Wednesday 20 November 2013

विद्वेषण प्रयोग

** विद्वेषण प्रयोग **

विद्वेषण शब्द से तो आप सभी परिचित होंगे,जिसका सीधा सा अर्थ है कि किन्ही दो मनुष्यों में विवाद उत्पन्न करा देना।वास्तव में विद्वेषण कोई छोटी क्रिया नहीं है.कई अल्प ज्ञानी तत्वो ने इस विद्या को तुच्छ या घृणित कह कर इसका अपमान किया है.यह सत्य है कि कुछ स्वार्थी तत्वो ने तंत्र कि इस विशेष क्रिया का दुरुपयोग किया और इसी कारण इस साधान को आम जन ने हिन दृष्टि से देखना आरम्भ कर दिया।परन्तु सत्यता इससे परे है,विद्वेषण कि उत्तपत्ति तो केवल किसी भी परिवार को टूटने से बचाने के लिए कि गयी है न कि उसका दुरुपयोग करने के लिए.
मान लीजिये घर का कोई सदस्य किसी ऐसी संगत में पड़ जाये जिससे कि उसका भविष्य ख़राब हो सकता है,या कोई मनुष्य किसी कि संगत में शराब आदि का सेवन करने लग जाये।तब इस विद्वेषण का प्रयोग उचित माना जायेगा।क्युकी कही न कही आप उस व्यक्ति का हित चाहते है.किन्तु यदि इसके विपरीत आप पति पत्नी में,या किसी ऐसे सम्बन्ध में विद्वेषण करते है जो कि धर्मं कि दृष्टि से उचित है तो इसे विद्वेषण का दुरुपयोग माना जायेगा।और ऐसा करके यदि व्यक्ति प्रसन्न हो भी जाये किन्तु भविष्य में उसे इसके भयंकर परिणाम भोगने ही पड़ते है.और अधिकतर मनुष्यो ने विद्वेषण जैसी विद्या का दुरुपयोग ही किया है.इसके कारण इस पवित्र विद्या को हिन भावना से देखा जाने लगा है.आवश्यकता है कि हम हर साधना के सकारात्मक प्रयोग करे तथा जन कल्याण में तंत्र का सहयोग ले.
आज आपको यहाँ ऐसा ही एक विद्वेषण प्रयोग दिया जा रहा है,जो कि मुस्लिम तंत्र से सम्बंधित है.अब ये में नहीं जनता कि आप इसका क्या प्रयोग करते है उचित या अनुचित,ये आप पर छोड़ता हु.क्युकी उचित प्रयोग आपको ईश्वर से आशीष दिलवाएगा और अनुचित प्रयोग आपको ईश्वर के दंड का अधिकारी बनाएगा।साधको जब परिवार में कोई अनुचित संगत में पड़ जाये,तब उन दोनों व्यक्ति को अलग करने के लिए इसका प्रयोग करे.ये साधना करने में जितनी सरल है उतनी ही तीव्र प्रभाव युक्त है.अब हम विधि कि और चलते है.
सबसे पहले कपडे के दो पुतले बना ले,सम्भव हो तो उन दो लोगो के वस्त्र से ये पुतलो का निर्माण करे जिनके बिच विद्वेषण कराना हो,अगर ये सम्भव न हो तो किसी भी वस्त्र से निर्माण कर ले.अब नौचंदी जुमेरात ( शुक्ल पक्ष का प्रथम गुरुवार ) को रात १२ बजे स्नान कर सफ़ेद वस्त्र धारण करे इसे लुंगी कि तरह बांधे और ऊपर भी बिना सिला सफ़ेद वस्त्र डाला जा सकता है.अब पश्चिम कि और मुख कर सफ़ेद आसान या वस्त्र पर बैठ जाये।अब अपने सामने उन दोनों पुतलो को रख दे.दोनों के पेट पर काजल से उन दोनों लोगो के नाम लिखे जिनके बिच विद्वेषण करवाना हो.सरसो के तैल का दिया जलकर सामने ही रख दे.कमरे में और कोई उजाला नहीं होना चाहिए इस दिए के सिवा।अब १५ मिनट तक आपको दोनों पुतलो को देखते हुए,मन ही मन सोचना है कि दोनों में भीषण विद्वेषण हो रहा है.और ये सोच अत्यधिक तीव्र होनी चाहिए।इसके बाद दोनों पुतलो को उठाये और आपस में एक दूसरे टकरा टकराकर लड़वाए और अमल पड़ते जाये।एक घंटे के बाद दोनों पुतले पुनः उनकी जगह पर रख दे.परन्तु ध्यान रखे कि दोनों का स्पर्श न हो रखने के बाद,अर्थात आपको इस तरह रखना है कि दोनों एक दूसरे कि तरफ पीठ किये हुए हो.आपस में जब आप उन्हें लड़वा रहे हो तब भी मन में ये ही भावना रहे ही दोनों में भीषण विद्वेषण हो रहा है और दोनों हमेशा हमेशा के लिए अलग हो रहे है.

अमल : या जब्बार या जलाल

ये क्रिया आप ११ दिनों तक करे आखिर दिन क्रिया पूरी हो जाने के बाद रात में ही कही दूर जाकर दोनों पुतलो को जमीन में अलग अलग गाड़ दे.याद रखे गाड़ते वक़्त भी दोनों कि पीठ एक दूसरे कि तरफ होनी चाहिए।और दोनों को एक साथ या पास पास न गाड़े जितनी दुरी पर गाड़ना सम्भव हो गाड़ दे.और वही पर दोनों पुतलो को ये कहकर हुंकुम दे कि आज से तुम दोनों अलग हो जाओ हमेशा के लिए और बिना पीछे देखे घर आ जाये।क्रिया के पहले और अंत में नित्य दुरुद अवश्य पड ले २१ बार.
दुरुद : अल्लाहु रब्बू मुहम्दीन सल्ला अलैहि वसल्लमा नहनु इबादु मुहम्दीन सल्ला अलैहि वसल्लमा
जय माँ

2 comments:

  1. Guru ji,
    Satte ka number mil sake aisi koi sadhna hai toh post kare
    please................

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  2. जय् गुरु देव

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