Tuesday 26 November 2013

Sarv Mangala Sadhana

  सर्वमंगला साधना 

माँ जगदम्बे को मंगल कारिणी कहा गया है,क्युकी जिस पर भगवती कि 
कृपा हो जाती है,उसके जीवन में सर्वत्र मंगल ही होता है.इसलिए माँ को सर्व मंगला के नाम से भी जाना जाता है.वास्तव में सर्व मंगला माता पार्वती  का ही दूसरा नाम है.माँ को कई जगह पर मंगला गौरी के रूप में भी पूजा जाता है. आज भी कई प्रांतो में सुहागन स्त्रियां मंगला गौरी का व्रत रखती है,और अखंड सौभाग्य कि कामना करती है.वही दूसरी तरफ गृहस्थी में पूर्ण सुख कि प्राप्ति हेतु माता पार्वती का सर्व मंगला स्वरुप साधको के मध्य प्रचलित है.

अब प्रश्न उठता है कि हमें ये सर्व मंगला साधना कब करनी चाहिए तथा इसके क्या लाभ है ?

प्रिय मित्रो

जब गृहस्थी में अकारण तनाव बना हुआ हो.

रात दिन कलह हो रहा हो.

घर को नाना प्रकार के रोगो ने घेर लिया हो.

हर कार्य पूरा होते होते रुक जाता हो.

लाख परिश्रम के बाद भी प्रगति न हो पा रही हो.

संतान विरोध पर उतारू हो.

तब करे ये दिव्य साधना।साथ ही साधना के कई लाभ है जो पूर्ण निष्ठा से करके ही प्राप्त किये जा सकते है.मित्रो आदि शक्ति जिस पर प्रसन्न होती है,उसके लिए कुछ भी कर सकती है.परन्तु इसके लिए हमें अपने अंदर पूर्ण निष्ठा तथा समर्पण को स्थान देना होगा।साथ ही  धैर्य कि अत्यंत आवश्यकता है. एक या दो दिन में हम उच्च कोटि के साधक नहीं बन सकते है,ये एक लम्बी तथा अत्यंत परिश्रम पूर्ण यात्रा है.जिसे बड़ी सजकता से पूर्ण करना होता है.

खैर में चर्चा कर रहा था सर्व मंगला साधना कि,तो आईए इस विषय पर हम आगे बढ़ते है और जानते है कि किस तरह इस दिव्य विधान को पूर्ण किया जा सकता है.

इस साधना को आप किसी भी पूर्णिमा से आरम्भ कर सकते है.समय संध्या काल में ६ से ९ के मध्य का होगा।आपके आसन वस्त्र लाल अथवा श्वेत हो.स्नान कर पूर्व या उत्तर कि और मुख कर बैठ जाये।अपने सामने बाजोट रखे तथा उस पर उसी रंग का वस्त्र बिछाये जिस रंग के वस्त्र आपने  धारण किये हो.अब बाजोट पर एक हल्दी मिश्रित अक्षत कि ढेरी बनाये।उस पर सुपारी स्थापित करे,ये सुपारी माता पार्वती का प्रतिक होगी।अब इस ढेरी आस पास एक एक ढेरी और बनाये,ये ढेरी आपको कुमकुम मिश्रित अक्षत से बनानी है.और इन दोनों पर भी एक एक सुपारी स्थापित करे.ये दोनों सुपारी माँ कि सहचरी जया तथा विजया का प्रतिक है.इसके बाद एक ढेरी काले तील कि बनाये माता पार्वती के ठीक पीछे,उस पर एक सुपारी स्थापित करे.ये सुपारी माता पार्वती के ही दूसरे स्वरुप भगवती महेश्वरी का प्रतिक है जो कि भगवान  महेश्वर अर्थात शिव के ह्रदय से प्रगट होती है.माता सर्व मंगला के पीछे मूल रूप से यही महेश्वरी शक्ति कार्य करती है.तथा साधक के मनोरथ पूर्ण करती है.

अब आप सर्व प्रथम सद्गुरु तथा गणेश पूजन संपन्न करे.इसके बाद निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए माता पार्वती के दाहिनी और रखी हुई सुपारी अर्थात जया शक्ति पर,कुमकुम,हल्दी तथा अक्षत अर्पण करे 

ॐ ह्रीं ऐं जया दैव्यै नमः 

om hreem aim jaya devyayi namah 

इसके बाद माँ के बायीं और रखी सुपारी पर कुमकुम,हल्दी तथा अक्षत अर्पण करे निम्न मंत्र बोलते हुए.

ॐ क्लीं श्रीं क्लीं ऐं विजया शक्त्यै नमः 

om kleem shreem kleem aim vijyaa shaktyayi namah 

इसके बाद माता महेश्वरी का तथा माता पार्वती का सामान्य  पूजन करे.कुमकुम,अक्षत,हल्दी,सिंदूर,पुष्प आदि अर्पण करे.शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित करे.तथा भोग में केसर मिश्रित खीर का भोग अर्पित करे.

माँ पार्वती तथा महेश्वरी का पूजन करते समय तथा सामग्री अर्पित करते समय सतत निम्न मंत्र का जाप करते रहे.

ॐ ह्रीं ॐ 

om hreem om 

इसके बाद हाथ में जल लेकर संकल्प ले कि किस मनोकामना कि पूर्ति हेतु आप ये साधना कर रहे है.तत्पश्चात निम्न मंत्र कि रुद्राक्ष माला से एक माला जाप करे 

ॐ ह्रीं महेश्वरी ह्रीं ॐ नमः 

om hreem maheshwari hreem om namah 

इसके बाद सर्व मंगला मंत्र कि ११ माला जाप करे,सर्व मंगला मंत्र इस प्रकार है.

ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं ऐं  सर्वमंगला मंगल कारिणी शिवप्रिया पार्वती मंगला दैव्यै नमः 

om hreem kleem shreem aim sarvmangala mangal karini shivpriya parvati mangala devyayi namah

इसके बाद पुनः एक माला महेश्वरी मंत्र कि संपन्न करे.

मंत्र जापके पश्चात् समस्त जाप माँ पार्वती के श्री चरणो में समर्पित कर दे.तथा प्रसाद पुरे परिवार में वितरित कर स्वयं भी ग्रहण करे.इसी प्रकार ये साधना आपको ७ दिवस तक करना है.अंतिम दिन घी में अनार के दाने तथा जायफल का चूर्ण मिलाकर  १०८ आहुति अग्नि में प्रदान करे.इस प्रकार ७ दिवस में ये दिव्य साधना पूर्ण होती है.अगले दिन अक्षत,सुपारी,वस्त्र,आदि सभी जल में विसर्जित कर दे.सम्भव हो तो किसी कन्या को भोजन ग्रहण करवाये।और दक्षिणा दे आशीर्वाद ले.ये सम्भव न हो तो कन्या को मिठाई तथा दक्षिणा देकर आशीर्वाद ले.

निसंदेह पूर्ण मन तथा एकग्रता से साधना करने पर माँ सर्व मंगला साधक के समस्त कष्टो का निवारण कर सुख तथा अपना आशीष प्रदान करती है.माँ आपकी समस्त मनोकामना पूर्ण करे इसी कामना के साथ 

जय अम्बे 

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Dhanvantari Mangal Prayog

धन्वन्तरि मंगल प्रयोग 


पहला सुख निरोगी काया,ये हम सभी सदा से सुनते आये है.और सत्य भी है क्युकी यदि देह में कोई रोग उत्पन्न हो जाये तो कष्ट देता ही है.रोग उत्पत्ति के कई कारण हो सकते है.किन्तु एक मुख्य कारण है,रोग प्रतिरोधक क्षमता का कम हो जाना।ये रोग प्रतिरोधक क्षमता है क्या ? 

वास्तव में ये देह का हिस्सा नहीं बल्कि देह कि सकारात्मक ऊर्जा ही तो है जो हमें रोगो से सदा सुरक्षित रखती है.किन्तु इस ऊर्जा में कमी आती है.असयंमित दिनचर्या से,अनुचित खान पान से.किन्तु हम में से कई लोग ऐसे भी है,जिनका खान पान तथा दिनचर्या सयंमित होते हुए भी वे रोग ग्रस्त हो जाते है.इसका क्या कारण है कि सब कुछ ठीक होते हुए भी रोग हमें घेर लेता है ? औषधि लेने के बाद भी रोग जा नहीं रहा है,हर उपचार से थक चुके है किन्तु कोई लाभ नहीं।इसका मुख्य कारण है कि प्रकृति का  सहयोग हमें प्राप्त नहीं हो पा रहा है.निश्चय रूप से ये सत्य है कि हम प्रकृति का सतत अपमान करते आ रहे है.इस कारण रोगो ने हमें घेरना आरम्भ कर दिया है.सभी का कर्त्तव्य है कि प्रकृति कि सेवा तथा रक्षा करे.क्युकी देवता उनसे ही प्रसन्न होते है जो प्रकृति कि रक्षा करते है.तभी तो हिमालय पर आज भी देवता विचरण करने आते है क्युकी प्रकृति ने आज भी वहा  अपनी कृपा बरसा रखी है.भगवान  धन्वन्तरि को देवताओं कि श्रेणी में विशेष स्थान प्राप्त है.रोग को हरना तथा औषधि में ऊर्जा देना इनके ही कार्य के अंतर्गत आता है.आयुर्वेद और संसार कि हर चिकित्सा पद्दत्ति के देवता है भगवान धन्वन्तरि।इनकी कृपा और आज्ञा के बिना औषधि देह पर कार्य नहीं करती है.यदि लाख उपचार के बाद भी आप  रोग मुक्त नहीं हो पा  रहे है तो उसका मुख्य कारण यही है कि,आपको धन्वन्तरि कि कृपा कि आवश्यकता है.कही न कही उनकी कृपा कि ऊर्जा आपको प्राप्त नहीं हो रही है.इसी कारण आप उपचार के बाद भी रोगग्रस्त होते जा रहे है.

तो क्या किया जाये जिससे कि भगवान धन्वन्तरि कि हम पर कृपा हो ?और हम  रोग मुक्त जीवन जी सके.

मित्रो तंत्र ने हर समस्या का हल मानव जाती को दिया है.आवश्यकता है केवल उस और ध्यान देनी कि तथा अपने ऋषि मुनियो  के  इस अनमोल ज्ञान को सहेजने कि.प्रस्तुत प्रयोग साधक के अंदर धन्वन्तरि ऊर्जा को उत्पन्न कर देता है जिसके फल स्वरुप आप जो भी औषधि लेते है वो आप पर पूर्ण रूप से अपना प्रभाव डालती है,तथा आपको रोग मुक्त करती है.आईए जानते है इस दिव्य विधान को जिसके माध्यम से आप रोग मुक्त हो सकते है.

इस प्रयोग  को आप किसी भी रविवार से आरम्भ कर सकते है.समय प्रातः ४ से ९ के मध्य का हो अन्यथा संध्या वेला में भी किया जा सकता है उसका समय होगा ६ से ८ के मध्य।आपके आसन तथा वस्त्र पीले हो.स्नान कर उत्तर कि और मुख कर बैठ जाये।सामने भूमि पर हल्दी से चोकोर लीप दे.और उस पर पिला वस्त्र बिछाये।अब एक ताम्बे का लोटा ले और उसमे कोई भी ५ प्रकार कि औषधियों का चूर्ण भर दे.कलश को पूरा भरना है इस बात का ध्यान रखे.आप जो मुख्य औषधि उसमे भरेंगे उनके नाम इस प्रकार है.

१. अश्वगंधा 

२. शतावरी 

३.आवला 

४. जटामासी 

५. हल्दी 

ये औषधि भरने के बाद पीले वस्त्र पर अक्षत कि एक ढेरी बनाये तथा उस पर ये लोटा स्थापित कर दे.अब लोटे पर एक मिट्टी का दीपक तील का तैल डालकर रख दे.अब लोटे पर हल्दी से ९ बिंदी लगाये।इसके बाद दीपक प्रज्वलित करे.दीपक और कलश का सामान्य पूजन करे.कोई भी पिली मिठाई का भोग अर्पित करे.अब दीपक कि लो पर त्राटक करते हुए मंत्र का २१ माला रुद्राक्ष माला से जाप करे.स्मरण रहे जब  तक जाप चलेंगे दीपक जलता रहे.

                                       मंत्र 

ॐ ऐं ह्रीं ह्रीं ह्रीं धन्वन्तरि सर्व रोग नाशय आरोग्यम देहि देहि ह्रीं ह्रीं ह्रीं ऐं नमः 

Om Aim Hreem Hreem Hreem Dhanvantari Sarv Rog Nashay Aarogyam Dehi Dehi Hreem Hreem Hreem Aim Namah

मंत्र जाप के बाद जाप भगवान  धन्वन्तरि को समर्पित कर दे.और प्रसाद पुरे परिवार में वितरित कर स्वयं ग्रहण कर ले.इसी प्रकार ये साधना ३ दिन करे.तीसरे दिन जाप के बाद,पञ्च औषधि घी में मिलाकर अग्नि में कम से कम १०८ आहुति प्रदान करे. इससे अधिक साधक चाहे तो अधिक आहुति भी दी जा सकती है.इस प्रकार ये ३ दिवसीय " धन्वन्तरि मंगल प्रयोग " पूर्ण होता है.

अगले दिन प्रातः जो पिला वस्त्र बिछाया था उसी में कलश कि औषधि निकला कर रख ले और अक्षत भी.और इनकी पोटली बनाकर  जल में प्रवाहित कर दे या किसी  वृक्ष के निचे रख दे.अब आपके पास खाली  लोटा बचता है इसे संभाल  कर पूजा घर या कही पवित्र स्थान में रखे.

जब घर में कोई रोगी हो इस लोटे में थोडा जल लेकर २१ बार उपरोक्त मंत्र को पड़कर जल को अभिमंत्रित कर ले और रोगी को पिलाये ऐसा दिन में कम से कम २ बार करे.इससे अधिक भी किया जा सकता है.इस जल के प्रभाव से रोगी पर भगवान  धन्वन्तरि कि कृपा होगी।और रोगी जो भी औषधि लेगा उस पर औषधि पूर्ण रूप से अपना प्रभाव दिखाएगी।

अगर सामान्य रूप से भी इसका जल नित्य सेवन किया जाये तो आरोग्यता कि प्राप्ति होती है.प्रयोग देखने और करने में जितना सरल है उससे कई अधिक प्रभावी है.अतः प्रयोग को कर आरोग्यता को घर में निमंत्रण दे.साथ ही धन्यवाद दे साधना मार्ग को कि यहाँ आकर हम अपने जीवन को एक नयी गति देने में समर्थ हुए.


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जय माँ 


Monday 25 November 2013

mahakali khadag prayog

महाकाली खङ्ग  प्रयोग 


वर्त्तमान समय अत्यंत दुविधापूर्ण है.क्युकी आप कलयुग में जी रहे है.और इस कलयुग कि ये विशेषता है कि,आपके पास कुछ हो न हो परन्तु शत्रु अवश्य होते है.क्युकी मनुष्य में धैर्य कि कमी होती जा रही है.जिसके कारण हर छोटी छोटी बातो पर अपने नविन शत्रुओं का निर्माण कर बैठते है.अब शत्रु कैसा भी हो बड़ा अथवा छोटा किन्तु सदा कष्ट का ही  कारण बनता है। और कुछ शत्रु तो इतने षड्यंत्रकारी होते है  कि आपका जीवन अत्यंत कष्टो से भर देते है.निश्चित रूप से हमें दया भाव को महत्व देना चाहिए क्युकी हम  मनुष्य है.किन्तु कभी कभी कुछ शत्रु पशुता कि सीमा को लाँघ जाते है.अतः ऐसे शत्रु जो हमें रात  दिन कष्ट देते है.रात  दिन जिनके कारण हम मृत्यु तुल्य जीवन जीते है.उनके लिए कोई न कोई प्रयोग करना आवश्यक हो जाता है.जगदम्बा महाकाली को शत्रु नाशिनी कहा गया है। माँ अपने खडग से अपने भक्तो के शत्रुओ का नाश करती है तथा उन्हें अभय दान देती है.माँ का रौद्र रूप केवल भक्त के शत्रुओं के लिए ही है,अन्यथा माँ अत्यंत करुणा तथा कृपामयी है.जगदम्बा अपने हाथो में खड्ग धारण करती है,और आवश्यकता पड़ने  पर भक्त के समस्त शत्रुओं पर इसी खडग से तीव्र प्रहार करती है.हमारा आज का प्रयोग इसी विषय पर है.जिसे तंत्र जगत में महाकाली खडग प्रयोग के नाम से जाना जाता है.वास्तव में ऐसे कई प्रयोग तथा साधनाये है जो आज भी साधको के मध्य गोपनीय रूप से सुरक्षित है.आवश्यकता है केवल उन्हें खोजकर जन सामान्य के मध्य लाने कि.
जब शत्रु अत्यन्त कष्ट प्रदान करने लगे,जब उसके कारण आपका जीवन अत्यंत कष्ट में आ जाये,या आपको किसी अन्य जूठे मुक़दमे आदि में फसा दिया गया हो,तब आवश्यकता है कि आप महाकाली खडग प्रयोग संपन्न करे.इस प्रयोग के माध्यम से शत्रु के सारे षड़यंत्र विफल हो जाते है तथा वो साधक से शत्रुता भुला उसके जीवन से दूर चला जाता है.ये प्रयोग सौम्य तथा लघु होकर भी अपने आप में अत्यंत तीव्र है.जो साधक के प्राणो कि रक्षा कर उसे सुरक्षित करता है.
आप प्रयोग किसी भी रविवार,शनिवार,अमावस्या,या कृष्ण पक्ष कि अष्टमी से कर सकते है.समय होगा रात्रि १२ बजे.आपके आसन वस्त्र काले हो तथा आपका मुख दक्षिण कि और हो.एक सफ़ेद कागज़ पर काजल से खडग का निर्माण करे.आपको खडग का चित्र बनाना है.जैसा महाकाली के हाथ में होता है वैसा।इसमें आप अनार कि कलम का प्रयोग करेंगे।अब उस खडग के मध्य उस शत्रु का नाम लिखे जो आपको कष्ट पंहुचा रहा हो.सामने बाजोट पर काला वस्त्र बिछाये और उस पर महाकाली का चित्र स्थापित करे.चित्र के सामने ही काली उड़द कि एक ढ़ेरी बनाकर उस पर ये खडग का चित्र रख दे.यदि शत्रु एक से अधिक हो तो आप सर्व शत्रु भी लिख सकते है खडग में.अब महाकाली का सामान्य पूजन करे साथ ही खडग का भी पूजन करे.माँ को कोई भी मिठाई का भोग अर्पण करे.तील के तैल का दीपक लगाये जो कि साधना समाप्त होने तक जलता रहे.अब शत्रु नाश हेतु तथा उससे मुक्ति हेतु संकल्प ले.अब रुद्राक्ष या काले हकीक कि माला से खडग मंत्र कि २१ माला संपन्न करे.

ॐ क्रीं क्रीं खड्गिनी खड्गधारिणी महाकाली अमुकं नाशय नाशय सर्व शत्रु निस्तेज कुरु कुरु क्रीं क्रीं खड्गिनी फट। 

मंत्र में अमुकं कि जगह  शत्रु का नाम ले एक से अधिक शत्रु होने पर सर्व शत्रु का उच्चारण करे.जाप पूर्ण हो जाने के बाद एक पात्र में अग्नि जलाये,और घी तथा काली मिर्च के द्वारा १०८ आहुति प्रदान करे अंत में एक निम्बू हाथ में लेकर मंत्र का उच्चारण करे और काटकर हवन में अर्पण कर दे.आहुति के समय मंत्र के अंत में स्वाहा लगाये।अगले दिन सुबह बाजोट पर बिछे वस्त्र में खड्ग  का चित्र तथा उड़द बांध दे और शमशान में बहार से फेक आये. इस प्रकार ये दिव्य प्रयोग संपन्न होता है.किन्तु प्रयोग को केवल द्वेष भाव में आकर न करे जब तक अत्यंत आवश्यकता न आन पड़े आप इसका प्रयोग न करे.

जय माँ 

Wednesday 20 November 2013

विद्वेषण प्रयोग

** विद्वेषण प्रयोग **

विद्वेषण शब्द से तो आप सभी परिचित होंगे,जिसका सीधा सा अर्थ है कि किन्ही दो मनुष्यों में विवाद उत्पन्न करा देना।वास्तव में विद्वेषण कोई छोटी क्रिया नहीं है.कई अल्प ज्ञानी तत्वो ने इस विद्या को तुच्छ या घृणित कह कर इसका अपमान किया है.यह सत्य है कि कुछ स्वार्थी तत्वो ने तंत्र कि इस विशेष क्रिया का दुरुपयोग किया और इसी कारण इस साधान को आम जन ने हिन दृष्टि से देखना आरम्भ कर दिया।परन्तु सत्यता इससे परे है,विद्वेषण कि उत्तपत्ति तो केवल किसी भी परिवार को टूटने से बचाने के लिए कि गयी है न कि उसका दुरुपयोग करने के लिए.
मान लीजिये घर का कोई सदस्य किसी ऐसी संगत में पड़ जाये जिससे कि उसका भविष्य ख़राब हो सकता है,या कोई मनुष्य किसी कि संगत में शराब आदि का सेवन करने लग जाये।तब इस विद्वेषण का प्रयोग उचित माना जायेगा।क्युकी कही न कही आप उस व्यक्ति का हित चाहते है.किन्तु यदि इसके विपरीत आप पति पत्नी में,या किसी ऐसे सम्बन्ध में विद्वेषण करते है जो कि धर्मं कि दृष्टि से उचित है तो इसे विद्वेषण का दुरुपयोग माना जायेगा।और ऐसा करके यदि व्यक्ति प्रसन्न हो भी जाये किन्तु भविष्य में उसे इसके भयंकर परिणाम भोगने ही पड़ते है.और अधिकतर मनुष्यो ने विद्वेषण जैसी विद्या का दुरुपयोग ही किया है.इसके कारण इस पवित्र विद्या को हिन भावना से देखा जाने लगा है.आवश्यकता है कि हम हर साधना के सकारात्मक प्रयोग करे तथा जन कल्याण में तंत्र का सहयोग ले.
आज आपको यहाँ ऐसा ही एक विद्वेषण प्रयोग दिया जा रहा है,जो कि मुस्लिम तंत्र से सम्बंधित है.अब ये में नहीं जनता कि आप इसका क्या प्रयोग करते है उचित या अनुचित,ये आप पर छोड़ता हु.क्युकी उचित प्रयोग आपको ईश्वर से आशीष दिलवाएगा और अनुचित प्रयोग आपको ईश्वर के दंड का अधिकारी बनाएगा।साधको जब परिवार में कोई अनुचित संगत में पड़ जाये,तब उन दोनों व्यक्ति को अलग करने के लिए इसका प्रयोग करे.ये साधना करने में जितनी सरल है उतनी ही तीव्र प्रभाव युक्त है.अब हम विधि कि और चलते है.
सबसे पहले कपडे के दो पुतले बना ले,सम्भव हो तो उन दो लोगो के वस्त्र से ये पुतलो का निर्माण करे जिनके बिच विद्वेषण कराना हो,अगर ये सम्भव न हो तो किसी भी वस्त्र से निर्माण कर ले.अब नौचंदी जुमेरात ( शुक्ल पक्ष का प्रथम गुरुवार ) को रात १२ बजे स्नान कर सफ़ेद वस्त्र धारण करे इसे लुंगी कि तरह बांधे और ऊपर भी बिना सिला सफ़ेद वस्त्र डाला जा सकता है.अब पश्चिम कि और मुख कर सफ़ेद आसान या वस्त्र पर बैठ जाये।अब अपने सामने उन दोनों पुतलो को रख दे.दोनों के पेट पर काजल से उन दोनों लोगो के नाम लिखे जिनके बिच विद्वेषण करवाना हो.सरसो के तैल का दिया जलकर सामने ही रख दे.कमरे में और कोई उजाला नहीं होना चाहिए इस दिए के सिवा।अब १५ मिनट तक आपको दोनों पुतलो को देखते हुए,मन ही मन सोचना है कि दोनों में भीषण विद्वेषण हो रहा है.और ये सोच अत्यधिक तीव्र होनी चाहिए।इसके बाद दोनों पुतलो को उठाये और आपस में एक दूसरे टकरा टकराकर लड़वाए और अमल पड़ते जाये।एक घंटे के बाद दोनों पुतले पुनः उनकी जगह पर रख दे.परन्तु ध्यान रखे कि दोनों का स्पर्श न हो रखने के बाद,अर्थात आपको इस तरह रखना है कि दोनों एक दूसरे कि तरफ पीठ किये हुए हो.आपस में जब आप उन्हें लड़वा रहे हो तब भी मन में ये ही भावना रहे ही दोनों में भीषण विद्वेषण हो रहा है और दोनों हमेशा हमेशा के लिए अलग हो रहे है.

अमल : या जब्बार या जलाल

ये क्रिया आप ११ दिनों तक करे आखिर दिन क्रिया पूरी हो जाने के बाद रात में ही कही दूर जाकर दोनों पुतलो को जमीन में अलग अलग गाड़ दे.याद रखे गाड़ते वक़्त भी दोनों कि पीठ एक दूसरे कि तरफ होनी चाहिए।और दोनों को एक साथ या पास पास न गाड़े जितनी दुरी पर गाड़ना सम्भव हो गाड़ दे.और वही पर दोनों पुतलो को ये कहकर हुंकुम दे कि आज से तुम दोनों अलग हो जाओ हमेशा के लिए और बिना पीछे देखे घर आ जाये।क्रिया के पहले और अंत में नित्य दुरुद अवश्य पड ले २१ बार.
दुरुद : अल्लाहु रब्बू मुहम्दीन सल्ला अलैहि वसल्लमा नहनु इबादु मुहम्दीन सल्ला अलैहि वसल्लमा
जय माँ