो हर छोटी छोटी बातो से चिंतित हो जाते है.वास्तव में यह प्रयोग समस्त चिंताओं से मुक्त कर देने वाला प्रयोग है.साथ ही अथक परिश्रम के बाद भी यदि आप प्रगति प्राप्त नहीं कर पाते है,तो यह प्रयोग आपको आपके परिश्रम का पूर्ण लाभ दिलवाएगा।जिन्हे मान सम्मान की प्राप्ति न होती हो तथा जिनके द्वारा किये गये कार्य का कोई  मूल्य ना समझता हो तो,यह साधना आपके लिए ही है.अतः उपरोक्त सभी लाभो को प्राप्त करने के लिए गजमुख साधना अवश्य करे.साधना गणेश चतुर्थी से आरम्भ करे.समय का कोई बंधन नहीं है.और यह साधना आपको गणेश विसर्जन के दिन तक करना है.समय का कोई बंधन  नहीं है,बस नित्य एक ही समय अवश्य रखे,उसमे परिवर्तन ना करे.घर में जहा भी आप गणपति की स्थापना करेंगे वही पर आपको यह साधना करनी है.संभव होतो आसन वस्त्र पीले रखे अन्यथा कोई भी वस्त्र आसन प्रयोग में लिए जा सकते है.श्री गणपति का सामान्य पूजन करे,यथाशक्ति नैवैद्य अर्पित करे.शुद्ध घृत का दीपक प्रज्वलित करे,तथा एक नारियल पर हल्दी का लेप लगा दे,हल्दी को घृत में घोलना है.लेप लगा देने के बाद,एक ही प्रकार के ५ सिक्के और यह नारियल पीले वस्त्र में बांधकर गणपति के पास ही रख दे.अब नित्य रुद्राक्ष,स्फटिक अथवा मूंगा माला से निम्न मंत्र की ११ माला जाप करे.

ॐ  गं श्रीं  ग्लौं श्रीं गजमुख गणपतये नमः 

Om Gam Shreem Gloum Shreem Gajmukh Ganpataye Namah 

मंत्र जाप के पश्चात नित्य अग्नि में घृत एवं २१ मखानों के द्वारा,२१ आहुति प्रदान करे.यह इस साधना का आवश्यक अंग है.अंतिम दिन गणपति को विधि पूर्वक विदा कर दीजिये जिस प्रकार भी आपके परिवार में किया जाता है.नारियल और वस्त्र सिक्को सहित किसी मंदिर में रख दे अथवा विसर्जन के समय कोई निर्धन मिल जाये तो उसे दे सकते है.प्रयोग अत्यंत सरल है,परन्तु इसका प्रभाव अचूक है.अतः प्रत्येक साधक को इसे करना ही चाहिए।

लम्बोदर  आपको  तथा आपके सम्पूर्ण परिवार को अपना आशीर्वाद प्रदान करे,तथा आपके जीवन से सभी विघ्नो का नाश हो इसी कामना के साथ,

जगदम्ब प्रणाम 




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Wednesday 9 July 2014

Twarita siddhi sadhana

त्वरिता  सिद्धि साधना 

( कार्यो में आ रही अड़चनों को दूर करने का तीव्र विधान )




कई बार लोगो की शिकायत होती है,की फलाना काम पूरा हो चूका था बस पूरा होते होते  रह गया.या हमारे काम पूर्णता तक पहुँचते ही रुक जाते है.ये जीवन में बड़  रही नकारात्मक ऊर्जा के कारण होता है.जो की हमारे द्वारा किये जा रहे परिश्रम का फल पूर्ण रूप से हम तक पहुचने नहीं देती है.और इसी कारण कई लोगो के कार्य होते होते अटक जाते है.और ये जीवन की गंभीर समस्याओं में से एक है की परिश्रम का फल मिलते मिलते रह जाये।

देवी त्वरिता की साधना से रुके या अटके हुए कार्यो को तुरंत गति मिलती है.तथा उपरोक्त समस्या का निवारण हो जाता है.कुछ दिन पहले हमने साधको के लिए शिव शक्ति महाअघोर कवच निर्मित किये थे,और कई साधको ने इन्हे मंगवाया भी था.त्वरित साधना उसी कवच पर की जाएगी।पूर्व में भी हम इस कवच पर की जाने वाली साधनाए दे चुके है और भविष्य में भी कवच पर की जाने वाली साधनाए आती रहेंगी।उन्ही साधनाओं में से आज प्रस्तुत है आपके लिए त्वरिता सिद्धि साधना।

यह साधना आप किसी भी अमावस्या से आरम्भ करे.साधक रात्रि ९ के पश्चात स्नान कर लाल वस्त्र धारण करे तथा,उत्तर की और मुख कर लाल आसन पर बैठ जाये। सामने बाजोट रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछा दे.उस पर किसी ताम्र पात्र को स्थापित करे,तथा उस पात्र में अघोर कवच को स्थापित करे.कवच के साथ जो रुद्राक्ष है उसे स्थापित ना करे.केवल कवच ही स्थापित करे.अब सर्व प्रथम कवच पर ५ लाल पुष्प अर्पित करे,किसी अन्य वस्तु कुमकुम, हल्दी आदि अर्पित करने की आवश्यकता नहीं है.पुष्प अर्पित  करने के पश्चात,तिल के तेल  का दीपक प्रज्वलित करे.तथा कवच के समक्ष गुड़ का नैवेद्य अर्पित करे.अब माँ त्वरिता  का स्मरण कर संकल्प ले की अपने जीवन को गति देने हेतु तथा हर रुके कार्य को पूर्ण करने हेतु,में यह साधना कर रहा हु.माँ त्वरिता मुझ पर कृपा करे तथा मेरे जीवन को त्वरित रूप से सही दिशा प्रदान करे.इसके पश्चात साधक रुद्राक्ष माला से.निम्न मंत्र की ११ माला जाप करे.

ॐ ह्रीं क्लीं ह्रीं श्रीं त्वरिता देव्यै हूं हूं हूं श्रीं ह्रीं क्लीं ॐ छू 

इस साधना में अपने पास कुछ अक्षत रखे,प्रत्येक माला के पश्चात सर पर से थोड़े अक्षत घुमाकर एक कटोरी में डाल दे,यह कटोरी भी बाजोट पर ही रखनी है.इस प्रकार प्रत्येक माला के पश्चात अक्षत घुमाकर अर्पित करने है.जब ११ माला संपन्न हो जाये तो माँ से पुनः प्रार्थना करे.साधना आपको ८ दिवस तक करनी है.साथ ही नित्य जो अक्षत है एकत्रित करते जाना है.और साधना समाप्ति के पश्चात किसी को दान कर देना है.भोग में जो गुड़ अर्पित किया गया है.वो नित्य गाय को खिला देना है.इस प्रकार साधक यह साधना करे.बाद में कवच को पुनः सुरक्षित रख ले यह अन्य साधनाओं में काम आएगा।इस साधना के प्रभाव से आपके कार्य को एक गति मिल जाएगी तथा जो काम बार बार अटक जाते है वे पूर्ण होंगे साथ ही.साधक को माँ की कृपा प्राप्त होगी।


जय अम्बे 


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Monday 16 June 2014

संकटा योगिनी साधना 



योगिनियों का तंत्र में क्या महत्व ये तो सभी जानते है.अप्सरा और यक्षिणियों से भी ऊपर है योगिनिया,माँ का ही दूसरा स्वरुप माना  जाता है इन्हे और यह सिद्धि दात्री भी मानी गयी है.

इनकी साधनाए अत्यंत क्लिष्ट होती है,क्युकी योगिनिया पूर्ण समर्पण मांगती है.और समर्पण ही सफलता की कुंजी है.कभी कभी तो वर्षो साधना करने के पश्चात इनकी कृपा प्राप्ति होती है.किन्तु कुछ पाने के लिए परिश्रम तो करना ही होता है.आज हम ब्लॉग के माध्यम से आप सभी के मध्य संकटा योगीनी  की एक लघु साधना रख रहे है.ये साधना मात्र एक दिवस की ही है.इसके माध्यम से संकटा योगिनी की साधक पर कृपा होती है.तथा जीवन में आकस्मिक रूप से आने वाले संकटो का अंत हो जाता है.तथा वर्तमान में चल रहे संकटो का भी योगिनी धीरे धीरे करके अंत कर देती है.यह साधना साधक किसी भी अष्टमी की रात्रि में,शुक्रवार की रात्रि में अथवा योगिनी सिद्धि  दिवस की रात्रि में भी कर सकता है.रात्रि ११ बजे स्नान कर लाल वस्त्र धारण करे तथा लाल आसन पर उत्तर की और मुख कर बैठ जाये।सर्व प्रथम साधना कक्ष के चारो कोनो में एक एक सरसो के तेल का दीपक जलाकर रख दे.और दीपक में २ लौंग, और एक इलाइची भी डाल दे.ये दीपक साधना समाप्त होने तक जलते रहना चाहिए।अब आसन  पर बैठकर भूमि पर लाल वस्त्र बिछा दे.वस्त्र पर किसी भी धातु का लोटा रखे ताम्बे का हो तो उत्तम है.इस लोटे को पूरा अक्षत से भर दे.अब इस लोटे पर एक कटोरी गेहू अथवा चने की दाल से भरकर रखे.और एक गोल बड़ी सुपारी को हल्दी से रंजीत कर कटोरी में स्थापित करे.जिन साधको के पास दस महाविद्या सिद्धि गोलक है,वे लोग गोलक को हल्दी से रंजीत कर स्थापित करे.अब गोलक अथवा सुपारी का सामान्य पूजन करे.कुमकुम,हल्दी,अक्षत लाल पुष्प अर्पित करे.कोई भी मिष्ठान्न अर्पित करे.यदि घर का बना हुआ हो तो और भी उत्तम होगा।शुद्ध घृत का दीपक प्रज्वलित करे.धुप आदि भी अर्पित करे.हाथ में जल लेकर संकल्प ले की जीवन के समस्त संकटो के निवारण हेतु में यह साधना कर रहा हु.माँ संकटा योगिनी आप मेरे जीवन से समस्त संकटो का अंत कर दीजिये तथा भविष्य में आने वाले सभी संकटो से मेरी रक्षा करे. जल भूमि पर छोड़ दे.

इसके पश्चात आपके पास जो भी माला उपलब्ध हो उससे निम्न मंत्र की २१ माला जप करे.वैसे इस साधना में मूंगा अथवा रुद्राक्ष माला श्रेष्ठ रहती है.प्रत्येक माला के बाद सुपारी अथवा गोलक पर हल्दी की एक बिंदी अवश्य लगाये। इस प्रकार २१ माला पूर्ण करे.माला जाप के बाद अग्नि प्रज्वलित कर मात्र १०८ आहुति घृत एवं काली मिर्च से प्रदान करे.

ॐ ह्रीं क्लीं चण्डे प्रचण्डे हूं हूं हूं संकटा योगिन्यै नमः 

Om Hreem Kleem Chande Prachande Hoom Hoom Hoom Sankata Yoginyayi Namah 

साधना में अर्पित किया गया मिष्ठान्न अगले दिन गाय को खिला दे.कटोरी में रखा अनाज और सुपारी जल में विसर्जित कर दे.गोलक का प्रयोग किया हो तो,उसे धोकर सुरक्षित रख ले.लोटे में भरा हुआ अक्षत किसी भी मंदिर में भूमि पर बिछे हुए लाल वस्त्र में बांध कर अर्पित कर दे.इस प्रकार ये एक दिवसीय साधना पूर्ण होगी तथा साधक पर देवी योगिनी की कृपा होगी।इस मंत्र का एक प्रयोग और है यदि अचानक कोई ऐसी समस्या आ जाये जिसका हल न दिखाई दे रहा हो तो गाय के गोबर का कंडा जलाये और उस पर घी तथा गुड मिलाकर २१ आहुति उत्तर मुख होकर प्रदान कर दे.योगिनी कृपा से कोई न कोई हल निकल जायेगा।परन्तु इसके पहले उपरोक्त साधना अवश्य करे तभी ये मंत्र प्रभाव में आ पायेगा।

आप सभी की साधना सफल हो इसी कामना के साथ.

जय अम्बे 

अन्य जानकारियों के लिए मेल करे.

pitambara366@gmail.com

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sadhika303@gmail.com

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Tuesday 10 June 2014

पितृ कृपा प्राप्ति नारायण प्रयोग 


पितृ कृपा के बिना मनुष्य का जीवन बड़ा अस्त व्यस्त हो जाता है.क्युकी हमारे जीवन में इनका भी एक मुख्य स्थान है.यही कारण है की हमारे धर्म में श्राद्ध आदि करने का नियम है.वर्ष के सोलह दिवस हम अपने पित्रो के नाम कर देते है,ताकि उनका आशीष हमें प्राप्त हो और हमारा जीवन सफल हो.किन्तु कभी कभी पितृ हमसे नाराज़ भी हो जाते है.और पित्रो की रुष्टता व्यक्ति पर बड़ी भारी  पड़ती है.

क्या कारण है की पितृ रुष्ट हो जाते है ?

सामर्थ्यवान होते हुए भी तर्पण आदि ना करना।

पशु पक्षियों की सेवा ना करना। 

वृक्षों को काटना या अकारण कष्ट देना। 

पितरो की निंदा करना। 

घर के वृद्धो की सेवा ना करना तथा  उन्हें कष्ट देना।

और भी कई कारण जिससे पितृ नाराज़ हो जाते है.मित्रो जिनके कारण आपका अस्तित्व है,जिनका नाम आपके नाम से जुड़ा है.उनकी ही यदि कृपा आप पर से हट जाये तो जीवन दुष्कर तो होगा ही ना.

इसलिए समय समय पर सामर्थ्य अनुसार पितरो को प्रसन्न करते रहना चाहिए।ताकि उनकी कृपा प्राप्त होती रहे.यदि किसी कारण पितृ रुष्ट हो  जाये तो उन्हें मनाना अतिआवश्यक है.

परन्तु मनाया कैसे जाये ?

चिंता ना करे , साधना मार्ग ने हर समस्या का हल मनुष्य के हाथो में दिया है आवश्यकता है तो बस इतनी की हम साधना करे वो भी पूर्ण समर्पण के साथ.आज यहाँ आपको एक साधना दे रहे है जिसके माध्यम से पित्रो की कृपा तो प्राप्त होती ही है साथ ही यदि वे किसी कारण रूठ गए हो तो मान जाते है.चाहे वंशज की त्रुटि कितनी ही बड़ी क्यों ना हो परन्तु इस प्रयोग को करने के बाद उन्हें मानना ही पड़ता है.क्युकी सबसे बड़े पितृ भगवान नारायण है और उनकी आज्ञा तो सभी पित्रो को मानना ही पड़ती है.ये प्रयोग अत्यन्त सरल है.बिना किसी समस्या के साधक इसे कर सकता है.इसमें आपको कोई भी विशेष नियम पालने की आवश्यकता नहीं है.बस एक ही नियम की आवश्यकता है और वो है पूर्ण विश्वास।यदि प्रयोग के प्रति विश्वास ना हो तो वे सफल नहीं होते है.अतः पूर्ण विश्वास से करे. पूर्णिमा को प्रातः ४ से ९ के मध्य स्नान करे.और अपने पूजन कक्ष में  जाकर उत्तर अथवा पूर्व की और मुख कर बैठ जाये।इसमें आसन एवं वस्त्र का कोई बंधन नहीं है.कोई भी वस्त्र धारण किये जा सकते है.किसी भी आसन  पर बैठा जा सकता है.अब सामने एक थाली रखे किसी भी धातु की और उसमे केसर , हल्दी अथवा अष्टगंध से " पितृ " लिखे इसके बाद उस पर एक गोल बड़ी सुपारी रखे.यह सुपारी विष्णु स्वरुप है.इनका सामान्य पूजन करे.पुष्प  अर्पित करे शुद्ध घृत का दीपक प्रज्वलित करे.तथा गुड नैवेद्य में अर्पित करे.

अब एक पात्र  में थोड़ा शुद्ध जल ले लीजिये और उस जल में ग़ुड ,सफ़ेद तिल तथा काले तिल मिला लीजिये।अब निम्नलिखित मंत्र को पड़े और एक चम्मच जल सुपारी पर अर्पित करे.इस प्रकार आपको ये क्रिया १०८ बार करनी है मंत्र पड़ना है और जल अर्पित करना है.जब ये क्रिया पूर्ण हो जाये सारे  जल को पात्र  में पुनः भर ले और ये जल पीपल के वृक्ष की जड़ में अर्पित कर दे.और प्रार्थना करे.

है श्री हरी भगवान विष्णु यदि मेरे पितृ मुझसे रूठ गए हो तो आपके आशीर्वाद से वे मान जाये,एवं मुझे तथा मेरे पुरे परिवार को अपना आशीर्वाद प्रदान करे.मेरे कूल में कभी किसी को पितृ दोष ना लगे ना ही किसी पर पितृ कभी कुपित हो.

इस प्रकार साधक को ५ पूर्णिमा तक यह क्रिया करनी होगी।यदि साधक चाहे तो इससे अधिक भी कर सकता है अथवा हर पूर्णिमा को करने का नियम बना सकता है.यदि बीच में कोई पूर्णिमा किसी कारण छूट जाये तो चिंता की कोई बात नहीं है.इसमें कोई दोष नहीं लगता है बस किसी भी तरह ५ पूर्णिमा कर ले.नैवेद्य में जो गुड अर्पित किया था वो भी पीपल को ही अर्पित करना है.

ॐ  नमो नारायण को नमस्कार , नारायण धाम को नमस्कार ,नारायण के धाम कौन जाये,पितृ प्यारे सब जग न्यारे,नारायण शांति देओ,पितृ शांत कराओ ,कुपित पितृ मनाओ ,पूजा भेट स्वीकार करो पितृ दोष नाश  करो,मीठा भोग नित खाओ, रूठे पितर मनाओ, सेस नाग की आन दू  वसुंधरा की दुहाई।

मंत्र पूर्ण रूप से शुद्ध है अतः अपनी और से कोई परिवर्तन ना करे.और जब तक क्रिया पूर्ण न हो किसी से भी  बात ना करे.जो भी साधक पूर्ण भाव से इस प्रयोग को ५ पुर्णिमा  करेगा,उस पर निश्चय ही पित्रो की कृपा होगी।संभव हो तो इस दिन व्रत भी  किया जा सकता है परन्तु ये आवश्यक अंग नहीं है.परन्तु साधना के दिन जब तक प्रयोग पूर्ण ना कर ले तब तक जल के अतरिक्त कुछ और ग्रहण ना करे.कभी कभी स्वप्न में पितृ दिखाई देते है अतः घबराने की आवश्यकता नहीं है.ऐसा साधना में कभी कभी हो जाता है.

तो देर कैसी आज ही साधना का दिवस निश्चित करे  और लग जाये अपने पितरो को मनाने में.अगर इतने सरल प्रयोग के बाद भी कोई इसे न कर पाये तो फिर ऐसे मनुष्य का कुछ नहीं हो सकता।अतः साधनाओं को गंभीरता से ले.तभी आप सफलता के निकट पहुंच पाएंगे।

जगदम्ब प्रणाम 


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Thursday 8 May 2014

पारद श्री यन्त्र सुचना 



कुछ साधको ने पारद श्री यन्त्र प्राप्त करना चाहे थे.उन्हें सूचित किया जाता है कि,पारद श्री यन्त्र अलग अलग वज़न मे निर्मित कर दिये गये है.पारद श्री यन्त्र कि समस्त जानकारी हेतु आप निम्न आई डी पर मेल करके जानकारी  प्राप्त कर सकते है.मेल के विषय में पारद श्री यन्त्र अवश्य लिखे।

sadhika303@gmail.com

pitambara366@gmail.com


जय अम्बे 



Saturday 3 May 2014

siddh kunjika aur kuch avshyak bate

          सिद्ध कुंजिका और कुछ आवश्यक बाते 


कुंजीका स्त्रोत वासतव मे सफलता की कुंजी हि है,सप्तशती का पाठ इसके बिना पूर्ण नहीं माना जाता है.षटकर्म में भी कुंजिका रामबाण कि तरह कार्य करता है.परन्तु जब तक इसकी ऊर्जा को स्वयं से जोङ न लीया जाए तबतक इसके पूर्ण प्रभाव कम हि दिख पाते है.आज हम यहा कुंजिका स्त्रोत को सिद्ध करने कि विधि तथा उसके अन्य प्रयोगो पर चर्चा करेंगे।सर्व प्रथम सिद्धि विधान पर चर्चा करते है.साधक किसी भी मंगलवार अथवा शुक्रवार से यह साधना आरम्भ करे.समय रात्रि १० के बाद का हो और ११.३० के बाद कर पाये तो और भि उत्तम होगा।लाल वस्त्र धारण कर लाल आसन पर पूर्व अथवा उत्तर कि और मुख कर बैठ जाये।सामने बाजोट पर लाल वस्त्र बिछा दे और उस पर माँ दुर्गा का चित्र स्थापित करे.अब माँ का सामान्य पूजन करे तेल अथवा घी का दीपक प्रज्वलित करे.किसी भी मिठाई को प्रसाद रूप मे अर्पित करे.और हाथ में जल लेकर संकल्प ले,कि माँ मे आज से सिद्ध कुञ्जिका स्तोत्र का अनुष्ठान आरम्भ कर रहा हु.में नित्य ९ दिनों तक ५१ पाठ करूँगा,माँ मेरी साधना को स्वीकार कर मुझे कुंजिका स्तोत्र कि सिद्धि प्रदान करे तथा इसकी ऊर्जा को मेरे भीतर स्थापित कर दे.जल भूमि पर छोड़ दे और साधक ५१ पाठ आरम्भ करे.इसी प्रकार साधक ९ दिनों तक यह अनुष्ठान करे.प्रसाद नित्य स्वयं खाए.इस प्रकार कुञ्जिका स्तोत्र साधाक के लिये पूर्ण रूप से जागृत तथा चैतन्य हो जाता है.फिर साधक इससे जुड़ी कोइ भि साधना सफलता पूर्वक कर सकता है.

कुंजिका स्तोत्र और कुछ अवश्यक नियम 

१. साधना काल मे ब्रह्मचर्य क पलन करने आवशयक है.केवल देह से हि नहि अपितु मन से भी  आवश्यक है.

२. साधक भूमि शयन कर पाये तो उत्तम होगा 

३. कुंजिका स्तोत्र के समय मुख मे पान ऱखा  जाएं तो ईससे माँ प्रसन्न होती है.इस पान मे चुना,कत्था और ईलायची के अतिरिक्त  और कुछ ना ड़ाले।कई साधक सुपारी और लौंग भि डालतें  है पर इतनी देर पान मुख मे रहेगा तो सुपाऱी  से जिव्हा कट सकती है तथा लौंग अधिक समय मुख मे रहे तो छाले कर देति है.अतः ये दो वस्तु ना ड़ाले।

४ अगर नित्य कुंजिका स्तोत्र समाप्त करने के बाद एक अनार काटकर माँ को अर्पित किया जाये तो इससे साधना का प्रभाव और अधिक हो जाता है.परन्तु ये अनार साधक को नहीं ख़ाना चाहिए ये नित्य प्रातः गाय को दे देना चाहिए।

५. यदि आपका रात्रि मे कुंजिका का अनुष्टान चल रहा  है तो नित्य प्रातः पूजन के समय किसी भि माला से ३ माला नवार्ण मंत्र की करे.इससे यदि साधना काल मे आपसे कोइ त्रुटि हो रही होंगी तो वो समाप्त हो जायेगी।वैसे ये आवश्यक अंग नहीं है फ़िर भी साधक चाहे तो कर सकते है.

६. साधना गोपनीय रखे गुरु तथा मार्गदर्शक के अतिरिक्त किसी अन्य को साधना समाप्त होने तक कुछ न बताए,ना हि साधना सामाप्त होने तक किसी से कोइ चर्चा करे.

७. जहा तक सम्भव हो साधना मे सभी वस्तुए लाल हि प्रयोग करे.

जब साधक उपरोक्त विधान के अनुसार कुंजिका को जागृत कर ले,तब इसकी मध्यम से काई प्रकार के काम्य प्रयोग किये ज सकते है.यहाँ कुछ प्रयोग दिये ज रहे है.

धन प्राप्ति 

किसी भी शुक्रवार कि रात्रि मे माँ का सामान्य पुजन करे.इसके बाद कुंजिका के ९ पाठ करे इसके पश्चात, नवार्ण मन्त्र से अग्नि मे २१ आहुति सफ़ेद तील से प्रदान करे.नवार्ण मंत्र में श्रीं बिज आवश्य जोड़ें। श्रीं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै नमः स्वाहा, आहुति के बाद पुनः ९ पाठ करे.इस प्रकार ९ दिनों तक करने से धनागमन के मर्ग खुलनी लगतें है.

शत्रु मुक्ति 

शनिवार रात्रि मे काले वस्त्र पर एक निंबू स्थापित करे तथा इस पर शत्रु का नाम काजल  से लिख दे.और इस निम्बू के समक्ष हि सर्व प्रथम ११ बार कुंजिका का पाठ करे.इसके बाद हूं शत्रुनाशिनी हूँ फट मन्त्र क ५ मिनट तक निम्बू पर त्राटक करते हुए जाप करे.फिर पुनः ११ पाठ करे.इसके बाद निम्बू कही भूमि मे गाङ दे.शत्रु बाधा समाप्त हो जायेगी।

रोग नाश 

नित्य कुंजिका के ११ पाठ करके काली मिर्च अभिमंत्रित कर ले.इसके बाद रोगी पर से इसे ७ बार घुमाकर घर के बहार फैक़ दे.कुछ दिन प्रयोग करने से सभी रोग शांत हो जाते है.

आकर्षण 

कुंजिका का ९ बार पाठ करे तत्पश्चात क्लीं ह्रीं क्लीं  मन्त्र क १०८ बार जाप करे तथा पुनः ९ पाठ कुंजिका के करे और जल अभीमंत्रित कर ले.इस जल को थोड़ा पि जाएं और थोड़े से मुख धो ले.सतत करते रहने से साधक मे आकर्षण  शक्ति का  विकास होता  है.

स्वप्न शांति 

जिन लोगो को बुरे स्वप्न आते है उनके लिए ये प्रयोग उत्तम है.किसी भी समय एक सिक्का ले और थोड़े क़ाले तिल ले.३ दिनों तक नित्य २१ पाठ कुंजिका के कर और इन्हे अभिमंत्रित करे.इसके बाद दोनों को एक लाल वस्त्र मे बांध कर तकिये के निचे रखकर सोये।धीरे धीरे बुरे स्वप्न आना बन्द हो जायेंगे।

तंत्र सुरक्षा 

बुधवार के दिन एक लोहे कि कील ले और इसकी समक्ष कुंजिका के २१ पाठ करे प्रत्येक पाठ कि समाप्ति पर कील पर एक कुमकुम कि बिंदी लगाये इसके बाद इस कील को लाल वस्त्र मे लपेट कर घर के मुख्य द्वार के बाहर भूमि मे गाढ़ दे.इससे घर तंत्र क्रियायों से सुरक्षित रहेगा।

उपरोक्त सभी प्रयोग सरल है परन्तु ये तभि प्रभावी होंगे जब आप स्वयं के लिए कुंजिका को जागृत कर लेंगे।अतः सर्वप्रथम कुंजिका को जागृत करे इसकी बाद हि कोइ प्रयोग करे.शीघ्र ही अन्य प्रयोग भि बतायेँगे। तब तक के लिए.

जय अम्बे 

अन्य जानकारी के लिए मेल करे.

sadhika303@gmail.com

pitambara366@gmail.com





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Saturday 12 April 2014

चंडिका प्रयोग 

( ऊर्जा प्राप्ति का  तीव्र विधान )



जो सभी मनुष्यों में शक्ति निवास करती है,उस शक्ति अर्थात जगदम्बा को हमारा कोटि कोटि प्रणाम।

शक्ति अर्थात ऊर्जा , वो ऊर्जा जिससे ये समस्त संसार चलायमान है.जिसके बिना ना तो हमारा अस्तित्व है ना ही इस संसार का.जिसकी कृपा के बिना बीज से अंकुर तक नहीं फुट सकता,तो हम मनुष्यों का जीवन चलना तो दुर् कि बात है.

यही ऊर्जा शक्ति हमें साधनाओं से प्राप्त होती है.वैसे तो हर मनुष्य में जन्म से ही ऊर्जा विद्यमान  होती है.परन्तु वो केवल उतनी ही होती है.जितनी एक जीवन जीने के लिये आवश्यक होती है.और जीवन को जीने कि ऊर्जा तो हम भोजन से भी प्राप्त कर लेते है.किन्तु जहा साधनात्मक ऊर्जा कि बात आती है.वहाँ  अधिकतर मनुष्य स्वयं को ऊर्जाहीन पाते है.हम जितने भी कार्य करते है,जैसे भोजन करना,स्नान करना,चलना,सोना और भी जो दैनिक कार्य है,इन सभी को करने में ऊर्जा कि आवश्यकता लगती ही है.और साथ ही इन सभी कार्यो में सतत देहिक ऊर्जा का प्रयोग होता रहता है.और इस ऊर्जा कि पूर्ति हम भोजन के माध्यम से पुनः कर लेते है.

किन्तु साधनात्मक ऊर्जा कि पूर्ति भोजन से नहीं कि जा सकती।चक्रो को ऊर्जा भोजन से नहीं अपितु मंत्रो तथा ध्यान से प्राप्त होती है.अगर एक कटु सत्य कहु तो मनुष्य अपनी देहिक ऊर्जा का इतना नाश नहीं करता है,जितना कि वो अपने भीतर स्थापित  चक्रो कि तथा अध्यात्मिक ऊर्जा का नाश कर देता है. जब आप जूठ बोलते है,किसी को अपशब्द बोलते है,किसी के प्रति नकारात्मक भाव मन में लाते है.या किसी कि निंदा करते है,तब तीव्रता के साथ आपकी साधनात्मक ऊर्जा का नाश होता है.यही कारण है कि विद्वानो ने सदा कहा है कि साधना काल में यथा सम्भव मौन रहे और इष्ट का चिंतन करते रहे.ऐसा करने से आपकी ऊर्जा में वृद्धि होती है.और ऊर्जा के नाश होने कि सम्भावना कम हो जाती है.जिस प्रकार देहिक ऊर्जा के ना होने से देह कार्य करना बंद कर देती है.उसी प्रकार साधक में साधनात्मक ऊर्जा ना हो या उसके चक्र ऊर्जाहीन हो जाये तो,उसकी साधनाये सफल नहीं हो पाती है.तथा साधना काल में भी उसका चित्त स्थिर नहीं हो पाता है.साधना में एकाग्रता और सफलता प्राप्ति के लिए एक साधक में साधनात्मक ऊर्जा का होना अत्यंत आवश्यक है.इसलिए में बार बार कहता हु कि अधिक से अधिक साधक को इष्ट मंत्र करते रहना चाहिए तथा व्यर्थ कि बातो से बचना चाहिए।ताकि उसका आतंरिक विकास होता रहे.बुद्धि के घोड़ो कि लगाम खीचकर रखना चाहिए तथा  उन्हें अपने इष्ट कि और बढ़ाते रहना चाहिए।अन्यथा ऊर्जा का नाश होगा ही.आज हम आपको चण्डिका प्रयोग दे रहे है.इस प्रयोग के माध्यम से साधक अपने भीतर साधनात्मक ऊर्जा को बड़ा सकता है.इस प्रयोग के माध्यम से साधक के सभी चक्रो में एक विशेष ऊर्जा का संचार होता है,जिसके माध्यम से वो साधना मार्ग में प्रगति प्राप्त करता है.यह प्रयोग आप किसी भी कृष्ण पक्ष की अष्टमी,पूर्णिमा अथवा किसी भी मंगलवार की रात्रि ११ बजे के बाद  आरम्भ कर सकते है. साधक स्नान कर लाल वस्त्र धारण करे तथा लाल आसन पर उत्तर की और मुख कर बैठ जाये।अपने सामने भूमि पर ही एक लाल वस्त्र बिछा दे.अब इस पर कोई भी मिटटी का घड़ा स्थापित करे,साधक चाहे तो स्टील का लोटा अथवा ताम्बे का लोटा भी स्थापित कर सकता है. अब सर्व प्रथम इस लोटे के अंदर पांच सुपारी,५ लौंग,और पांच इलाइची रखे और इनके ही साथ रखे शिव शक्ति महाअघोर कवच.ये सभी वस्तुए कवच के साथ एक लाल वस्त्र में बांधकर लोटे में रखना है.अब ऊपर से इस पात्र को अक्षत से भर दीजिये।इसके बाद इस पात्र  पर एक ऐसी प्लेट या कोई कटोरी रखे जिससे की ये पूरी तरह ढक जाये।फिर इस कटोरी में भी अक्षत भरे और इस पर सिद्धिप्रद रुद्राक्ष रख दीजिये।ये रुद्राक्ष आपको कवच के साथ ही भेजा गया था.ये क्रिया पूर्ण हो जाने के बाद पात्र का सामान्य पूजन करे.कुमकुम हल्दी अक्षत अर्पित करे.तथा पात्र के समक्ष ही कोई भी मिष्ठान्न रखे.घृत अथवा तेल  का दीपक प्रज्वलित करे. माँ चण्डिका  से प्रार्थना करे की इस साधना के फल स्वरुप मुझमे साधनात्मक ऊर्जा एवं शक्ति का विकास हो.इसके बाद साधक मूंगा माला अथवा रुद्राक्ष माला से,निम्न मंत्र की २१ माला संपन्न करे.


ॐ स्त्रीं ह्रीं श्रीं प्रचंड चण्डिके  हूं हूं हूं  ऐं  फट 

Om Streem Hreem Shreem Prachand Chandike Hoom Hoom Hoom Aim phat 

जब जाप पूर्ण हो जाये तब साधक थोड़ा कुमकुम लेकर पानी में गिला कर ले और उपरोक्त मंत्र को ही पड़ते हुए पात्र पर ११ बिंदी कुमकुम की लगाये।तथा पुनः प्रार्थना करे.तथा कम से कम सीधे होकर ५ मिनट तक आसन पर ही बैठे रहे और पुनः मंत्र का मानसिक जाप करे.इसके बाद साधक प्रसाद स्वयं वही बैठे बैठे खा ले.इस प्रकार साधना ८ दिनों तक करे.इस साधना में हवन की कोई आवश्यकता नहीं है.परन्तु साधक चाहे तो यथा संभव आहुति प्रदान कर सकता है.ऐसा करने से मंत्र में चैतन्यता ही आती है.८ दिन बाद रुद्राक्ष तथा कवच को सुरक्षित रख ले.अक्षत और लाल वस्त्र किसी मंदिर में रख दे लौंग सुपारी तथा इलाइची को किसी पीपल वृक्ष के निचे रखे आये.यदि आपने मिटटी की मटकी का प्रयोग किया है तो उसे भी किसी मंदिर में दान कर दे.यदि ताम्र पात्र का प्रयोग किया है तो धोकर पुनः प्रयोग किया जा सकता है.सभी साधको को समय समय पर इस प्रयोग को करते रहना चाहिए जिससे की उनकी साधनात्मक ऊर्जा का विकास होता रहे.आप सभी सदा प्रसन्न रहे इसी कामना के साथ.

जय अम्बे 


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Wednesday 9 April 2014

Navratri aur ek yojna

नवरात्री और एक योजना 



मित्रो हम ये बात भलीभाती जानते है कि आप में से कई साधको कि सदा से इच्छा रही है.पारद के शुद्ध एवं संस्कारित रसलिंग को पूजने कि.परन्तु रसलिंग कि धन राशि अधिक होने के कारण सबके लिए इसे लेना सम्भव नहीं हो पाया।परन्तु इसमें हमारा भी कोई दोष नहीं है.पारद को शुद्ध कर अष्ट संस्कार करना पड़ता है,इसके बाद पारदेश्वर का निर्माण होता है.अगर बात यहाँ तक भी होती तो पारद शिवलिंग कि राशि इतनी अधिक नहीं होती।किन्तु केवल संस्कार कर लिंग बना देना ही पर्याप्त नहीं है.प्रत्येक संस्कार में पृथक पृथक क्रिया कि जाती है.और किस मार्ग से हम इसके निर्माण कर रहे है उसी प्रकार हर संस्कार में क्रिया करनी होती है.पृथक पृथक मंत्रो का जाप और हर संस्कार पर एक लघु अनुष्ठान करना होता है.इतनी सब क्रिया के बाद निर्माण होता है एक रसलिंग का.अगर बात केवल निर्माण कि होती तो,हम केवल पारद को शुद्ध करके उसका बंधन कर देते और शिवलिंग का निर्माण कर देते।और ये आपको प्राप्त भी हो जाता ४०० या ५०० में ,परन्तु ऐसे निर्माण का क्या लाभ जो किसी कम का न हो.जब तक एक एक क्रिया व्यवस्थित रूप से न कि जाये।एक एक संस्कार में मंत्रो कि ऊर्जा न डाली जाये तब तक रसलिंग किसी कम का नहीं होता।और गलत विधि से निर्माण करके हम रस तंत्र कि नियमो से खिलवाड़ ही करेंगे साथ ही शिव के कोप के भाजन भी बनेंगे।बाज़ार में आज यही हो रहा है.

२० प्रतिशत पारद + ८० प्रतिशत रांगा = पारदेश्वर

परन्तु आप स्वयं ही सोचे क्या ये निर्माण उचित है.और यही कारण है कि बाज़ार में मिलने वाले शिवलिंग रस तंत्र के सिद्धांतो पर खरे नहीं उतरते है.थोक में पारा और रांगा मिलाकर साँचो में डाल दिया जाता है और बना दिए जाते है पारदेश्वर। और यही पारदेश्वर बड़े ही अपमानजनक अवस्था में पटक दिए जाते है थोक कि दुकानो पर.आज भी कोई हमारे यहाँ आकर देख सकता है कि रसलिंग तथा अन्य पारद विग्रह को हम कितने सम्मान के साथ रखते है.और जब यहाँ से किसी अन्य व्यक्ति को ये भेजे जाते है तब भी बड़ी ही सावधानी से रखकर भेजे जाते है.क्युकी इनमे स्थापन निर्माण के समय ही कर दिया जाता है.अतः वो हमारे लिए मात्र एक शिवलिंग नहीं अपितु साक्षात् शिव ही है.और यही कारण है कि हमारे द्वारा निर्मित पारद शिवलिंग महंगा होता है.क्युकी वो शुद्ध होता है एवं संस्कारित होता है.

लाख प्रयत्न के बाद भी हम शिवलिंग कि धन राशि में कमी नहीं कर पा रहे थे.क्युकी उसके निर्माण में धन का व्यय ही बहुत अधिक हो जाता था.इसी कारण ५० ग्राम का शिवलिंग ६००० और १०० ग्राम का १२००० में हमारे द्वारा भेजा जा रहा था.और इसका मुख्य कारण यही था कि इससे सम्बंधित सारा परिश्रम हमें और हमारी टीम को ही करना होता था.

परन्तु नवरात्री के निकट आते ही भगवती जगदम्बा कि कृपा हम पर बरसी और संस्था को कुछ ऐसे साधक प्राप्त हुए ,जिन्होंने पारद शिवलिंग के निर्माण में सहयोग प्रदान किया।और उनके सहयोग से हमने ५० ग्राम के और १०० ग्राम के शिवलिंग का निर्माण किया। हा किन्तु उन्होंने भी अपने सामर्थ्य अनुसार ही सहयोग प्रदान किया और ५० ग्राम तथा १०० ग्राम के ११ -११ शिवलिंग का निर्माण माँ आदि शक्ति कि कृपा से पूर्ण हुआ.जो ५० ग्राम का शिवलिंग ६००० में आपको प्राप्त हो रहा था वो अब ४००० में प्राप्त होगा।और १०० ग्राम का जो शिवलिंग आपको १२००० में प्राप्त हो रहा था वो अब ७००० में प्राप्त होगा।

अर्थात जब आप ५० ग्राम शिवलिंग लेंगे तो आपको ४००० जमा करने होंगे बाकि २००० कि व्यवस्था इन साधको के द्वारा कि गयी है. और १०० ग्राम के लिए आपको ७००० जमा करने होंगे बाकि ५००० कि व्यवस्था भी इन्ही साधको के द्वारा कि जायेगी। परन्तु इन साधको कि भी अपनी सीमा है अतः इस योजना के अंतर्गत ५० ग्राम के ११ शिवलिंग है तथा १०० ग्राम के भी ११ शिवलिंग है.इन संख्या के समाप्त होते ही पुनः वही राशि शिवलिंग पर लागु हो जायेगी।

अब हम अपनी अगली योजना कि और आते है.जिस प्रकार हमने शिवलिंग में सहयोग करने वाले खोजे उसी प्रकार हमने शिव शक्ति महाघोर कवच में भी सहयोग करने वाले खोज ही लिए.या यु कहे कि माँ कि कृपा से मिल गए.अतः इन शिवलिंग के साथ कवच का निर्माण भी आरम्भ हुआ.और उन्हें जोड़ दिया गया इन शिवलिंग के साथ.जब भी आप इस नवरात्री योजना के अंतर्गत शिवलिंग मंगवाएंगे उसके साथ आपको उपहार स्वरुप शिव शक्ति महा अघोर कवच तथा सिद्धिप्रद रुद्राक्ष भेजा जायेगा।जिस पर आप अन्य साधनाये भी कर पाएंगे।

इस पोस्ट में सभी बाते स्पष्ट कर दी गयी है.वज़न तथा धन राशि भी.अतः मेल में कोई प्रश्न पूछने कि आवश्यकता ही नहीं है.जिसे भी ये शिवलिंग प्राप्त करना हो वे ही मेल करे.तथा मेल के विषय में नवरात्री योजना अवश्य लिखे। ताकि इस योजना के अंतर्गत आपको विग्रह भेजा जा सके.मेल करने पर आपको ये किस प्रकार प्राप्त होगा वो भी बता दिया जायेगा। और इन शिवलिंगो कि समाप्ति के बाद कोई इस योजना के अंतर्गत मेल आदि न करे. आप

SADHIKA303@GMAIL.COM

पर मेल कर सकते है.

जय अम्बे 

Sunday 30 March 2014

मंगल तारिणी साधना  


ॐ तारे तू तारे तुरे स्वाहा 

जगदम्बा समस्त सृष्टि को तारने वाली है.यही वो आदि शक्ति है जो शिव को भी तृप्त करती है.तो अन्य मनुष्यों कि बात ही क्या कि जाये। जब भक्त दुखो के सागर में फस जाता है,तब यही तारिणी शक्ति भक्त को मार्ग दिखाती है.परन्तु इसके लिए माँ के श्री चरणो में अनंत श्रद्धा परम आवश्यक है.बिना श्रद्धा और समर्पण के तो आप सांसारिक सम्बन्धो को पूर्णता से नहीं निभा सकते है,तो ये तो फिर भगवती से जन्म जन्मान्तर का सम्बन्ध है.इसमें तो श्रद्धा परम आवश्यक है.और इसके साथ ही उतना समर्पण भी आवश्यक है.तंत्र मार्ग में माँ तारा का क्या स्थान है ये तो किसी से छुपा नहीं है.और इसकी व्याख्या करना मूर्खता ही होगी।आज हम जिस साधना पर चर्चा कर रहे है,वो है " मंगल तारिणी साधना "  

प्रस्तुत साधना कौल मार्ग कि शाबर साधना है और यह हिमाचल के साधको के मध्य प्रचलित रही है.इस साधना का विशेष समय नवरात्री ही है.इसके अतिरिक्त यदि आप ये साधना करते है तो आपको २१ दिन करनी होती है.परन्तु नवरात्री के समय ये केवल ९ दिवस में ही पूर्ण हो जाती है.जिसके जीवन में सतत अमंगल हो रहा हो,कोई शुभ कार्य हो ही नहीं रहा हो.तो उन्हें ये साधना अवश्य करना चाहिए।आर्थिक कष्टो से मुक्ति हेतु भी ये साधना रामबाण कि तरह है.जिन साधको को रोग आदि घेरे रहते हो वे भी ये साधना करके पूर्ण लाभ प्राप्त कर सकते है.अगर संक्षेप में कहु तो ये साधना साधक कि समस्त बाधाओं को समाप्त करने में सहायक है.नवरात्री कि प्रथम रात्रि से आप ये साधना आरम्भ करे,समय होगा रात्रि १० के बाद का.स्नान कर लाल वस्त्र धारण करे तथा उत्तर कि और मुख कर लाल आसन  पर बैठ जाये।सामने भूमि पर बाजोट रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछा दे.इस पर माँ तारा का कोई भी चित्र स्थापित करे.अगर चित्र न हो तो कुमकुम रंजीत अक्षत कि ढेरी बनाकर उस पर एक सुपारी स्थापित कर दे.जिन लोगो के पास दस महाविद्या सिद्धि गोलक हो वे लोग गोलक को ही स्थापित करे इससे साधना का प्रभाव और बड़ जायेगा।इसके पश्चात् गुरु तथा गणपति का पूजन करे.तथा माँ तारा का पूजन करे.तील के तेल  का दीपक माँ के समक्ष  प्रज्वलित करे तथा कोई भी मिष्ठान्न माँ को अर्पित करे.तथा माँ के समक्ष माँ के चरणो में ही एक श्रीफल स्थापित करे. इसके पश्चात् आप मूल मंत्र पड़ते  जाये और थोडा थोडा कुमकुम उस श्रीफल पर अर्पित करते जाये।ये क्रिया आपको एक घंटे तक करनी है.इस साधना में आपको एक विशेष क्रिया भी करना होगी।एक ताम्र पात्र  कोई भी लोटा या थाली अपने पास रखे और मंत्र पढ़ते  समय उलटे हाथ से नीम की  टहनी अथवा किसी भी वृक्ष कि टहनी से उस पात्र  को धीरे धीरे बजाते रहे.अर्थात आप मंत्र पड़ते जाये और सीधे हाथ से कुमकुम अर्पित करते जाये और उल्टे  हाथ से पात्र पर धीरे धीरे  टहनी मारकर हल्की हल्की ध्वनि भी निकालते  जाये।ये इस साधना का आवश्यक अंग है.एक घंटे तक नित्य आपको ये क्रिया करनी होगी।९ दिन बाद लाल वस्त्र,समस्त कुमकुम और श्री फल कुछ दक्षिणा के साथ देवी मंदिर में रख आये.इस प्रकार ये साधना पूर्ण हो जायेगी।इसमें जो मंत्र जपा जायेगा वो इस प्रकार है.

ॐ तारे तू उद्धारे सकल कष्ट नासै, 
घुंघरू बाजे घंटा बाजे तारा मायी   नाचे,
तारा नाचे मंगल होय भक्त सुखी होय 
कामना पुरण करे जो तारा मायी होय
ॐ स्त्रीं हूं फट 

अन्य विधान के अनुसार इसी मंत्र के द्वारा माँ का नृत्य भी करवाया जाता है.इस विषय पर फिर कभी चर्चा होगी।क्युकी ये विषय थोडा लम्बा है.मंत्र  को थोड़ा  गायन करके पड़े तो उत्तम होगा,और जैसा लिखा गया है वैसा ही पड़े.अपनी और से कोई परिवर्तन ना करे.आप सभी कि साधना सफल हो इसी कामना के साथ 

जय अम्बे 

अधिक जानकारी के लिए मेल करे 

sadhika303@gmail.com

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Friday 21 March 2014

शाबर दशा माता साधना 


तंत्र के क्षेत्र में एक दिवस ऐसा भी आया था जब तंत्र कि दशा में एक मंगलकारी परिवर्तन आया.जिसे साधक दस महाविद्या सिद्धि दिवस भी कहते है.इसी दिन शिव ने दस महाविद्या पर से पर्दा उठाया था,और सम्पूर्ण विश्व ने जाना था कि दस महाविद्या क्या है.इसी दिन भारत के कई क्षेत्रो  में दशा माता पूजन होता है.जहा देवी कि कथा आदि कि जाती है.परन्तु दशा माता का शाबर तंत्र में भी अत्यधिक महत्व है.ये बात कम ही साधको को ज्ञात है कि,शाबर तंत्र में भी दशा माता कि साधना कि जाती है तथा अपनी दुर्दशा का नाश किया जाता है.इस बार ये दिवस २६ मार्च २०१४,को आ रहा है.इस दिन आप दशा माता से जुडी साधना कर सकते है.इस साधना को करने से साधक कि दशा सुधरती  है अर्थात,उसके जीवन को उच्चता कि प्राप्ति होती है.लाख परिश्रम के बाद भी आपका जीवन दुर्गति पूर्ण ही है.तो दशा माता कि साधना अवश्य करे.इससे साधक कि दशा में परिवर्तन होता है.तथा दशा माता कि कृपा से प्रगति के मार्ग खुल जाते है.जीवन में आ रही रुकावटे समाप्त हो जाती है.यदि आपके व्यापार पर या आप पर किसी ने तंत्र क्रिया कि हो तो उसका नाश हो जाता है.जीवन से नकारात्मक ऊर्जा पलायन कर जाती है.तथा जीवन में आनंद कि अनुभूति आती है.यह साधना आप २६ मार्च कि रात्रि ९ के बाद करे.सम्भव हो तो इस दिन व्रत रखे केवल फल का ही सेवन करे.रात्रि में स्नान कर पीले वस्त्र धारण करे तथा पीले आसन पर उत्तर या पूर्व कि और मुख कर बैठ जाये।भूमि पर बाजोट रखकर पिला वस्त्र बिछा दे.वस्त्र पर अक्षत कि ढेरी बनाकर उस पर एक मिट्टी का दीपक स्थापित कर दे.इसमें तील का तेल भरकर दीपक प्रज्वलित करे दीपक कि लो आपकी और होना चाहिए।अब दीपक को दशा माता का स्वरुप मानकर उसकी पूजा करे.कुमकुम,हल्दी अक्षत आदि से दीपक का पूजन करे.भोग में कोई भी पिली रंग कि मिठाई रखे.दशा माता से अपनी दशा को परिवर्तित करने कि प्रार्थना करे तथा कहे कि माँ मेरे जीवन को प्रगति प्रदान करे.इसके बाद निम्नलिखित शाबर मंत्र कि  एक माला जाप करे.इस साधना में आपको माला स्वयं बनानी होगी।एक लाल धागा इतना बड़ा  ले लीजिये जिसमे १०८ गठान लगायी जा सके तथा एक सुमेरु कि गाठ लगायी जा सके.इसी माला से आपको एक माला जाप करना होगा।जाप के पश्चात् अग्नि प्रज्वलित कर घी तथा पञ्च मेवे को मिलाकर अग्नि में १०८ आहुति प्रदान करे.आहुति के पश्चात् जो माला  आपने  बनायीं थी उसे गले में धारण कर ले.तथा माता से पुनः प्रार्थना कर आशीर्वाद प्राप्त करे.प्रसाद में जो मिठाई अर्पित कि गयी थी उसे पुरे परिवार को दे तथा स्वयं भी ग्रहण करे.अगले दिन अक्षत वस्त्र तथा दीपक किसी भी वृक्ष के निचे रख आये.इस प्रकार ये एक दिवसीय साधना पूर्ण होती है जो आपके जीवन को बदल देने में सक्षम है.

                                  मंत्र 

ॐ नमो आदेश गुरु को,दशा पलटे दशा माता।सुख समृद्धि प्रदान करे,धन बरसे सुख बरसे,दशा माँ कल्याण करे,आदेश गुरु गोरखनाथ को आदेश 

आप सभी कि साधना सफल हो इसी कामना के साथ 

जय अम्बे 

अन्य जानकारी के लिए मेल करे 

sadhika303@gmail.com

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Wednesday 12 March 2014

होली और भैरव प्रयोग



होली निकट ही है,ये ऐसा दिवस है जिस दिन तंत्र अपने चरम पर होता है.आपमें  से कई साधको ने इस दिन के लिए विधान माँगा था.अतः होली पर किये जाने  वाला एक प्रयोग यहाँ दिया जा रहा है.इस प्रयोग के माध्यम से साधक अपनी दरिद्रता, रोग शत्रु कष्ट आदि का निवारण कर सकता है.प्रस्तुत प्रयोग भगवान भैरव से सम्बंधित है.अतः इसका प्रभाव भी अचूक है.मित्रो मैंने कई बार कहा है कि जब भी आप कोई साधना करे तो उसे पूर्ण मनोभाव के साथ ही करे अन्यथा ना करे.क्युकी आसन पर बैठकर इष्ट कि जगह संसार का ध्यान करेंगे तो सफलता सौ जन्मो तक प्राप्त नहीं होगी।अतः जब आप होली पर इस दिव्य प्रयोग को करे तो पूर्ण एकाग्रता के साथ ही करे.वैसे तो इस प्रयोग से कार्य सिद्ध हो जाते है.जैसे 

दरिद्रता का नाश हो जाता है 

धन आगमन के मार्ग खुलने लगते है 

शत्रु द्वारा दिए जा रहे कष्टो से मुक्ति मिलती है 

गम्भीर रोग स्वतः शांत हो जाते है 

और जीवन से जुडी हर समस्या का निवारण इस एक दिवसीय साधना से हो जाता है.प्रस्तुत प्रयोग आपको १६ तारीख कि रात्रि १० के बाद आरम्भ करना है.आपके आसन तथा वस्त्र लाल हो.स्नान कर उत्तर दिशा कि और मुख कर बैठ जाये।बाजोट पर लाल वस्त्र बिछा दे तथा उस पर काले तील कि एक ढेरी बना दे.इस पर एक सुपारी सिंदूर से रंजीत करके स्थापित करे.जिनके पास भैरव सिद्धि गोलक हो वे लोग गोलक पर सिंदूर लगाकर स्थापित करे.अब सर्व प्रथम सद्गुरु तथा गणेश पूजन संपन्न करे.इसके बाद सुपारी अथवा गोलक का सामान्य पूजन करे.भोग में तले हुए पापड़,उड़द के ३ बड़े रखे.तील के तेल  का दीपक प्रज्वलित करे.तथा जीवन से सभी बाधाओ कि निवृति हेतु तथा साधना मार्ग में प्रगति हेतु आप ये साधना कर रहे है ऐसा संकल्प ले.अब साधक मंत्र जाप आरम्भ करे.इसमें माला का प्रयोग नहीं होगा।जाप करते समय भैरव के समक्ष एक कटोरा रखे और अपने पास काले तील,काली मिर्च,काले उड़द  तीनो को समान  भाग में मिलाकर किसी  अन्य पात्र में रखे.अब थोड़ी सी सामग्री ले और अपने मस्तक पर स्पर्श कराये स्पर्श करते समय शाबर भैरव मंत्र पड़ते रहे मंत्र पूर्ण होते ही ये सामग्री भैरव के समक्ष रखे कटोरे में डाल दे.इस प्रकार ये क्रिया एक घंटे तक करे.

मंत्र :  हूं हूं हूं भैरो दरिद्रता नासै,रोग नासै,सत्रु  नासै, नासै सगली  पीड़ा,सुख बरसे सफल होय कारज  डाले भैरो रक्षा घेरा,आदेश आदेश आदेश आदि गुरु को  आदेश 

जब मंत्र जाप कि क्रिया संपन्न हो जाये तब भैरव के समक्ष  कटोरे में जो सामग्री एकत्रित हुई है उसे घी में मिला ले और अग्नि में मंत्र पड़ते हुए १०८ आहुति प्रदान करे.सामग्री जरा भी न बचाये अगर आहुति के बाद भी बच जाये तो बाद में सभी सामग्री अग्नि में डालदे।भगवान भैरव से आशीर्वाद प्राप्त करे.और रात्रि में ही बाजोट पर बिछा वस्त्र,सुपारी भोग कि वस्तुए आदि किसी वृक्ष के निचे रख आये पीछे  मुड़कर न देखे घर आकर स्नान करे,हवन कि भस्म आदि भी अगले दिन कही विसर्जित कर दे.इस प्रकार ये प्रयोग संपन्न होता है.साधक को बाद में भी नित्य २१ बार मंत्र का पाठ करना चाहिए इससे प्रयोग कि तीव्रता दिन प्रतिदिन बढ़ती रहती है.तथा प्रयोग से सम्बंधित सभी लाभ साधक को शीघ्रता से प्राप्त होते है.यदि आप  भैरव सिद्धि गोलक का प्रयोग करे तो साधना के तुरंत बाद गोलक को निम्बू और नमक मिश्रित जल में डुबो दे २४ घंटे के लिए.इसके बाद धोकर शिवलिंग से स्पर्श कराकर पुनः सुरक्षित रख ले.आप सभी कि होली मंगलमय हो इसी कामना के साथ 

जय अम्बे 

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Saturday 8 March 2014

अघोर महालक्ष्मी दरिद्रता नाशक प्रयोग



जिन साधको ने " शिवशक्ति महाघोर कवच " मंगवाए थे उन सभी को कवच प्राप्त हो चुके है.अतः कवच पर कि जाने वाली साधना अब ब्लॉग पर आरम्भ कि जा  रही है.मित्रो लक्ष्मी का जीवन में क्या महत्व है ये तो सभी जानते है.परन्तु परिश्रम के बाद भी यदि लक्ष्मी दूर रहे तो मनुष्य को साधना मार्ग का आश्रय लेना ही चाहिए।क्युकी एक साधक पूर्णता प्राप्त करना चाहता है.और संसार में घुट घुट कर जीना एक साधक का काम नहीं है.साधक तो हर समस्या कि छाती पर पैर रखकर आगे निकल जाता है.और समस्त संसार का भोग करते हुए अंत में अपने इष्ट में लीन  हो जाता है.संसार के भोग के लिए निश्चय ही लक्ष्मी कि कृपा कि आवश्यकता है.क्युकी जिस पर लक्ष्मी प्रसन्न न हो उसे धन तो मिल ही नहीं सकता साथ ही धन के अभाव के कारण मनुष्य कुण्ठा भाव से भी ग्रसित हो जाता है.और रही सही कसर  हमारा समाज पूरी कर देता है.निरंतर आपको आपकी निर्धनता के बारे में कह कह कर.परन्तु आप स्मरण रखे प्रकृति ने यदि आपके भाग्य में कोई दुःख लिखा है तो उस दुःख को सुख में परिवर्तित करने का मार्ग भी इसी प्रकृति में ही है.तंत्र में शिव कहते है कि मनुष्य को वही दुःख प्राप्त होता है जिसका हल पहले से निकाला  जा चूका है.बस मनुष्य उस हल को खोज नहीं पाता  है और फिर उसे भाग्य मानकर बैठ जाता है.कितनी सुलझी हुई बात कही है शिव ने.और एक साधक कभी भाग्य का रोना नहीं रोता है.साधक तो भाग्य को परिवर्तित करने कि क्षमता रखता है.आपके हाथो में तंत्र रूपी कुंजी है जिसके माध्यम से आप भाग्य पर लगे ताले बड़ी सरलता से खोल सकते है.बस आवश्यकता है परिश्रम कि और समर्पण कि.मित्रो आज जो आपको साधाना दी जा रही है.इस साधना के माध्यम से आपके जीवन में धन आगमन के मार्ग स्वतः खुल जायेंगे।साथ ही यदि किसी ने आपके रोजगार पर कोई बंधन कर दिया है तो वो भी स्वतः ही दूर हो जायेगा।धन कि समस्या का हल होगा एवं आर्थिक स्थिति में सुधार होगा।प्रस्तुत प्रयोग  अघोर मार्ग का तीव्र प्रयोग है जिसका प्रभाव होता ही है.यहाँ एक बात  और कहना चाहूंगा कि आप जब भी कोई साधना करे.अपने द्वारा जपे जा रहे मंत्र पर और कि जा रही क्रिया पर पूर्ण विश्वास रखे.तील मात्र भी शंका हो तो सारी  क्रिया और जप व्यर्थ चला जाता है.अतः साधना में विश्वास रखे.आईये अब हम  विधि कि और चलते है.ये साधना आप किसी भी शुक्रवार से कर सकते है जो कि आपको अगले शुक्रवार तक अर्थात ८ दिनों तक करनी होगी।साधना के एक दिन पहले आप लाल कनेर अथवा नीम वृक्ष को निमंत्रण दे आये ये क्रिया आपको गुरूवार कि शाम को करनी होगी।दोनों में से किसी एक वृक्ष के पास जाये अब वृक्ष का सामान्य पूजन करे और एक लोटा जल अर्पित करे और कुछ मिठाई का भोग रख तेल का दीपक लगाये अब हाथ में हल्दी मिश्रित अक्षत ले और कहे " है वृक्ष राज में कल से अघोर महालक्ष्मी दरिद्रता नाशक प्रयोग  आरम्भ करने जा रहा हु.मुझे उस प्रयोग में आपकी एक टहनी कि आवश्यकता है अतः में कल आपकी टहनी लेने आउंगा,और अक्षत वृक्ष पर अर्पित कर दे.अगले दिन प्रातः कोई अच्छी सी टहनी तोड़ लाये साथ ही वृक्ष के हाथ जोड़कर आर्शीवाद भी ले.अब इस लकड़ी को धोकर इसका सामान्य पूजन करे.और " ॐ अघोरेश्वराय हूं फट " मंत्र का जाप करते हुए लकड़ी पर सिन्दूर मिश्रित अक्षत अर्पित करे.ये क्रिया १०८ बार करे और लकड़ी को सुरक्षित रख दे.अब शुक्रवार रात्रि ११.३० बजे के करीब आप साधना आरम्भ कर सकते है.स्नान कर लाल वस्त्र धारण करे,तथा उत्तर कि और मुख करके लाल आसन पर बैठ जाये।भूमि पर बाजोट रखे तथा उस पर लाल वस्त्र बिछा दे.इस पर " शिव शक्ति महाअघोर कवच रखे " अब कवच के ऊपर ही हल्दी मिश्रित अक्षत के एक ढेरी  बनाये।ढेरी  इतनी बड़ी होनी चाहिए कि कवच पूरा ढक जाये।अब इस ढेरी पर एक सुपारी स्थापित करे सुपारी को सिंदूर से रंजीत करके ही स्थापित करे.अब सर्व प्रथम सद्गुरु तथा गणपति का पूजन कर आशीर्वाद प्राप्त करे.इसके बाद सुपारी का लक्ष्मी मानकर सामान्य पूजन करे.कुमकुम,हल्दी अक्षत अर्पित करे.खीर अथवा किसी भी मिष्ठान्न का भोग अर्पित करे.तील के तेल  का दीपक जलाये।अब " आओ लक्ष्मी विराजो कष्ट हरो आदेश अघोरेश्वर को " बोलते हुए २१ बार  सुपारी पर सफ़ेद तील अथवा अक्षत अर्पित करे.इस क्रिया के बाद जो लकड़ी आप लाये थे उसे अपने दाहिने हाथ में रखे और पास में ही एक कटोरी में अक्षत भरकर उस कटोरी में सिद्दीप्रद रुद्राक्ष स्थापित कर दे.अब निम्न लिखित अघोर शाबर मंत्र को एक बार पड़े,पड़ते समय लकड़ी को सिद्धिप्रद रुद्राक्ष से स्पर्श कराकर रखे और जैसे ही मंत्र पूर्ण हो लकड़ी को सुपारी से स्पर्श कराये।बस यही क्रिया आपको बार बार सतत २ घंटे करनी होगी।मंत्र को पड़ना है और सुपारी से स्पर्श कराना है.जब ये क्रिया पूर्ण हो जाये तो भगवान अघोरेश्वर और लक्ष्मी से दरिद्रता दूर करने कि प्रार्थना करे.नित्य ये क्रिया आपको करनी होगी।साधना के अंतिम दिन जाप पूर्ण हो जाने के बाद.घृत में गूगल,तथा सफ़ेद तील मिलाकर २१ आहुति अग्नि में प्रदान करे.आहुति पूर्ण हो जाने के बाद एक बार पुनः मंत्र पड़े और निम्बू काटकर अग्नि में निचोड़ दे.इस प्रकार ये साधना पूर्ण होती है.अगले दिन रुद्राक्ष और कवच को रख ले.वस्त्र तथा अक्षत विसर्जित कर दे.आप जो लकड़ी लाये थे पुनः उसी वृक्ष के पास जाकर रख आये वृक्ष का पूर्व कि  भाती  ही पूजन करे भोग अर्पित करे तथा टहनी प्रदान करने के लिए धन्यवाद दे.

मंत्र 

लागी लागि लागी अघोर धुन लागी,आयी धनलछमी भागी भागी भागी,घर मोय आईके दरिद्रता मिटाये,ना करे कहा तो अघोर दंड खाये,आदेश अघोरेश्वर को आदेश 

इस प्रकार आपकी ये दिव्य साधना पूर्ण होती है जो कि आपके जीवन को बदलकर रख देने में सक्षम है.आवश्यकता है कि आप साधना को पूर्ण निष्ठा से करे.किसी भी प्रश्न के लिए मेल करे.तथा अपनी और से मंत्र में कोई परिवर्तन ना करे.जैसा लिखा गया है वैसा ही करे.

sadhika303@gmail.com

जय अम्बे 

Saturday 1 March 2014

पारद विग्रह और एक योजना



 ॐ नमः शिवाय 

मित्रो कुछ दिनों से कई साधको के सतत सन्देश प्राप्त हो रहे है कि वे पारद विग्रहो पर साधना करना चाहते है,परन्तु पारद विग्रह महंगे होने के कारण वे उसे लेने में समर्थ नहीं है.क्युकी इतना धन एकत्रित ही नहीं हो पाता है कि विग्रह लिया जा सके.

प्रिय साधको सर्व प्रथम यह स्पष्ट करना चाहूंगा कि पारद विग्रह इतने महंगे क्यों है ?

पारद के संस्कार कई मार्गो से किये जाते है.प्रत्येक विग्रह के निर्माण में पृथक पृथक संस्कारो का प्रयोग करना होता है.साथ ही  हर संस्कार के समय जिस विग्रह का निर्माण करना है उस विग्रह से सम्बंधित मंत्रो का सतत जाप किया जाता है.और जिस मार्ग से संस्कार किया जा रहा है उसी मार्ग से सम्बंधित सामग्रीओ का प्रयोग होता है.जब हम  कौल मार्ग से संस्कार करते है तो रक्त वर्णीय फलो के रस,सिन्दूर,रक्त पुष्प आदि कई ऐसी सामग्री होती है जिनके माध्यम से ये संस्कार किये जाते है.पारद के शोधन के समय से ही देवी कुरुकुल्ला के मंत्रो द्वारा पारद को ऊर्जावान करने का कार्य आरम्भ कर दिया जाता है.और प्रत्येक संस्कार में पृथक पृथक मंत्रो सामग्रीओं तथा विधियों का प्रयोग किया जाता है.जब अघोर मार्ग से संस्कार कि बारी  आती है तो अघोरेश्वर पूजन आदि संपन्न कर संस्कार किये जाते है.ठीक इसी प्रकार विहंगम मार्ग,सूत मार्ग,सूर्य मार्ग आदि कई मार्गो से पारद संस्कारित किया जाता है.तब जाकर पारद विग्रह के लिए तैयार होता है.इसके बाद विग्रह निर्मित करना।और उस मार्ग से प्राण प्रतिष्ठा करना जिस मार्ग से संस्कार किये गए है,ये क्रिया भी अत्यंत जटिल होती है.विशेषकर पारद काली का निर्माण सबसे कठिन माना जाता है.क्युकी इसमें अभिमंत्रित मुष्टि मारने पर कई बार काली विग्रह चटक जाता है.और साधक को पूरी क्रिया पुनः करना होती है.खैर इस विषय पर फिर कभी पूर्ण रूप से चर्चा करेंगे कि पारद काली निर्माण में ही कैसे साधक कि परीक्षा आरम्भ कर देती है.

अब आपका प्रश्न होगा  कि फिर बाज़ार में उपलब्ध पारद विग्रह इतने सस्ते क्यों है ?

मित्रो बाज़ार में उपलब्ध पारद विग्रह में और संस्कारित पारद विग्रह में उतना ही अंतर है  जितना अंतर स्वर्ण में तथा सोने का पानी चढ़ाये हुए गहने में होता है.बाज़ार में उपलब्ध विग्रह न तो संस्कारित पारद से निर्मित होते है ना ही सिद्ध होते है.और उनमे ९० % तक रांगा मिलाया जाता है.जो कि आपको पूर्ण फल प्रदान नहीं करता है.जबकि रस तंत्र के अनुसार किस विग्रह में कितना पारद होना चाहिए कितना स्वर्ण होना चाहिए ये सब रसतन्त्र ही  निश्चित करता है.साथ ही विग्रह को केवल एक साँचे में डालकर तैयार  नहीं कर दिया जाता है.इसकी भी एक अलग ही विधि होती है.पारद को शुद्ध कर संस्कारित करना और फिर विग्रह निर्मित कर प्राण प्रतिष्ठा करना इन सभी में अथक परिश्रम लगता है और पग पग पर कई प्रकार कि क्रियाएँ करनी पड़ती है.इसी कारण असली पारद विग्रह थोड़े महंगे होते है.

अब प्रश्न उठता है कि, क्या आम साधक इसे नहीं ले पायेगा ?

इस  मामले में एक बात हम स्पष्ट करना चाहते है कि पारदेश्वर को जहा जाना होता है चले जाते है.पारद काली को जहा स्थापित होना होता है वो हो ही जाती है.अब मूल चर्चा कि और आते है.आपमे  से कई साधको ने कहा कि हम कोई भी विग्रह इकट्ठी धन राशि जमा कराकर नहीं ले सकते है.क्युकी धन एकत्रित हो ही नहीं पाता है बार बार खर्च हो जाने के कारण हम  विग्रह ले ही नहीं पाते है.

इसलिए कुछ साधको को संस्था द्वारा किश्तो में पारद विग्रह उपलब्ध करवाये गए ताकि वे भी पारद विग्रहो पर साधना करने का सौभाग्य प्राप्त कर सके.किन्तु ऐसी व्यवस्था अब तक केवल कुछ साधको के लिए ही कि गयी थी.परन्तु तंत्र माह के इस पावन पर्व पर,ये सुविधा सभी साधको के लिए आरम्भ कि जा रही है.अब बताते है कि आपको करना क्या होगा।

आप जो भी विग्रह प्राप्त करना चाहते है.उसके लिए आप मेल के द्वारा जानकारी प्राप्त कर सकते है.इसके बाद आप तय कर लीजिये कि आप कब कब कितनी राशि जमा करवा पाएंगे।ये भी आप मेल के माध्यम से निश्चित कर लीजियेगा।जब भी राशि जमा कराये उसकी रसीद कि स्कैन कॉपी मेल में ही भेज दिया करे.ताकि आपके द्वारा जमा कि गयी राशि कि जानकारी हमारे पास सुरक्षित रहे.और आप निश्चिन्त रहे आपकी सुविधा को ध्यान में रखते हुए ये भी आप ही निश्चित करेंगे कि आप विग्रह कि राशि कितने किश्तो में जमा करेंगे।इस प्रकार प्रत्येक माह आप थोड़ी थोड़ी धन राशि हमारे पास जमा करवा सकते है.जैसे ही आपके इच्छित विग्रह कि धन राशि हमारे पास पूर्ण रूप से जमा हो जायेगी।आपका इच्छित विग्रह निर्मित कर आप तक सुरक्षित पंहुचा दिया जायेगा।इस प्रकार आप शुद्ध संस्कारित विग्रहो को प्राप्त कर पाएंगे।

मित्रो संस्था के द्वारा बनायीं गयी ये योजना आपको कितनी पसंद आएगी ये हम नहीं जानते है.परन्तु जो साधक वास्तव में पारद विग्रहों पर साधना करना चाहते है ये योजना उनके लिए तो वरदान स्वरुप ही है.अतः निर्णय  आपका है.आप सभी साधना मार्ग पर प्रगति पाये इसी कामना के साथ.

जय अम्बे 

अधिक जानकारी के लिए मेल करे.

sadhika303@gmail.com 

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