Saturday 12 April 2014

चंडिका प्रयोग 

( ऊर्जा प्राप्ति का  तीव्र विधान )



जो सभी मनुष्यों में शक्ति निवास करती है,उस शक्ति अर्थात जगदम्बा को हमारा कोटि कोटि प्रणाम।

शक्ति अर्थात ऊर्जा , वो ऊर्जा जिससे ये समस्त संसार चलायमान है.जिसके बिना ना तो हमारा अस्तित्व है ना ही इस संसार का.जिसकी कृपा के बिना बीज से अंकुर तक नहीं फुट सकता,तो हम मनुष्यों का जीवन चलना तो दुर् कि बात है.

यही ऊर्जा शक्ति हमें साधनाओं से प्राप्त होती है.वैसे तो हर मनुष्य में जन्म से ही ऊर्जा विद्यमान  होती है.परन्तु वो केवल उतनी ही होती है.जितनी एक जीवन जीने के लिये आवश्यक होती है.और जीवन को जीने कि ऊर्जा तो हम भोजन से भी प्राप्त कर लेते है.किन्तु जहा साधनात्मक ऊर्जा कि बात आती है.वहाँ  अधिकतर मनुष्य स्वयं को ऊर्जाहीन पाते है.हम जितने भी कार्य करते है,जैसे भोजन करना,स्नान करना,चलना,सोना और भी जो दैनिक कार्य है,इन सभी को करने में ऊर्जा कि आवश्यकता लगती ही है.और साथ ही इन सभी कार्यो में सतत देहिक ऊर्जा का प्रयोग होता रहता है.और इस ऊर्जा कि पूर्ति हम भोजन के माध्यम से पुनः कर लेते है.

किन्तु साधनात्मक ऊर्जा कि पूर्ति भोजन से नहीं कि जा सकती।चक्रो को ऊर्जा भोजन से नहीं अपितु मंत्रो तथा ध्यान से प्राप्त होती है.अगर एक कटु सत्य कहु तो मनुष्य अपनी देहिक ऊर्जा का इतना नाश नहीं करता है,जितना कि वो अपने भीतर स्थापित  चक्रो कि तथा अध्यात्मिक ऊर्जा का नाश कर देता है. जब आप जूठ बोलते है,किसी को अपशब्द बोलते है,किसी के प्रति नकारात्मक भाव मन में लाते है.या किसी कि निंदा करते है,तब तीव्रता के साथ आपकी साधनात्मक ऊर्जा का नाश होता है.यही कारण है कि विद्वानो ने सदा कहा है कि साधना काल में यथा सम्भव मौन रहे और इष्ट का चिंतन करते रहे.ऐसा करने से आपकी ऊर्जा में वृद्धि होती है.और ऊर्जा के नाश होने कि सम्भावना कम हो जाती है.जिस प्रकार देहिक ऊर्जा के ना होने से देह कार्य करना बंद कर देती है.उसी प्रकार साधक में साधनात्मक ऊर्जा ना हो या उसके चक्र ऊर्जाहीन हो जाये तो,उसकी साधनाये सफल नहीं हो पाती है.तथा साधना काल में भी उसका चित्त स्थिर नहीं हो पाता है.साधना में एकाग्रता और सफलता प्राप्ति के लिए एक साधक में साधनात्मक ऊर्जा का होना अत्यंत आवश्यक है.इसलिए में बार बार कहता हु कि अधिक से अधिक साधक को इष्ट मंत्र करते रहना चाहिए तथा व्यर्थ कि बातो से बचना चाहिए।ताकि उसका आतंरिक विकास होता रहे.बुद्धि के घोड़ो कि लगाम खीचकर रखना चाहिए तथा  उन्हें अपने इष्ट कि और बढ़ाते रहना चाहिए।अन्यथा ऊर्जा का नाश होगा ही.आज हम आपको चण्डिका प्रयोग दे रहे है.इस प्रयोग के माध्यम से साधक अपने भीतर साधनात्मक ऊर्जा को बड़ा सकता है.इस प्रयोग के माध्यम से साधक के सभी चक्रो में एक विशेष ऊर्जा का संचार होता है,जिसके माध्यम से वो साधना मार्ग में प्रगति प्राप्त करता है.यह प्रयोग आप किसी भी कृष्ण पक्ष की अष्टमी,पूर्णिमा अथवा किसी भी मंगलवार की रात्रि ११ बजे के बाद  आरम्भ कर सकते है. साधक स्नान कर लाल वस्त्र धारण करे तथा लाल आसन पर उत्तर की और मुख कर बैठ जाये।अपने सामने भूमि पर ही एक लाल वस्त्र बिछा दे.अब इस पर कोई भी मिटटी का घड़ा स्थापित करे,साधक चाहे तो स्टील का लोटा अथवा ताम्बे का लोटा भी स्थापित कर सकता है. अब सर्व प्रथम इस लोटे के अंदर पांच सुपारी,५ लौंग,और पांच इलाइची रखे और इनके ही साथ रखे शिव शक्ति महाअघोर कवच.ये सभी वस्तुए कवच के साथ एक लाल वस्त्र में बांधकर लोटे में रखना है.अब ऊपर से इस पात्र को अक्षत से भर दीजिये।इसके बाद इस पात्र  पर एक ऐसी प्लेट या कोई कटोरी रखे जिससे की ये पूरी तरह ढक जाये।फिर इस कटोरी में भी अक्षत भरे और इस पर सिद्धिप्रद रुद्राक्ष रख दीजिये।ये रुद्राक्ष आपको कवच के साथ ही भेजा गया था.ये क्रिया पूर्ण हो जाने के बाद पात्र का सामान्य पूजन करे.कुमकुम हल्दी अक्षत अर्पित करे.तथा पात्र के समक्ष ही कोई भी मिष्ठान्न रखे.घृत अथवा तेल  का दीपक प्रज्वलित करे. माँ चण्डिका  से प्रार्थना करे की इस साधना के फल स्वरुप मुझमे साधनात्मक ऊर्जा एवं शक्ति का विकास हो.इसके बाद साधक मूंगा माला अथवा रुद्राक्ष माला से,निम्न मंत्र की २१ माला संपन्न करे.


ॐ स्त्रीं ह्रीं श्रीं प्रचंड चण्डिके  हूं हूं हूं  ऐं  फट 

Om Streem Hreem Shreem Prachand Chandike Hoom Hoom Hoom Aim phat 

जब जाप पूर्ण हो जाये तब साधक थोड़ा कुमकुम लेकर पानी में गिला कर ले और उपरोक्त मंत्र को ही पड़ते हुए पात्र पर ११ बिंदी कुमकुम की लगाये।तथा पुनः प्रार्थना करे.तथा कम से कम सीधे होकर ५ मिनट तक आसन पर ही बैठे रहे और पुनः मंत्र का मानसिक जाप करे.इसके बाद साधक प्रसाद स्वयं वही बैठे बैठे खा ले.इस प्रकार साधना ८ दिनों तक करे.इस साधना में हवन की कोई आवश्यकता नहीं है.परन्तु साधक चाहे तो यथा संभव आहुति प्रदान कर सकता है.ऐसा करने से मंत्र में चैतन्यता ही आती है.८ दिन बाद रुद्राक्ष तथा कवच को सुरक्षित रख ले.अक्षत और लाल वस्त्र किसी मंदिर में रख दे लौंग सुपारी तथा इलाइची को किसी पीपल वृक्ष के निचे रखे आये.यदि आपने मिटटी की मटकी का प्रयोग किया है तो उसे भी किसी मंदिर में दान कर दे.यदि ताम्र पात्र का प्रयोग किया है तो धोकर पुनः प्रयोग किया जा सकता है.सभी साधको को समय समय पर इस प्रयोग को करते रहना चाहिए जिससे की उनकी साधनात्मक ऊर्जा का विकास होता रहे.आप सभी सदा प्रसन्न रहे इसी कामना के साथ.

जय अम्बे 


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Wednesday 9 April 2014

Navratri aur ek yojna

नवरात्री और एक योजना 



मित्रो हम ये बात भलीभाती जानते है कि आप में से कई साधको कि सदा से इच्छा रही है.पारद के शुद्ध एवं संस्कारित रसलिंग को पूजने कि.परन्तु रसलिंग कि धन राशि अधिक होने के कारण सबके लिए इसे लेना सम्भव नहीं हो पाया।परन्तु इसमें हमारा भी कोई दोष नहीं है.पारद को शुद्ध कर अष्ट संस्कार करना पड़ता है,इसके बाद पारदेश्वर का निर्माण होता है.अगर बात यहाँ तक भी होती तो पारद शिवलिंग कि राशि इतनी अधिक नहीं होती।किन्तु केवल संस्कार कर लिंग बना देना ही पर्याप्त नहीं है.प्रत्येक संस्कार में पृथक पृथक क्रिया कि जाती है.और किस मार्ग से हम इसके निर्माण कर रहे है उसी प्रकार हर संस्कार में क्रिया करनी होती है.पृथक पृथक मंत्रो का जाप और हर संस्कार पर एक लघु अनुष्ठान करना होता है.इतनी सब क्रिया के बाद निर्माण होता है एक रसलिंग का.अगर बात केवल निर्माण कि होती तो,हम केवल पारद को शुद्ध करके उसका बंधन कर देते और शिवलिंग का निर्माण कर देते।और ये आपको प्राप्त भी हो जाता ४०० या ५०० में ,परन्तु ऐसे निर्माण का क्या लाभ जो किसी कम का न हो.जब तक एक एक क्रिया व्यवस्थित रूप से न कि जाये।एक एक संस्कार में मंत्रो कि ऊर्जा न डाली जाये तब तक रसलिंग किसी कम का नहीं होता।और गलत विधि से निर्माण करके हम रस तंत्र कि नियमो से खिलवाड़ ही करेंगे साथ ही शिव के कोप के भाजन भी बनेंगे।बाज़ार में आज यही हो रहा है.

२० प्रतिशत पारद + ८० प्रतिशत रांगा = पारदेश्वर

परन्तु आप स्वयं ही सोचे क्या ये निर्माण उचित है.और यही कारण है कि बाज़ार में मिलने वाले शिवलिंग रस तंत्र के सिद्धांतो पर खरे नहीं उतरते है.थोक में पारा और रांगा मिलाकर साँचो में डाल दिया जाता है और बना दिए जाते है पारदेश्वर। और यही पारदेश्वर बड़े ही अपमानजनक अवस्था में पटक दिए जाते है थोक कि दुकानो पर.आज भी कोई हमारे यहाँ आकर देख सकता है कि रसलिंग तथा अन्य पारद विग्रह को हम कितने सम्मान के साथ रखते है.और जब यहाँ से किसी अन्य व्यक्ति को ये भेजे जाते है तब भी बड़ी ही सावधानी से रखकर भेजे जाते है.क्युकी इनमे स्थापन निर्माण के समय ही कर दिया जाता है.अतः वो हमारे लिए मात्र एक शिवलिंग नहीं अपितु साक्षात् शिव ही है.और यही कारण है कि हमारे द्वारा निर्मित पारद शिवलिंग महंगा होता है.क्युकी वो शुद्ध होता है एवं संस्कारित होता है.

लाख प्रयत्न के बाद भी हम शिवलिंग कि धन राशि में कमी नहीं कर पा रहे थे.क्युकी उसके निर्माण में धन का व्यय ही बहुत अधिक हो जाता था.इसी कारण ५० ग्राम का शिवलिंग ६००० और १०० ग्राम का १२००० में हमारे द्वारा भेजा जा रहा था.और इसका मुख्य कारण यही था कि इससे सम्बंधित सारा परिश्रम हमें और हमारी टीम को ही करना होता था.

परन्तु नवरात्री के निकट आते ही भगवती जगदम्बा कि कृपा हम पर बरसी और संस्था को कुछ ऐसे साधक प्राप्त हुए ,जिन्होंने पारद शिवलिंग के निर्माण में सहयोग प्रदान किया।और उनके सहयोग से हमने ५० ग्राम के और १०० ग्राम के शिवलिंग का निर्माण किया। हा किन्तु उन्होंने भी अपने सामर्थ्य अनुसार ही सहयोग प्रदान किया और ५० ग्राम तथा १०० ग्राम के ११ -११ शिवलिंग का निर्माण माँ आदि शक्ति कि कृपा से पूर्ण हुआ.जो ५० ग्राम का शिवलिंग ६००० में आपको प्राप्त हो रहा था वो अब ४००० में प्राप्त होगा।और १०० ग्राम का जो शिवलिंग आपको १२००० में प्राप्त हो रहा था वो अब ७००० में प्राप्त होगा।

अर्थात जब आप ५० ग्राम शिवलिंग लेंगे तो आपको ४००० जमा करने होंगे बाकि २००० कि व्यवस्था इन साधको के द्वारा कि गयी है. और १०० ग्राम के लिए आपको ७००० जमा करने होंगे बाकि ५००० कि व्यवस्था भी इन्ही साधको के द्वारा कि जायेगी। परन्तु इन साधको कि भी अपनी सीमा है अतः इस योजना के अंतर्गत ५० ग्राम के ११ शिवलिंग है तथा १०० ग्राम के भी ११ शिवलिंग है.इन संख्या के समाप्त होते ही पुनः वही राशि शिवलिंग पर लागु हो जायेगी।

अब हम अपनी अगली योजना कि और आते है.जिस प्रकार हमने शिवलिंग में सहयोग करने वाले खोजे उसी प्रकार हमने शिव शक्ति महाघोर कवच में भी सहयोग करने वाले खोज ही लिए.या यु कहे कि माँ कि कृपा से मिल गए.अतः इन शिवलिंग के साथ कवच का निर्माण भी आरम्भ हुआ.और उन्हें जोड़ दिया गया इन शिवलिंग के साथ.जब भी आप इस नवरात्री योजना के अंतर्गत शिवलिंग मंगवाएंगे उसके साथ आपको उपहार स्वरुप शिव शक्ति महा अघोर कवच तथा सिद्धिप्रद रुद्राक्ष भेजा जायेगा।जिस पर आप अन्य साधनाये भी कर पाएंगे।

इस पोस्ट में सभी बाते स्पष्ट कर दी गयी है.वज़न तथा धन राशि भी.अतः मेल में कोई प्रश्न पूछने कि आवश्यकता ही नहीं है.जिसे भी ये शिवलिंग प्राप्त करना हो वे ही मेल करे.तथा मेल के विषय में नवरात्री योजना अवश्य लिखे। ताकि इस योजना के अंतर्गत आपको विग्रह भेजा जा सके.मेल करने पर आपको ये किस प्रकार प्राप्त होगा वो भी बता दिया जायेगा। और इन शिवलिंगो कि समाप्ति के बाद कोई इस योजना के अंतर्गत मेल आदि न करे. आप

SADHIKA303@GMAIL.COM

पर मेल कर सकते है.

जय अम्बे