Monday 16 June 2014

संकटा योगिनी साधना 



योगिनियों का तंत्र में क्या महत्व ये तो सभी जानते है.अप्सरा और यक्षिणियों से भी ऊपर है योगिनिया,माँ का ही दूसरा स्वरुप माना  जाता है इन्हे और यह सिद्धि दात्री भी मानी गयी है.

इनकी साधनाए अत्यंत क्लिष्ट होती है,क्युकी योगिनिया पूर्ण समर्पण मांगती है.और समर्पण ही सफलता की कुंजी है.कभी कभी तो वर्षो साधना करने के पश्चात इनकी कृपा प्राप्ति होती है.किन्तु कुछ पाने के लिए परिश्रम तो करना ही होता है.आज हम ब्लॉग के माध्यम से आप सभी के मध्य संकटा योगीनी  की एक लघु साधना रख रहे है.ये साधना मात्र एक दिवस की ही है.इसके माध्यम से संकटा योगिनी की साधक पर कृपा होती है.तथा जीवन में आकस्मिक रूप से आने वाले संकटो का अंत हो जाता है.तथा वर्तमान में चल रहे संकटो का भी योगिनी धीरे धीरे करके अंत कर देती है.यह साधना साधक किसी भी अष्टमी की रात्रि में,शुक्रवार की रात्रि में अथवा योगिनी सिद्धि  दिवस की रात्रि में भी कर सकता है.रात्रि ११ बजे स्नान कर लाल वस्त्र धारण करे तथा लाल आसन पर उत्तर की और मुख कर बैठ जाये।सर्व प्रथम साधना कक्ष के चारो कोनो में एक एक सरसो के तेल का दीपक जलाकर रख दे.और दीपक में २ लौंग, और एक इलाइची भी डाल दे.ये दीपक साधना समाप्त होने तक जलते रहना चाहिए।अब आसन  पर बैठकर भूमि पर लाल वस्त्र बिछा दे.वस्त्र पर किसी भी धातु का लोटा रखे ताम्बे का हो तो उत्तम है.इस लोटे को पूरा अक्षत से भर दे.अब इस लोटे पर एक कटोरी गेहू अथवा चने की दाल से भरकर रखे.और एक गोल बड़ी सुपारी को हल्दी से रंजीत कर कटोरी में स्थापित करे.जिन साधको के पास दस महाविद्या सिद्धि गोलक है,वे लोग गोलक को हल्दी से रंजीत कर स्थापित करे.अब गोलक अथवा सुपारी का सामान्य पूजन करे.कुमकुम,हल्दी,अक्षत लाल पुष्प अर्पित करे.कोई भी मिष्ठान्न अर्पित करे.यदि घर का बना हुआ हो तो और भी उत्तम होगा।शुद्ध घृत का दीपक प्रज्वलित करे.धुप आदि भी अर्पित करे.हाथ में जल लेकर संकल्प ले की जीवन के समस्त संकटो के निवारण हेतु में यह साधना कर रहा हु.माँ संकटा योगिनी आप मेरे जीवन से समस्त संकटो का अंत कर दीजिये तथा भविष्य में आने वाले सभी संकटो से मेरी रक्षा करे. जल भूमि पर छोड़ दे.

इसके पश्चात आपके पास जो भी माला उपलब्ध हो उससे निम्न मंत्र की २१ माला जप करे.वैसे इस साधना में मूंगा अथवा रुद्राक्ष माला श्रेष्ठ रहती है.प्रत्येक माला के बाद सुपारी अथवा गोलक पर हल्दी की एक बिंदी अवश्य लगाये। इस प्रकार २१ माला पूर्ण करे.माला जाप के बाद अग्नि प्रज्वलित कर मात्र १०८ आहुति घृत एवं काली मिर्च से प्रदान करे.

ॐ ह्रीं क्लीं चण्डे प्रचण्डे हूं हूं हूं संकटा योगिन्यै नमः 

Om Hreem Kleem Chande Prachande Hoom Hoom Hoom Sankata Yoginyayi Namah 

साधना में अर्पित किया गया मिष्ठान्न अगले दिन गाय को खिला दे.कटोरी में रखा अनाज और सुपारी जल में विसर्जित कर दे.गोलक का प्रयोग किया हो तो,उसे धोकर सुरक्षित रख ले.लोटे में भरा हुआ अक्षत किसी भी मंदिर में भूमि पर बिछे हुए लाल वस्त्र में बांध कर अर्पित कर दे.इस प्रकार ये एक दिवसीय साधना पूर्ण होगी तथा साधक पर देवी योगिनी की कृपा होगी।इस मंत्र का एक प्रयोग और है यदि अचानक कोई ऐसी समस्या आ जाये जिसका हल न दिखाई दे रहा हो तो गाय के गोबर का कंडा जलाये और उस पर घी तथा गुड मिलाकर २१ आहुति उत्तर मुख होकर प्रदान कर दे.योगिनी कृपा से कोई न कोई हल निकल जायेगा।परन्तु इसके पहले उपरोक्त साधना अवश्य करे तभी ये मंत्र प्रभाव में आ पायेगा।

आप सभी की साधना सफल हो इसी कामना के साथ.

जय अम्बे 

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Tuesday 10 June 2014

पितृ कृपा प्राप्ति नारायण प्रयोग 


पितृ कृपा के बिना मनुष्य का जीवन बड़ा अस्त व्यस्त हो जाता है.क्युकी हमारे जीवन में इनका भी एक मुख्य स्थान है.यही कारण है की हमारे धर्म में श्राद्ध आदि करने का नियम है.वर्ष के सोलह दिवस हम अपने पित्रो के नाम कर देते है,ताकि उनका आशीष हमें प्राप्त हो और हमारा जीवन सफल हो.किन्तु कभी कभी पितृ हमसे नाराज़ भी हो जाते है.और पित्रो की रुष्टता व्यक्ति पर बड़ी भारी  पड़ती है.

क्या कारण है की पितृ रुष्ट हो जाते है ?

सामर्थ्यवान होते हुए भी तर्पण आदि ना करना।

पशु पक्षियों की सेवा ना करना। 

वृक्षों को काटना या अकारण कष्ट देना। 

पितरो की निंदा करना। 

घर के वृद्धो की सेवा ना करना तथा  उन्हें कष्ट देना।

और भी कई कारण जिससे पितृ नाराज़ हो जाते है.मित्रो जिनके कारण आपका अस्तित्व है,जिनका नाम आपके नाम से जुड़ा है.उनकी ही यदि कृपा आप पर से हट जाये तो जीवन दुष्कर तो होगा ही ना.

इसलिए समय समय पर सामर्थ्य अनुसार पितरो को प्रसन्न करते रहना चाहिए।ताकि उनकी कृपा प्राप्त होती रहे.यदि किसी कारण पितृ रुष्ट हो  जाये तो उन्हें मनाना अतिआवश्यक है.

परन्तु मनाया कैसे जाये ?

चिंता ना करे , साधना मार्ग ने हर समस्या का हल मनुष्य के हाथो में दिया है आवश्यकता है तो बस इतनी की हम साधना करे वो भी पूर्ण समर्पण के साथ.आज यहाँ आपको एक साधना दे रहे है जिसके माध्यम से पित्रो की कृपा तो प्राप्त होती ही है साथ ही यदि वे किसी कारण रूठ गए हो तो मान जाते है.चाहे वंशज की त्रुटि कितनी ही बड़ी क्यों ना हो परन्तु इस प्रयोग को करने के बाद उन्हें मानना ही पड़ता है.क्युकी सबसे बड़े पितृ भगवान नारायण है और उनकी आज्ञा तो सभी पित्रो को मानना ही पड़ती है.ये प्रयोग अत्यन्त सरल है.बिना किसी समस्या के साधक इसे कर सकता है.इसमें आपको कोई भी विशेष नियम पालने की आवश्यकता नहीं है.बस एक ही नियम की आवश्यकता है और वो है पूर्ण विश्वास।यदि प्रयोग के प्रति विश्वास ना हो तो वे सफल नहीं होते है.अतः पूर्ण विश्वास से करे. पूर्णिमा को प्रातः ४ से ९ के मध्य स्नान करे.और अपने पूजन कक्ष में  जाकर उत्तर अथवा पूर्व की और मुख कर बैठ जाये।इसमें आसन एवं वस्त्र का कोई बंधन नहीं है.कोई भी वस्त्र धारण किये जा सकते है.किसी भी आसन  पर बैठा जा सकता है.अब सामने एक थाली रखे किसी भी धातु की और उसमे केसर , हल्दी अथवा अष्टगंध से " पितृ " लिखे इसके बाद उस पर एक गोल बड़ी सुपारी रखे.यह सुपारी विष्णु स्वरुप है.इनका सामान्य पूजन करे.पुष्प  अर्पित करे शुद्ध घृत का दीपक प्रज्वलित करे.तथा गुड नैवेद्य में अर्पित करे.

अब एक पात्र  में थोड़ा शुद्ध जल ले लीजिये और उस जल में ग़ुड ,सफ़ेद तिल तथा काले तिल मिला लीजिये।अब निम्नलिखित मंत्र को पड़े और एक चम्मच जल सुपारी पर अर्पित करे.इस प्रकार आपको ये क्रिया १०८ बार करनी है मंत्र पड़ना है और जल अर्पित करना है.जब ये क्रिया पूर्ण हो जाये सारे  जल को पात्र  में पुनः भर ले और ये जल पीपल के वृक्ष की जड़ में अर्पित कर दे.और प्रार्थना करे.

है श्री हरी भगवान विष्णु यदि मेरे पितृ मुझसे रूठ गए हो तो आपके आशीर्वाद से वे मान जाये,एवं मुझे तथा मेरे पुरे परिवार को अपना आशीर्वाद प्रदान करे.मेरे कूल में कभी किसी को पितृ दोष ना लगे ना ही किसी पर पितृ कभी कुपित हो.

इस प्रकार साधक को ५ पूर्णिमा तक यह क्रिया करनी होगी।यदि साधक चाहे तो इससे अधिक भी कर सकता है अथवा हर पूर्णिमा को करने का नियम बना सकता है.यदि बीच में कोई पूर्णिमा किसी कारण छूट जाये तो चिंता की कोई बात नहीं है.इसमें कोई दोष नहीं लगता है बस किसी भी तरह ५ पूर्णिमा कर ले.नैवेद्य में जो गुड अर्पित किया था वो भी पीपल को ही अर्पित करना है.

ॐ  नमो नारायण को नमस्कार , नारायण धाम को नमस्कार ,नारायण के धाम कौन जाये,पितृ प्यारे सब जग न्यारे,नारायण शांति देओ,पितृ शांत कराओ ,कुपित पितृ मनाओ ,पूजा भेट स्वीकार करो पितृ दोष नाश  करो,मीठा भोग नित खाओ, रूठे पितर मनाओ, सेस नाग की आन दू  वसुंधरा की दुहाई।

मंत्र पूर्ण रूप से शुद्ध है अतः अपनी और से कोई परिवर्तन ना करे.और जब तक क्रिया पूर्ण न हो किसी से भी  बात ना करे.जो भी साधक पूर्ण भाव से इस प्रयोग को ५ पुर्णिमा  करेगा,उस पर निश्चय ही पित्रो की कृपा होगी।संभव हो तो इस दिन व्रत भी  किया जा सकता है परन्तु ये आवश्यक अंग नहीं है.परन्तु साधना के दिन जब तक प्रयोग पूर्ण ना कर ले तब तक जल के अतरिक्त कुछ और ग्रहण ना करे.कभी कभी स्वप्न में पितृ दिखाई देते है अतः घबराने की आवश्यकता नहीं है.ऐसा साधना में कभी कभी हो जाता है.

तो देर कैसी आज ही साधना का दिवस निश्चित करे  और लग जाये अपने पितरो को मनाने में.अगर इतने सरल प्रयोग के बाद भी कोई इसे न कर पाये तो फिर ऐसे मनुष्य का कुछ नहीं हो सकता।अतः साधनाओं को गंभीरता से ले.तभी आप सफलता के निकट पहुंच पाएंगे।

जगदम्ब प्रणाम 


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