Friday 27 December 2013

धूम्रवर्णा धूमावती

धूं , धूं ,धूं   कितना प्यारा लगता है ना,ये बीज मंत्र।
जब साधक पूर्ण एकाग्रता से इसका जाप करता है तो,मूलाधार से सहस्त्रार तक एक स्पंदन आरम्भ हो जाता है.एक कंपन सा होने लगता है मणिपुर चक्र में,एक अजीब सी मादकता चढ़ जाती है आज्ञा चक्र और सहस्त्रार चक्र पर.

और ऐसा हो भी क्यों ना ? 

ये शिवा तो शिव को निगल गयी,जिन शिव ने हलाहल का पान किया एक ऐसा हलाहल जिसकी एक बूंद भी सृष्टि का अंत करने में सक्षम थी.परन्तु शिव उसे पि गए अपने कंठ में रख लिया,रोक लिया उस विष को जो अत्यंत भयंकर था.और ऐसे प्रलयंकारी को निगल गयी ये शिवा,ये जगदम्बा।

और तभी प्राकट्य हुआ भगवती धूमावती का,जो सारे संसार के विष को पिने वाले शिव को निगल गयी ऐसी भगवती के उपासक को नशा तो चढ़ेगा ही,शराब का नहीं,धूम्रपान का नहीं, बस इस बीज मंत्र का भगवती के इस परम बीज मंत्र का.

मित्रो इतनी सहज नहीं है इस महाविद्या कि साधना करना।ये जिसे स्वीकार करे वही साधक इसकी भक्ति का नशा प्राप्त कर पाता है.और ये उसे ही स्वीकार करती है जो पूर्ण समर्पण करने को तैयार हो.जो सर कटाने को तैयार हो,सर कटाने को अन्यथा न लेना अपने सर पर तलवार न रख लेना।तुम्हारी ये बुद्धि तुम्हारे अहंकार का प्रतिक है,ईर्ष्या का प्रतिक है,तर्क कुतर्क का प्रतिक है,बस इस जड़ बुद्धि के बंधन को जो काटने को तैयार हो उसे ही स्वीकार करती है धूमावती।अन्यथा ये धुम्रवर्णा धुए में ही उड़ा  देती है साधक को.

२१ माला से कुछ नहीं होगा ५१ माला से भी कुछ नहीं होगा।कामना पूर्ति अवश्य हो जायेगी।भोग कि प्राप्ति अवश्य हो जायेगी,शत्रु का नाश भी हो जायेगा,किन्तु धूमावती कि प्राप्ति नहीं होगी।इस दिव्य महाविद्या को तुम समय में नहीं बांध सकते हो माला कि गिनती के फेर में नहीं बांध सकते हो.ये यात्रा अत्यंत लम्बी है,इस मार्ग में धूमावती का धुआ बिखरा पड़ा है जो तुम्हें भटकाएगा,तुम्हे उलझाएगा तुम्हारे नेत्रो में धुंध बनकर छा जाएगा,बस इसी धुंध में से इसी सांसारिक धुए से तुम्हे खोजना होगा इस धूम्र साम्राज्ञी धूमावती को.लुका छिपी खेल रही है ये तुम्हारे साथ,शमशान में नहीं है,निर्जन स्थान में नहीं है.तुम्हारे ही अंतर में छुपकर बैठी है.अंदर के धुए को साफ करो.समर्पण का दीपक प्रज्वलित करो.स्वतः प्रगट हो जाएगी भगवती।सम्पूर्ण संसार का वैभव और मोक्ष तुम्हारे  चरणो में होगा तब। 

धूं बाधा निवारिणी धूम्रेश्वरी फट 

जय माँ 

पारद काली

आपमें से कई साधको के मेल आए  और उनमे पारद काली से सम्बंधित प्रश्न पूछे गए.आज का लेख पारद काली पर ही है,आशा ही नहीं है पूर्ण विश्वास है कि आपको आपके प्रश्नो के उत्तर इस लेख के माध्यम से अवश्य प्राप्त होंगे।

मित्रो रस तंत्र के अनुसार सारे पारद विग्रह एक और तथा पारद काली एक और मानी गयी है.इसका मुख्य कारण यह है कि ये महाविद्या अपने विग्रह निर्माण के समय ही निर्माणकर्ता कि अत्यंत खरी परीक्षा लेती है.सर्व प्रथम इस विग्रह के निर्माण में जिन संस्कारो कि आवश्यकता होती है वे इतने सामान्य नहीं होते है.पृथक पृथक स्तोत्र तथा मंत्रो का समावेश होता है.साथ ही इस विग्रह निर्माण में ललिता त्रिपुर सुंदरी स्तोत्र कि विशेष महत्वता होती है.इस तरह कई दिनों में पारद काली निर्माण के लिए पारद को तैयार  किया जाता है.अब बारी  आती है विग्रह को उसका मूल स्वरुप देने कि,इस समय एक साधक निरंतर ललिता सहस्त्रनाम का सतत पाठ करता जाता है जब तक विग्रह निर्माण कि प्रक्रिया पूर्ण न हो जाए.मित्रो यही समय होता है जब भगवती कि ऊर्जा पारद में समाहित होने लगती है,और इस समय निर्माणकर्ता कि भी मूल परीक्षा आरम्भ होती है,क्युकी ज्यो ज्यो साधक मंत्र जाप करते हुए इसका निर्माण करते है त्यों त्यों विग्रह बिखरने तथा चटकने लगता है.कभी कभी तो स्थिति ये होती है कि आप विग्रह निर्माण कि प्रक्रिया पूरी कर जैसे ही काली विग्रह पर अघोर मंत्रो से अभीमंत्रित अक्षत कि मुष्टि मारते है वैसे ही विग्रह चटक जाता है.ये समय अत्यंत पीड़ा का होता है क्युकी इसी समय विग्रह के चटकते ही सारी मेहनत पानी में चली जाती है.जब मैंने प्रथम बार निर्माण कि प्रक्रिया कि थी तब ७० से भी अधिक बार विग्रह चटका था.किन्तु मित्रो ये निराशा नहीं धैर्य का समय होता है.क्युकी परा शक्ति कि परीक्षा में आपको उत्तीर्ण तो होना ही  होता है न.

खैर ये समस्या अब नहीं रही अब तो आदि शक्ति कि कृपा है.मित्रो इस विग्रह कि अपनी ही दिव्यता है.परन्तु ये जितना सुन्दर होता है उतने ही रहस्य अपने भीतर समाहित किये हुए होता है.क्युकी इसकी ग्रहण करने कि क्षमता अन्य पारद विग्रहो से अधिक होती है.इसका मुख्य कारण यह  है कि इसमें अघोर तथा सौंदर्य दोनों ही विधि सम्मिलित कर इसका निर्माण किया जाता है.जैसे ही आप इसका स्पर्श करते है ये आपकी नकारात्मक ऊर्जा को खीच लेता है.यही कारण है कि पारद काली को घर में रख पाना अत्यंत दुष्कर कार्य माना  जाता है.क्युकी जितनी बार इसे छुआ जाता है उतनी बार ये पवित्र विग्रह छूने  वाले कि नकारात्मक ऊर्जा को अपने भीतर खीच लेता है.इसलिए कहा जाता है कि इस श्री विग्रह को बार बार हर किसी के हाथो में नहीं देना चाहिए।साथ ही यदि एक,दो महीने के अंतर में यदि इस विग्रह के सामने ११ माला " ॐ हूं क्रीं हूं फट " मंत्र कि कर दी जाए और इसके तुरंत बाद ९ अनार को एक एक करके उपरोक्त मंत्र का उच्चारण करते हुए जमीन पर ज़ोर से पटक कर फोड़ दे.और इसका रस तुरंत विग्रह पर निचोड़ दे,तो विग्रह ने जितनी भी नकारात्मक ऊर्जा को अपने भीतर खीचा होता है,वो उस ऊर्जा का त्याग कर उसे बृह्मांड में विलीन कर देता है.इस क्रिया के साथ ही विग्रह कि शक्ति तथा ऊर्जा में वृद्धि हो जाती है.इसके अतिरिक्त यदि कोई साधक नित्य भगवती को अनार के रस से स्नान कराता है और ११ माला रुद्राक्ष माला से " ॐ क्रीं कलिकायै नमः " कि करता है,और इस क्रिया को सतत ३ माह तक करता है तो भगवती सदा सदा के लिए उस साधक के गृह में स्थिर हो जाती है तथा साधक के लिए वरदा होती है.ऐसे साधक कि लक्ष्मी साधनाए त्वरित रूप से सफल होती है.तथा दरिद्रता का नाश हो  जाता है.कई साधको ने प्रश्न किया कि इस विग्रह पर क्या क्या साधनाए कि जा सकती है.तो मित्रो इस बात कि अधिक गहराई में न जाते हुए इतना ही कहूंगा कि माँ काली तो तंत्र कि जननी है,अब और क्या कहु इसके आगे ? आप स्वयं ही समझ जाए.परन्तु एक  रहस्य से आपको अवश्य अवगत करना चाहता हु कि,यदि आप इस श्री विग्रह पर नित्य " क्रीं " का जाप करते हुए त्राटक करते है तो आपमें षटकर्म को सिद्ध करने कि ऊर्जा स्थापित हो जाती है.किन्तु ये नित्य कुछ  समय तक किया जाना आवश्यक है.जिन साधको के पास ये विग्रह है वे सदा इसे लाल वस्त्र पर स्थापित करके रखे.हर किसी आने जानेवाले को इसका स्पर्श न करने दे.क्युकी ये अत्यंत गोपनीय विषय है.इसका प्रदर्शन करना ठीक नहीं है.
इसके अतिरिक्त प्रातः उठकर विग्रह के दर्शन किया करे.इससे समस्त रोगो का नाश होता है.पारद काली से सम्बंधित अन्य साधनाए तो आपके अपने ब्लॉग पर आती रहेंगी उसकी चिंता न करे.आज तो केवल कुछ लघु प्रयोग तथा पारद काली के महत्व को समझाने का प्रयास किया गया है.हलाकि यहाँ भी इस विग्रह के बारे में बहुत कम ही लिखा गया है.क्युकी पूर्ण ज्ञान लिखा जाये तो एक ग्रन्थ कि रचना कि जा सकती है.

साधको आपके पास ये  पवित्र विग्रह है तो इसके मूल्य को समझे,इसका सम्मान करे.इसके अधिक प्रदर्शन से बचे.तथा इन पर उच्च कोटि क साधनाए करे न कि केवल घर में स्थापित करके रखे.

जगदम्ब प्रणाम 

अन्य प्रश्नो तथा अधिक जानकारी के लिए मेल करे.

pitambara366@gmail.com




Monday 23 December 2013

विद्या

आप में से कुछ साधको ने थोड़े दिन पहले प्रश्न किया था कि,आसुरी विद्या या काली विद्या कैसे होती है ? क्या होती है ?

सर्व प्रथम हम चर्चा करेंगे आसुरी विद्या पर,मित्रो ये अत्यंत ही सुक्ष्म विषय है,और यहाँ पर मनुष्य अधिक भ्रमित होता है.क्युकी जितने मस्तिष्क उतने ज्ञान आपको दे दिए जाते है.और आप  भी सब है मस्त राम जो दिख गया बस उससे राय लेना शुरू कर दी.तो भटक तो जाओगे ही न.इसलिए जिन पर भरोसा हो उनसे हर विषय पर राय ले और संकल्प ले कि वे जैसा कहेंगे हम करेंगे इसके सिवा  किसी अन्य से चर्चा नहीं करेंगे।तब आप प्रगति पर आयेंगे अन्यथा जीवन भटकने में और शंकाओं में ही निकल जायेगा।ये सब बाते में अपने शिष्यों को कह  रहा हु अन्य लोग इन सब बातो पर ध्यान न दे.

हा तो चर्चा चल रही थी आसुरी विद्या कि,मित्रो प्राचीन समय में असुर जिन विद्या का प्रयोग कर शक्ति संपन्न बनते थे,उनकी वही विद्या आसुरी विद्या कहलाती है.इसमें माँ दुर्गा के ही एक स्वरुप जिसे आसुरी दुर्गा कहा जाता है इनकी वे साधना तथा पूजा करते थे.आपको एक बात यहाँ सर्व प्रथम स्पष्ट कर देता हु कि आप आसुरी दुर्गा नाम सुनकर अपने मन में एक अलग ही छाप मत बना लेना कि माँ को बली देते होंगे असुर या मदिरा आदि अर्पित करते होंगे।मित्रो ऐसा कुछ नहीं है असुर भी माँ के इस स्वरुप कि सात्विक भाव से ही पूजा करते थे.हा परन्तु माँ का ये सवरूप पूजना इतना सरल नहीं था और न आज है इसमें वही सफल हो पाता  था जो धैर्यवान होता था या जो हर कष्ट को सहन  करने कि क्षमता रखता था,और आज भी यही नियम इन साधनाओ पर लागु होता है.और यही कारण है कि देवताओं से अधिक शक्ति दानव अर्जित कर लेते थे,क्युकी उनमे साधना   के प्रति अत्यधिक समर्पण था.और वे ही देवी आसुरी दुर्गा कि कसोटी पर खरे उतरते थे.इसके साथ ही आसुरी साधनाओ में एक देवी और है जिनकी पूजा कि जाती थी,जिनका नाम है निकुंबला, वास्तव में भगवती बगलामुखी ही है  जिन्हे असुर कूल में देवी निकुंबला के नाम से पूजा जाता था,और इनकी साधना कि जाती थी.हा अन्य पदत्ति से इनकी साधना पदत्ति थोड़ी पृथक एवं क्लिष्ट होती थी.अब हम आसुरी विद्या के तीसरे आराध्य कि और बढ़ते है,और वो थे गुह्यक,ये भी इतर योनि में ही आते है.जैसे यक्षिणी,अप्सरा,किन्नरी,यक्ष आदि है,उसी प्रकार ये भी इतर योनि में एक वर्ग आता है.जिनका अपना संसार होता जहा ये निवास करते है.इनकी साधना करके असुर मायावी होते थे,मूल रूप से असुर कूल में इनकी साधना एवं उपासना कि जाती थी.इन्ही कि सहायता से असुर माया को अपने अंदर पूर्ण रूप से उतार  लेते थे,असुर माताए  जब गर्भ धारण करती थी तो योनि में संतान उत्पत्ति के लिए बीजारोपण करते समय ही गुह्यक मंत्रो का जाप आरम्भ कर देती थी.और गर्भ धारण के बाद भी संतान के जन्म लेने तक सतत गुह्यक साधना करती थी,और साधना कि ऊर्जा को गर्भ में स्थित संतान को प्रेषित करती रहती थी,यही कारण था कि असुर जन्म से ही मायावी होते थे.उनमे अपने रूपो को विभक्त कर देने कि,कोई भी रूप धारण करने कि,वायु गमन करने कि,अदृश्य होने कि और नाना प्रकार कि मायावी शक्तिया जन्म से विद्यमान होती थी.आपको स्मरण होगा गर्भ में ही अष्टावक्र वेद सिख गए थे क्युकी उनके पिता वेदपाठी थे.इसी प्रकार असुर भी गर्भ में ही शिक्षा ग्रहण करते थे.आज भी ये सब सम्भव है किन्तु,आजकल माताए या तो टीवी सीरियल में व्यस्त है या पार्लर में,और पिता बैंक बैलेंस बनाने में इसलिए ये असम्भव होता जा रहा है.खैर कलयुग है ये सब तो होगा ही.वैसे तो आसुरी विद्या के और भी कई रहस्य है जो कि यहाँ लिख पाना सम्भव नहीं है क्युकी उस पर तो एक ग्रन्थ लिखा जा सकता है.साथ ही यु सब कुछ लिख देना मेरी मर्यादा के विरुद्ध है,क्युकी गुरुपद कि अपनी मर्यादा है जिसका पालन मेरे लिए अनिवार्य है.फिर भी संक्षेप में जितना लिख सकता था लिख दिया है ताकि आप समझ सके.साथ ही एक बात पुनः कहना चाहूंगा कि आसुरी विद्या बुरी या गलत नहीं होती थी बस हठ योग इसमें अधिक था.असुर भी पूर्ण सात्विक भाव से ही साधना करते थे,अपने कु कृत्यों को छुपाने के लिए,अपने भोग विलास को सही प्रमाणित करने के लिए असुर का नाम न ले कि वो भी ऐसा ही करते थे.जगदम्बा का नियम सबके लिए समान है चाहे वो देवता हो,मनुष्य हो या दानव हो.इस विषय पर अब यही विराम। 

अब चलते है अगले प्रश्न कि और 

काली विद्या क्या होती है ?

मित्रो अगर आप सोचते है कि काली विद्या किसी भी प्रकार से उचित है तो आप बिल्कुल  गलत सोचते है.क्युकी इसमें न तो शिव कि पूजा होती है और न ही शक्ति कि और न ही किसी देवी अथवा देवता कि.इस विद्या को करने वाले इतर योनि को पूजते है.अब इतर योनि में भी दो वर्ग है.यक्षिणी,अप्सरा,किन्नरी,गुह्यक ये सब देव वर्ग में आते है तथा ये  सतो प्रधान है.इनकी पूजा नहीं कि जाती काली विद्या में.बल्कि जो इतर योनि में बिलकुल निचे का वर्ग है भूत,प्रेत,पिशाच,बृह्मराक्षस,अतृप्त आत्माए इनकी पूजा कि जाती है काली विद्या में.इस विद्या को करने वाले इनकी पूजा करते है और इन्हे बलि आदि से तृप्त कर अपने कार्य सिद्ध करवाते है.किन्तु इस मार्ग पर चलने वाले स्वयं कब इसमें उलझ जाते है,उन्हें खुद पता नहीं चलता है.पहले इन सबकी पूजा करके व इन्हे अपने जीवन का हिस्सा बना लेते है और फिर बाद में एक इष्ट कि ही तरह ये योनियां साधना करने वाले पर शासन  करती है.स्मरण रखे इनकी पूजा करना और इनको वश में करना दो अलग बात है,इनको वश में हम साधक करते है,अपनी साधना और मन्त्र के माध्यम से परन्तु हमारे इष्ट शिव शक्ति तथा सद्गुरुदेव ही होते है.हम इनकी पूजा नहीं करते है, हम  इन योनियों को अपने अधीन कर इन पर शासन करते है,साक्षात् शिव कि ही भाती।किन्तु काली विद्या करने वाले इनको पूजते है और जीवन भर इनकी पूजा कर इनसे सहायता लेते रहते है.परन्तु ऐसे लोगो कि कोई गति नहीं होती ये जितने वर्ष उनको पूजते है उतने ही वर्ष इन्हे भी मृत्यु पर्यन्त उस योनि में रहना पड़ता है.उदाहरण  के लिए यदि आप ने इनकी पूजा १० वर्ष तक कि तो आपको भी मृत्यु के बाद १० वर्ष उस योनि में भटकना होगा जिसकी आपने  पूजा कि थी.आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आप समझ गए होंगे कि काली विद्या क्या होती है.इस विषय को भी यही विराम।इसके साथ ही वाम मार्ग में मैली देवी कि पूजा कि जाती है,इनके उपासक जिस विद्या का प्रयोग करते है उस विद्या को मेलि विद्या कहा जाता है.परन्तु इसमें भी कई जन भ्रमित है कि मेलि देवी माँ जगदम्बा का ही एक सवरूप है,किन्तु ये सर्वथा गलत धारणा है.मेलि देवी का अर्थ है जो मेल से उत्पन्न हो अर्थात इस देवी कि उत्पत्ति आपकी ही नकारत्मक ऊर्जा से होती है.सरल शब्दो में कहु तो साधक अपनी ही नकारात्मक ऊर्जा को पूजकर शक्ति अर्जित करता है,हालाकि  अगर वो चाहे इस शक्ति का सदुपयोग कर सकता है.किन्तु शक्ति  के अपने गुण भी होते है तमस भाव कि शक्ति  आएगी तो सदुपयोग कि जगह दुरुपयोग कि ही प्रेरणा देती है या यु कहु कि साधक कि  बुद्धि ही ऐसी हो जाती है.

मैंने अपने सालो के साधना मार्ग में जो जाना जो समझा वो आपके सामने लेख के माध्यम से रख दिया है.और ये केवल मोटी मोटी जानकारी ही रखी है ताकि आप  समझ सके.क्युकी पूरी चर्चा तो आप मुझसे मिलकर ही कर सकते है साथ ही जान भी सकते है.और वैसे भी में तो अपनी माँ का सीधा साधा छोटा सा साधक हु.मुझे उसके सिवा  और कोई दिखाई ही नहीं देता।ये लेख लिखकर में किसी का विरोध नहीं कर रहा हु,बस जो मुझसे पूछा गया उसे ही मैंने अपने अल्प ज्ञान के माध्यम से समझाने का प्रयत्न किया है.अन्य ज्ञानयों कि इस पर अलग सोच हो सकती है.अतः वे मेरे लेख को मात्र एक छलावा समझ कर भूल जाए ।कोई विवाद या तर्क कुतर्क स्वीकार नहीं है.अगर किसी को चोट पहुची हो तो क्षमा प्रार्थना के साथ.

जगदम्ब प्रणाम  


Saturday 21 December 2013

सदगुरु कि आवश्यकता

कुछ लोगो ने प्रश्न पूछा कि,

जिसने दीक्षा ना ली हो, परन्तु व्यक्ति महाविद्या कि साधना  करना चाहता हो और उसे योग्य गुरु कि प्राप्ति न हो रही हो,तो क्या वह महाविद्या आदि कि साधना कर सकता है ?

मित्रो यहाँ आपको स्पष्ट करना चाहूंगा कि साधना तो आप बिना गुरु के भी कर सकते है.परन्तु साधना के मध्य कई ऐसे अनुभव या प्रश्न साधक के समक्ष खड़े होते है,जिनका उत्तर केवल गुरु ही दे पाते है.उदाहरण के तौर पर मान लीजिये,हम गणित का कोई सवाल हल कर रहे है.और आपने  देखा होगा कि पुस्तक में कुछ हल उदाहरण के तौर पर दिए जाते है,कुछ सूत्र भी दिए  जाते है,जिससे आप समझ सके कि आपको अमुक सवाल कैसे हल करना है.कई बार ऐसा होता था कि हमें शिक्षक कह देते थे कि ये सवाल घर से हल करके लाना,सही हो या गलत हो पर करके अवश्य लाना नहीं आएगा तो में बताऊंगा।

फिर हम घर पर उन्ही उदाहरण तथा सूत्र को आधार बनाकर सवाल हल करते थे.कुछ बच्चे सही हल करते थे तो कुछ गलत हल करते थे.और अधिकतर १०० में से ९० विद्यार्थी गलत ही करते थे.अब प्रश्न उठता है कि,सभी ने उदाहरण को देख कर सामान सूत्र लगाकर सवाल किया फिर १० के सही उत्तर और ९० के गलत क्यों ?

मेरा भी गलत ही होता था :-(

तब शिक्षक महोदय समझाते थे कि अपने सूत्र तो सही लगाए  है परन्तु जहा लगाने थे वहा  नहीं लगाए  है.या तो उन्हें पहले लगा दिया है या बाद में जिससे कि सही विधि पता होते हुए भी तुम्हारा उत्तर गलत आ रहा है.और फिर हमारा उत्तर भी सही आता था :-)

क्युकी गलती कहा हो रही थी शिक्षक ने समझा दिया था.अब तक किताब में लिखे सूत्र और उदाहरण हम अपनी बुद्धि से समझ रहे थे और वही कर रहे थे जो समझ आ रहा था.किन्तु अब हमने सवाल,सूत्र तथा उदाहरण को शिक्षक कि बुद्धि से समझने का प्रयत्न किया और सफल हुए.

पर ऐसा क्यों हुआ,जबकि हमारे पास किताब थी उसमे उदाहरण था,सूत्र थे जिन्हे देखकर भी हम सवाल हल नहीं कर पाए  किन्तु शिक्षक ने न किताब देखि न सूत्र मात्र सवाल देखा और २ मिनट में हल कर दिया :-\

ऐसा क्या था उनके पास ?

उत्तर वही है बंधू, उनके पास किताब नहीं थी,सूत्र नहीं थे,किन्तु उनके पास अनुभव था वर्षो का अनुभव जो उन्होंने अपने परिश्रम से अर्जित किया था.और यही अनुभव था जिसके माध्यम से उन्होंने आपके सवाल को हल कर दिया।

मित्रो आपने  गणित को सिखने के लिए शिक्षक का आश्रय लिया,जबकि ये गणित तब तक ही काम आएगा जब तक आप जीवित है.और जीवन अधिक से अधिक १०० साल जी पाएंगे आप.अब आप स्वयं ही बताए  कि मात्र कुछ वर्ष यहाँ रहना था कुछ वर्ष जीवन कि यात्रा करनी थी उसमे भी आपको एक शिक्षक कि आवश्यकता पढ गयी.

तो सोचिये कि मृत्यु के बाद तो आपकी अनंत कि यात्रा आरम्भ होगी तो क्या वहा आपको सदगुरु कि आवश्यकता नहीं होगी ?

होगी अवश्य होगी, क्युकी वही जीवन कि सबसे कड़ी परीक्षा ली जाती है.यदि गुरु से उसका अनुभव और ज्ञान पहले से ही ले लिया जाए  तो यात्रा अत्यंत सरल हो जाती है.

तो अब तक आपने पड़ा कि जीवन में सद्गुरु कि कितनी महत्वता है.उनके बिना सब कुछ असम्भव सा प्रतीत होगा आपको।अब आपको उत्तर दिया जा रहा है आपके सवाल का कि क्या बिना गुरु के महाविद्या कि साधना या मंत्र जाप किये जा सकते है ?

जी हा किये जा सकते है,माँ पर तो सबका सामान अधिकार है,कोई भी साधना या मंत्र जाप कर सकता है.किन्तु समस्या वही उत्पन्न होगी आरम्भ में तो किताबे बड़ा अच्छा साथ निभाएगी जहा से आप साधना के सूत्र ले रहे है.किन्तु जैसे जैसे आप साधना मार्ग पर आगे बढ़ते जायेंगे। नाना प्रकार के प्रश्न तथा दुविधा आपको घेरेंगी, तब उनका निवारण कौन करेगा ?

और प्यास लगने पर कुआ तो मुर्ख ही खोदते है,ज्ञानी तो सदा प्यास बुझाने कि व्यवस्था करके रखते है.हा ये बात सही है है कि आप नित्य पूजन में किसी भी महाविद्या कि साधना या मंत्र जाप आदि कर सकते है.किन्तु बात जब पूर्णता प्राप्त करने कि हो तब सद्गुरुदेव कि अत्यंत आवश्यकता है. नित्य पूजन करना या सामान्य रूप से मंत्र जाप करना,प्रथम या द्वितीय कक्षा पड़ने जैसा है जो कि हमने अपनी ही मस्ती में उत्तीर्ण कर ली थी.और कोई विपदा आदि ने हमें नहीं घेरा।

किन्तु महाविद्या को पूर्ण रूप से प्राप्त करने कि जब बात हो जब उन्हें अपने भीतर उतार लेने कि बात हो तब गुरु कि आवश्यकता पड़ती ही है,क्युकी ये प्रथम कक्षा नहीं आप मास्टर डिग्री या पी.एच.डी  करने जा रहे है जहा कोचिंग या अन्य प्रोफेसेर कि नितांत आवश्यकता है.सद्गुरु तत्त्व भी महाविद्या साधना में जिसे आप पूर्णता से करना चाहते है उसमे प्रोफ़ेसर कि भूमिका निभाते है.आशा करता हु आपको समझ आया होगा।

अब चलते एक और प्रश्न कि और कि योग्य गुरु कि प्राप्ति नहीं हो रही है तब क्या करे ?

मित्रो योग्य गुरु है कौन ? आपने  भी तो कोई मापदंड निश्चित किया होगा न कि योग्य गुरु ऐसा होना चाहिए।

तो आपका उत्तर होगा जिसके पास ढेर सारी  सिद्धियाँ हो,ढेर सारी साधनाए  हो,जो उच्च कोटि का हो.मित्रो सिद्धि तो रावण के पास भी थी,कंस के पास भी थी,सुरसा के पास भी थी,हिरण्यकश्यप,हिरण्याक्ष आदि कई कई दैत्यों के पास भी थी.तो क्या ये सब आपकी दृष्टि में गुरु हो जायेंगे ? नहीं ना ?

सद्गुरु का चयन उसकी सिद्धि के आधार पर नहीं किया जाता है, सद्गुरु का चयन उनके ज्ञान के आधार पर किया जाता है.सबसे बड़ी बात ये है कि,जिस गुरु को सुनकर,पड़कर तुरंत आपके भीतर एक शांति स्थापित हो जाए  वही आपके गुरु हो सकते है.क्युकी शांत मन में ही साधना के अंकुर प्रस्फुटित होते है.गुरु का चयन कभी सिद्धि के आधार पर ना करे,अन्यथा भटक जाओगे।

आज मेरे जितने भी शिष्य है वो मेरे ज्ञान और उनके प्रति मेरा जो समर्पण है उसका सम्मान करते है.उन्हें मेरी सिद्धि से कोई लेना देना नहीं है.क्युकी वे जानते है कि किसी कि सिद्धि दूसरे का कल्याण नहीं करेगी।गुरु का केवल ज्ञान और शिष्यों के प्रति जो समर्पण होता है वही शिष्य का निर्माण करता है.

आगे क्या लिखू ? क्युकी सद्गुरु विषय ही ऐसा है कि संसार कि हर ऊँगली थक जायेगी लिखते लिखते परन्तु इस तत्त्व का  तनिक भी वर्णन नहीं हो पायेगा।

और वैसे भी जो ज्ञानी है मेरे इतना लिख देने से ही समझ जायेंगे,अति ज्ञानियों का तो मेरे पास भी कोई हल नहीं है.अतः अपनी बुद्धि और विवेक अनुसार सद्गुरु शरण में जाये और अपने जीवन को नविन गति प्रदान करे.झुक जाओ किसी के कदमो में एक बार जाकर पूरी शिद्दत के साथ पूरी मोहब्बत के साथ,फिर देखना वो गुरु तत्त्व तुम्हे किसी और के आगे झुकने नहीं देगा तुम्हारे मस्तक को गर्व के साथ संसार में उचा करवा देगा।इस परम पवित्र गुरु तत्त्व के बारे में तो बस इतना ही कहूंगा।

तू देखे या न देखे मुझको ये तेरी मर्जी 
में तुझको देखता हु हर वक़्त बंदगी में। 

जगदम्ब प्रणाम  


Thursday 19 December 2013

असाध्य रोग नाशक रसेश्वर विधान

मित्रो हमारी देह ईश्वर कि और से हमें सबसे बड़ा वरदान है.क्युकी अगर देह में कोई रोग उत्पन्न हो जाये तो हम धन,वैभव,सुख आदि का भोग नहीं कर पाते है.और कई बार रोग बहुत दीर्घ रूप धारण कर लेते है.कई उपचार किये जाये।औषधि ली जाये किन्तु वे प्रभाव नहीं दिखाती है.और जब रोग किसी भी उपाय से ठीक नहीं होता है तो उसे असाध्य रोग घोषित कर दिया जाता है.

परन्तु इतिहास साक्षी है कि भारत भूमि पर कुछ भी असाध्य नहीं रहा है.यहाँ के ऋषि मुनि ज्ञानियों ने तो ब्रह्माण्ड तक का भेदन कर दिया तो रोग कि उनके समक्ष कोई कीमत ही नहीं है.संसार में सर्व प्रथम काया कल्प पर अगर किसी ने चर्चा कि तो वो हमारे भारत के ऋषि आदि ने ही कि,आयु के प्रभाव तक को रोक दिया गया था प्राचीन भारत में.और इस क्षेत्र में कई कई शोध किये हमारे साधको तथा संतो ने.आयुर्वेद और पारद के माध्यम से ऋषि मुनियों ने असाध्य से असाध्य रोगो को ठीक करके दिखाया है.यही नहीं बल्कि पारद के माध्यम से काया कल्प तक करने में समर्थ रहा है रस तंत्र।यही कारण है कि आज भी उच्च कोटि कि औषधि में संस्कारित पारद भस्म का प्रयोग किया जाता है.जो कि देह को रोगो से मुक्त करती है.और यही पारद जब विग्रह में परिवर्तित कर दिया जाता है तो,देह को रोग मुक्त करता है साथ ही मनुष्य को अपनी ऊर्जा से सिच कर उसे अध्यात्मिक तथा साधनात्मक प्रगति प्रदान करता है.रोग मुक्ति के हेतु भगवान रसेश्वर के कई विधान रस क्षेत्र में प्राप्त होते है.और अन्य उपाय से ये अधिक श्रेष्ठ भी होते है.उसका मुख्य कारण ये है कि,पारद में औषिधि तत्त्व भी विद्यमान होते है.अर्थात जब आप रसेश्वर पर कोई क्रिया करते है तो,आपको दो मार्गो से लाभ प्राप्त होने लगता है.प्रथम मंत्र के माध्यम से उसमे स्थित ऊर्जा को आप अपने भीतर समाहित कर लेते है.और दूसरा उसके स्पर्श में आयी हर वस्तु औषिधि में परिवर्तित हो जाती है.
विशेषकर वीर्य से सम्बंधित दोषो में तो रस विधान ब्रह्मास्त्र कि तरह कार्य करता  है.

अतः असाध्य रोगो से भयभीत न हो उसका उपाय कर भयमुक्त तथा निरोगी बने.आईये जानते है इस दिव्य विधान को.

साधना आप किसी भी सोमवार से आरम्भ करे.समय रात्रि या दिन का  कोई भी आप सुविधा अनुसार चयन कर सकते है.आसन और वस्त्र का भी इस साधना में कोई बंधन नहीं है.स्नान कर उत्तर या पूर्व कि और मुख कर बैठ जाये।सामने बाजोट पर एक श्वेत वस्त्र बिछा दे और उस पर कोई भी पात्र रख दे.इस पात्र में शुद्ध संस्कारित एवं प्राणप्रतिष्ठित पारद शिवलिंग स्थापित करे.सर्व प्रथम गुरु तथा गणपति का पूजन करे.अब भगवान रसेश्वर का सामान्य पूजन करे.शुद्ध घृत या तील के तेल का दीपक लगाये।भोग में कोई भी मिठाई रखे.इसे नित्य साधना के बाद रोगी को ही खाना है.अब आपको निम्न मंत्र को पड़ते हुए रसेश्वर पर थोड़े थोड़े अक्षत अर्पित करते जाना है.

ॐ रुद्राय फट 

१०८ बार आपको उपरोक्त मंत्र को पड़ते हुए अक्षत अर्पित करना है.इसके बाद रुद्राक्ष माला से निम्न मंत्र कि ११ माला जाप करे.

ॐ ह्रां ह्रां ऐं जूं सः मृत्युंजयाय रसेश्वराय सर्व रोग शान्तिं कुरु कुरु नमः 

Om Hraam Hraam Ayim Joom Sah Mrityunjayay Raseshwaraay Sarv Rog Shantim Kuru Kuru Namah 

११ माला पूर्ण हो जाने के बाद आपको पुनः रसलिंग पर निम्न मंत्र पड़ते हुए अक्षत अर्पित करना है.

ॐ हूं सर्व रोग नाशाय रसेश्वराय हूं फट 

Om Hoom Sarv Rog Naashaay Raseshwaraay Hoom Phat 


इसके बाद पुनः रोग नाश हेतु भगवान से प्रार्थना करे.उपरोक्त क्रम आपको ११ दिवस करना है.रसेश्वर पर आप जो अक्षत अर्पित करेंगे उन्हें नित्य एक पात्र में अलग से एकत्रित करते जाये।और साधना समाप्ति के बाद सभी अक्षत शिव मंदिर में दान कर दे कुछ दक्षिणा के साथ.बाद में नित्य मूल मंत्र जिसका आपने  रुद्राक्ष माला  पर जाप किया है.उसे २१ बार या एक माला जाप करके जल अभी मंत्रित कर ले और ग्रहण कर ले.ये साधना अन्य किसी के लिए भी संकल्प लेकर कर सकते है.जिन लोगो के पास पारद निर्मित  महारोग नाशक गुटिका है वे लोग इस साधना में उस गुटिका को शिवलिंग पर रख दे.और ११ दिनों बाद रोगी उसे लाल धागे में धारण कर ले,लगातार गुटिका के स्पर्श से और अधिक लाभ होगा।बाकि साधना आप पूर्ण विश्वास से करे आपको अवश्य लाभ होगा।आप सभी निरोगी हो इसी कामना के साथ.

जय माँ 

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Tuesday 17 December 2013

ऋणहर्ता गणपति साधना

मित्रो ऋण जीवन में विष  के सामान है.क्युकी अगर ये समय पर समाप्त न किया जाये,तो दिन प्रतिदिन ये बढ़ता ही जाता है.और इसके साथ ही बढ़ती जाती है चिंता,जो आपको रात दिन सोने नहीं देती है.ऋण जीवन में एक ऐसा विघ्न है जो हमें कभी प्रगति कि और बढ़ने नहीं देता है.

और जब विघ्न का नाम आता है तो सबसे पहला  स्मरण आता है विघ्नहर्ता गणपति का.क्युकी विघ्नहर्ता के आगे तो बड़े बड़े विघ्न नहीं टिक सकते,तो ऋण क्या चीज़ है.मित्रो आज हम ऋण मुक्ति हेतु आप सभी के समक्ष गणपति जी का एक दिव्य विधान प्रस्तुत कर रहे है.ताकि आप सभी इस ऋण रूपी दैत्य से मुक्ति पा सके.

आप ये साधना किसी भी बुधवार से आरम्भ कर सकते है.समय प्रातः ४ से १० के मध्य का हो अथवा रात्रि ९ के बाद का हो.स्नान कर लाल वस्त्र धारण करे और लाल आसन  पर बैठ जाये।आपका मुख उत्तर या पूर्व कि और होना चाहिए।सामने बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाये और उस पर मसूर कि दाल कि एक ढेरी बनाये।उस पर एक छोटी सी ताम्बे कि प्लेट या कटोरी रखे,उस पात्र को सिन्दूर से पूरा भर दे.इस कटोरी में एक गोल सुपारी सिन्दूर से रंजीत कर स्थापित करे.ये सुपारी गणपति का प्रतिक है.साथ ही गणपति का कोई चित्र अथवा विग्रह भी बाजोट पर स्थापित करे.सुपारी और गणपति का सामान्य पूजन करे.तील के तैल का दीपक जलाये।गूढ़ प्रसाद रूप में अर्पित करे नित्य साधना के बाद ये गूढ़ एक रोटी में रखकर गाय को खिला दे स्वयं न खाये।पूजन करे ऋण मुक्ति का संकल्प लेकर।मूंगा माला या रुद्राक्ष माला से २१ माला निम्न मंत्र कि करे.

ॐ  गं ऋणहर्तायै गं नमः 
om gam rinhartyayi gam namah 

इस साधना में आपको नित्य श्वेतआर्क के २१ पत्तो पर सिंदूर से ये मंत्र लिखकर रख लेना है.और प्रत्येक माला कि समाप्ति पर एक पत्ता  गणपति पर अर्पित करना है.इस प्रकार नित्य साधना करे.साधना आपको अगले बुधवार तक करनी होगी।अंतिम दिवस साधना के पश्चात् अग्नि प्रज्वलित करे तथा,घी में दूर्वा मिलाकर इसी मंत्र के अंत में स्वाहा लगाकर  गणपति को १०८ आहुति प्रदान करे.अगले दिन लाल वस्त्र,सिन्दूर,मसूर,सुपारी  तथा वो पात्र जिसमे सिन्दूर भरा था किसी गणपति मंदिर में रख आये तथा ऋण मुक्ति हेतु प्रार्थना करे.इस प्रकार ये दिव्य ऋण मुक्ति साधना पूर्ण होती है.बाद में नित्य एक माला अवश्य करे.साधना करे और स्वयं देखे कि कैसे ऋणहर्ता,विघ्नहर्ता आपके ऋण को समाप्त करते है.आप सभी को सफलता प्राप्त हो इसी कामना के साथ.

जय माँ 

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Monday 16 December 2013

कुछ लघु प्रयोग

मित्रो लघु प्रयोगो का सदा से अपना ही महत्व रहा है.जहा बड़े बड़े उपाय कुछ नहीं  कर पाते है वही लघु प्रयोग तीव्र प्रभाव दिखा जाते है.आपके लिए उन्ही लघु प्रयोगो में से कुछ यहाँ दिए जा रहे है पूर्ण विश्वास है कि आपको लाभ होगा।

१. क्रोध शांति हेतु 

जिन्हे बहुत अधिक क्रोध आता हो वे नित्य रात्रि में सोते समय एक ताम्बे के लोटे में जल भर दे और उसमे एक चाँदी का सिक्का डाल दे.प्रातः मुह आदि धोकर इस जल का सेवन करे.धीरे धीरे क्रोध में कमी आ जायेगी और आपका स्वभाव  सोम्य होने लगेगा।

२. नकारत्मक ऊर्जा को दूर करने हेतु 

यदि आप सदा मानसिक तनाव में रहते है.नित्य बुरे स्वप्न आते है.छोटी छोटी बाते आपको अधिक विचलित कर देती है.अकारण भय लगता रहता है तो ,रात्रि में सोते समय अपने तकिये के निचे एक छोटा सा फिटकरी का टुकड़ा रख ले.और सुबह उठकर उसे अपने सर से तीन बार घुमाकर घर के बहार फेक दे.सतत कुछ दिनों तक करे  अवश्य लाभ होगा।

३.गृह कलह निवारण एवं शुद्धि हेतु 

यदि निरंतर घर में कलह का वातावरण बना रहता हो,अशांति बनी रहती हो.व्यर्थ का तनाव बना रहता हो तो.थोड़ी सी गूगल लेकर " ॐ ह्रीं मंगला दुर्गा ह्रीं ॐ "  मंत्र का १०८ बार जाप कर गूगल को अभी मंत्रित कर दे और उसे कंडे पर जलाकर पुरे घर में घुमा दे.ये सम्भव न हो तो गूगल ५ अगरबत्ती पर भी ये प्रयोग किया जा सकता है.घर में शांति का वातावरण बनने लगेगा।

४.स्मरण शक्ति हेतु 

यदि आपकी स्मरण शक्ति तीव्र नहीं है,तो किसी भी सोमवार को शिवलिंग पर शहद से अभिषेक करे.अभिषेक करते समय ॐ नमः शिवाय का जाप करते जाये और एक एक चम्मच शहद शिवलिंग पर अर्पित  करते जाये इस प्रकार १०८ बार करे.फिर इस शहद को किसी डिब्बी में सुरक्षित रख ले.अब नित्य थोडा शहद लेकर १०८ बार " ऐं " बीज मंत्र का जाप करे और शहद अभी मंत्रित कर ले.इस शहद को स्वयं ग्रहण कर ले.तथा थोडा सा शहद मस्तक पर लगाये।धीरे धीरे आप स्वयं अनुभव करेंगे कि आपकी स्मरण शक्ति में सुधार हो रहा है.

५. अनिद्रा दूर करने हेतु 

यदि आपको अनिद्रा कि समस्या है तो रात्रि में सोने से पूर्व " ॐ क्लीं शांता देवी क्लीं नमः " का माँ दुर्गा का ध्यान करते हुए १०८ बार जाप करे और सो जाये। धीरे धीरे आपकी ये समस्या का भी अंत हो जायेगा।


६. धन वृद्धि हेतु 

यदि धन में वृद्धि ना हो रही हो,साथ ही व्यर्थ का व्यय बढ़ता जा रहा हो तो शुक्रवार को १६ कमलगट्टे को शुद्ध घृत में मिलाकर अग्नि में " ॐ श्रीं स्थिर लक्ष्मी श्रीं वरदायै नमः " मंत्र से आहुति प्रदान करे.कुछ शुक्रवार करे और परिणाम स्वयं देखे।इसी मंत्र के मध्यम से अघोरी अपने जीवन में लक्ष्मी को बांध देते है.रस क्षेत्र में भी इस मंत्र का अत्यंत महत्व है,जिसमे कुछ विधि या साधना  करके लक्ष्मी को सदा सदा के लिए घर में स्थिर किया जा सकता है.परन्तु ये रस तंत्र का विषय है तो इस पर चर्चा फिर कभी होगी।

आप सभी इन लघु प्रयोगो को करे,माँ से प्रार्थना है कि आपको सफलता प्राप्त हो.

जय माँ 

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Tuesday 10 December 2013

ब्रह्मचर्य और कुछ आवश्यक बाते

आप जो भी साधनाये करते है,उसमे सदा ब्रह्मचर्य पालन का आदेश दिया जाता है.उसका एक विशेष कारण है कि जब आप साधना करते है तो मंत्रो से संचित कि हुई ऊर्जा मूलाधार से सहस्त्रार कि और बढ़ती है.और उसका भेदन कर इष्ट अथवा सम्बंधित देवता तक जाती है जिनकी आप साधना कर रहे है.और यही ऊर्जा से देवता को बल प्राप्त होता है आपके कार्यो को सिद्ध करने के लिए.

परन्तु ब्रह्मचर्य है क्या ?

क्या केवल ब्रह्मचर्य इतना ही है कि,देहिक सम्बन्धो को स्थापित करने से बचा जाये ?

नहीं ब्रह्मचर्य दो शब्दो से मिलकर बना है,ब्रह्म एवं चर्या। ब्रह्म का अर्थ है ईश्वर, और चर्या का अर्थ है आचरण।इस प्रकार बह्मचर्य का अर्थ होता है.

ईश्वर कि तरह आचरण करना,जैसे ईश्वर रहते है साधना के मध्य उसी प्रकार से रहना।

ईश्वर कैसे रहते है ?

मित्रो ईश्वर आनंद में रहते है,अपनी ही धुन में रहते है,अपनी ही मस्ती में रहते है.हर दृश्य पर दृष्टि तो रखते है परन्तु उन दृश्यों से विचलित नहीं होते है.दृश्य अच्छा है अथवा बुरा वे दोनों ही स्थिति में सम तथा प्रसन्न रहते है.

अब हम पुनः ब्रह्मचर्य पर आते है.साधको हमें चार पुरुषार्थ ईश्वर कि और से प्राप्त हुए है. धर्मं,अर्थ,काम और मोक्ष 

और इन चारो पुरुषार्थो को ही अपने अपने स्थान पर महत्त्व प्राप्त है.इन्ही में से एक है काम.
मित्रो यदि काम बुरा होता तो चार पुरुषार्थो में इसका नाम न होता।काम बुरा नहीं है,बस उसका प्रयोग किस तरह किया जा रहा है.उसी प्रयोग के आधार पर वो अच्छा या बुरा होता है.

जब भी आप साधना करते है तो सबसे बड़ा प्रश्न आपके समक्ष होता है ब्रह्मचर्य का, कि कैसे इतने दिनों तक इसका पालन किया जाये ?

दो या तीन दिन कि बात हो तो शायद आप कर भी ले किन्तु यदि साधनाये लम्बी हो तो क्या किया जाये ? साधना क्षेत्र में तो कई कई साधनाये ऐसी भी है जो कि एक से दो वर्ष तक सतत कि जाती है.या इससे भी अधिक समय तक कि जाती है.ऐसी स्तिथि में ब्रह्मचर्य आम व्यक्ति के लिए अत्यंत कठिन कार्य हो जाता है.

मित्रो क्या देहिक सम्बन्धो को स्थापित करने से बह्मचर्य खंडित हो जाता है ?

नहीं ऐसा कदापि नहीं है। 

ब्रह्मचर्य का अर्थ है कि आप सदा कामुकता से दूर रहे.अब यदि आप विवाहित है तो गृहस्थी से जुड़े आपके कई कर्त्तव्य है जिनका पालन अति आवश्यक हो जाता है.उन्ही कर्तव्यों में से एक कर्त्तव्य है देहिक सम्बन्धो को स्थापित करना।

अब प्रश्न उठा है कि अगर हमने सम्बन्ध स्थापित किये तो साधना खंडित हो जायेगी।परन्तु ऐसा नहीं है मित्रो, साधना उसी कि खंडित होगी जो २४ घंटे सतत कामुक चिंतन करता हो.आज आपके समक्ष इन्ही बातो को स्पष्ट करना चाहता हु ताकि आप सभी इस गम्भीर दुविधा से बाहर  आ सके.

मान कीजिये आपको साधना दी दी  गयी है,४० दिनों कि.अब हो सकता है कि आप  इतने दिनों तक ब्रह्मचर्य का पालन न कर पाये।तो जिस भी गुरु अथवा मार्गदर्शक ने आपको साधना विधान दिया है उनसे अपनी बात कही जाये।योग्य गुरु इस बात को भली प्रकार जानते है कि साधक को लम्बी साधनाओ में भी कब कब देहिक सम्बन्धो को स्थापित करने कि अनुमति दी जा सकती है.क्युकी वे गुरु है और सम्पूर्ण तंत्र एवं साधना मार्ग गुरु सत्ता के ही अधीन होता है.साधान के अनुसार गुरु आपको विशेष समय और दिन बता सकते है कि किस किस समय पर आप देहिक सम्बन्धो को स्थापित कर सकते है.तो मित्रो ऐसा करने पर आप दोनों कार्य ही बड़ी सरलता से कर सकते है.साधना का पालन भी और गृहस्थी का पालन भी.

और इसमें आपको कोई दोष भी नहीं लगेगा,मित्रो डरने कि या घबराने कि आवश्यकता नहीं है.

विष्णु अवतार मोहिनी को देख शिव कामुक हुए और उनका वीर्य स्खलित हुआ जिसे आप पारद के नाम से जानते है.ब्रह्मा सरस्वती पर मोहित हो गए अप्सरा पर मोहित हो गए तो शिव के द्वारा अपना मस्तक खो बैठे,जब शिव का वीर्य स्खलित हो सकता है,जब ब्रह्म देव में कामुक भाव जाग सकते है ,तो आप तो आम मनुष्य है.अतः घबराने कि कोई आवश्यकता नहीं है.लेकिन फिर भी हर समय कामुक चिंतन से सदा बचे.

अब जब सद्गुरु आपको बता दे कि कब कब आपको देहिक सम्बन्धो कि अनुमति दी जा रही है,तो साधना में मन अधिक टिकता है क्युकी विचलित करने वाली समस्या का निवारण हो चूका है.

आईये अब आपको कुछ उपाय बताते है जिससे कि देहिक सम्बन्धो के बाद भी आप अपनी साधनात्मक ऊर्जा को संचित करके रख सके.

मान लीजिये आपकी नवार्ण मंत्र कि साधना चल रही है.और ये सतत कई दिनों तक चलनी है.और इस साधना के मध्य ही आपको सम्बन्धो को स्थापित करने कि आवश्यकता अनुभव हो रही है.तो आप डरे नहीं सम्बन्धो को पूर्ण आनंद के साथ स्थापित कीजिये।क्युकी ब्रह्मचर्य का अर्थ ऊपर बताया जा चूका है.ईश्वर कि तरह आनंद पूर्वक आचरण करना।सम्बन्धो को स्थापित करते समय भी आप अनद का अनुभव करे न कि भय का.क्युकी आनंद से सृजन होता है और भय से नाश.ये आनंद आपकी ऊर्जा को खंडित होने ही नहीं देगा।हा किन्तु गुरु से निषिद्ध दिनों को पहले जान  लेना चाहिए।

अब दूसरा उपाय ये है कि सम्बन्धो के तुरंत बाद स्नान करना अनिवार्य है,और ये आपको सर से लेकर पैर तक स्नान करना होगा स्त्री हो या पुरुष दोनों के लिए ये नियम समान  है.और अगले दिन यदि नवार्ण मंत्र कि साधना चल रही है तो प्रायश्चित स्वरुप नवार्ण मंत्र कि ही २१ माला कर इष्ट को समर्पित कर दे.इसे आप हर दोष से दूर हो जायेंगे।स्मरण रखे आपने  कोई अपराध नहीं किया है.साधना के मध्य आप भोजन करते है,भूके नहीं रह  सकते इसलिए आप सात्विक भोजन करते है.नग्न होकर साधना नहीं कर सकते इसलिए ढीले वस्त्र धारण करते है जिससे कि ऊर्जा के प्रवाह में कोई बाधा  न आये,रात्रि में साधना के कारण सो नहीं पाते है तो दिन में सोकर उसकी पूर्ति करते है.अर्थात आपने हर बात का विकल्प ढूंढ रखा है इस कारण आप साधना के मध्य भोजन,वस्त्र तथा निद्रा को लेकर विचलित नहीं होते है.किन्तु देहिक सम्बन्धो कि बात आते ही ज्ञानी मौन हो जाते है.हो सकता है कि कभी उसके विकल्प पर वे विचार करना ही नहीं चाहते है.किन्तु इस विचलन से मुक्ति के भी उपाय है जिससे कि आप तनाव मुक्त हो साधना कर सकते है.

अब अगले उपाय कि और आते है.अब तक हमने बताया कि सम्बन्धो के बाद तुरंत स्नान करने से दोष समाप्त हो जाता है.साथ ही प्रायश्चित माला का विधान भी बता दिया है.

अब कई लोगो कि समस्या है साधना के मध्य स्वप्न दोष कि,मित्रो अगर ऐसी कोई स्थिति बनती भी है तो घबराने कि आवश्यकता नहीं  है.वीर्य के कारण खोयी शक्ति को वीर्य ही लौटा सकता है.रस क्षेत्र में इसके लिए दिव्याकर्षण गोलक का प्रयोग किया जाता है.क्युकी ये शिव वीर्य अर्थात पारद से निर्मित होता है. जो अत्यंत दुष्कर कार्य है.कुछ विशेष क्रियाओ के साथ ही पारद के संस्कार किये जाते है और अघोर तथा रस तंत्र के मंत्रो के माध्यम से गोलक का निर्माण कर दिया जाता  है.इसके निर्माण कि विधि भी भविष्य में शीघ्र ही ब्लॉग में आपके समक्ष रखी जायेगी,ताकि रस क्षेत्र के ज्ञानी उसका निर्माण स्वयं कर सके.

सम्बन्धो को स्थापित करने के बाद या स्वप्न दोष के बाद,जो ऊर्जा जायेगी उसे ये गोलक  पुनः आपके अंदर स्थापित कर देगा।दोष मुक्ति से कैसे बचा जाये ये हमने ऊपर बताया है.अब बताते है कि कैसे ब्रह्माण्ड में विलीन हो चुकी ऊर्जा को पुनः प्राप्त किया जा सकता है.

प्रातः दिव्याकर्षण गोलक को इष्ट के चरणो में रखे और उसी मंत्र कि एक माल करे जिस मंत्र कि आपकी साधना चल रही है.माला पूर्ण होने के बाद गोलक को सीधे हाथ में रखे तथा इष्ट से प्रार्थना करे कि.देहिक सम्बन्धो के कारण  या स्वप्न दोष के कारण  मेरी जितनी भी ऊर्जा का ह्रास हुआ है.प्रभु इस इस शिव वीर्य से निर्मित दिव्याकर्षण गोलक के माध्यम से मुझे पुनः लौटा दे.प्रार्थना के बाद गोलक को आज्ञा चक्र के स्थान पर रखे और सम्बंधित मंत्र को २१ बार पड़े,इसके बाद गोलक को सहस्त्रार चक्र के स्थान  पर रखे और पुनः २१ बार मंत्र का जाप करे.इसके बाद गोलक को पीले वस्त्र में बांध  दे और इष्ट के चरणो में रख दे.अब जब भी आप रात्रि में या दिन में शयन करे तब इसे अपने तकिये के निचे रख ले मात्र एक घंटे में ही ये गोलक आपकी खोयी  ऊर्जा का बृह्मांड से आकर्षण कर आपके सहस्त्रार में पुनः स्थापित कर देगा।इस प्रकार ये क्रिया पूर्ण हो जाती है.इस गोलक पर सेकड़ो प्रयोग हो सकते है पर उनकी चर्चा फिर कभी होगी।

मित्रो आपको कई उपाय मैंने बताये  साथ ही पूरा प्रयत्न किया है कि आपको ब्रह्मचर्य रुपी भय से मुक्त कर सकू,जिसके भय से आप साधना करते ही नहीं है. आशा करता हु कि आज आपकी इस दुविधा का भी में समाधान करने में सफल हुआ हु.तो मित्रो साधना अवश्य  करे,परन्तु  भय में जीकर नहीं।

आनंद के साथ करे,ताकि आप अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सके.

साथ ही एक बात और स्पष्ट करना चाहूंगा कि उपरोक्त सभी नियम एवं छूट केवल पति पत्नी के मध्य दी गयी है.पर स्त्री गमन करने वाले पुरुष तथा पर पुरुष के साथ गमन करने वाली स्त्री इनका प्रयोग न करे क्युकी ऐसा निन्दित कार्य करने वालो को सदा ईश्वर के कोप का पात्र बनना पड़ता है ऐसो को  न कभी कृपा मिली और न ही मिलेगी।


जय माँ 

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Saturday 7 December 2013

गुरु शरणम्



मित्रो आप सभी मेरे अपने है,अतः आज आप सभी से कुछ चर्चा करना आवश्यक समझता हु.में नहीं जानता  कि आप सभी मुझसे सहमत होंगे या नहीं।में ये भी नहीं जानता  कि आपमे  से कितने लोग मेरे विरोध पर उतारू हो जायेंगे मेरी इस पोस्ट के बाद,परन्तु फिर भी जो कहना आवश्यक है वो है,और उसे कहना ही पड़ेगा।


हम साधको के जीवन का सबसे अनमोल उपहार होते है सद्गुरूदेव, जो कि ईश्वर कि और से हमें दिए जाते है.निश्चय ये पिता परमेश्वर कि ही कृपा है हम सब पर कि हम सबको किसी न किसी गुरु का सानिध्य प्राप्त हुआ है.किन्तु साथ ही ये गुरु तत्त्व का दुर्भाग्य भी है,कि आज उस परम तत्त्व को समझने वालो कि संख्या दिन प्रतिदिन गिरती जा रही है.मित्रो हमने देवी,देवता,विधि आदि सभी को सम्प्रदाय और पंथ में बांध दिया है.भगवान भोलेनाथ ने सभी तंत्र और मार्गो कि उत्पत्ति केवल और केवल इसलिए ही कि थी कि मनुष्य अपने सामर्थ्य अनुसार मार्ग का चयन कर साधना पथ पर आगे बड़ प्रगति करे.न कि इसलिए कि हम  पंथ या सम्प्रदाय के नाम पर एक दूसरे को लज्जित करे या एक दूसरे को हीन समझे। 

परन्तु इस समय तो कुछ ऐसा ही हो रहा है.हम साधना कम कर रहे है बल्कि  एक दूसरे पर कीचड़ अधिक  उछाल रहे है.पंथो तथा मार्गो के नाम पर.ऐसा करके हम अपना सम्मान तो कम करते ही है साथ ही पंथ और सम्प्रदाय कि गरिमा को भी कलंकित करते है.

मेरे सद्गुरुदेव ने पंथ और सम्प्रदाय से मुक्त होकर सम्पूर्ण जीवन जिया,और जब मुझे गुरुगादी सौपी गयी तो सबसे प्रथम आदेश ही यही था कि,इन सब चीज़ो में न उलझते हुए केवल साधना मार्ग पर मुक्त भाव से बढ़ना और मानवता के काम  आना.

मित्रो सभी के गुरु सम्मानीय है,चाहे वे मेरे गुरु हो,निखिलेश्वरानंद जी हो,राम कृष्ण परमहंस जी हो,सभी मेरे लिए बराबर है.कुछ दिनों से मुझे कई मेल प्राप्त हुए.जिनमे एक प्रश्न सामान्य था कि कि आप निखिलेश्वरानंद जी के बारे में क्या सोचते है.अब में क्या कहु ?

क्युकी मैंने कभी कुछ सोचा ही नहीं,न में कभी उनसे मिला,न ही व्यक्तिगत संपर्क में रहा हु.क्युकी में अपने गुरुदेव कि ही सेवा में रहता  था.लेकिन फिर भी एक बात स्प्ष्ट कहना चाहता हु,कि वे ज्ञान के भंडार थे.और यदि कोई उनकी निंदा करता है या उनमे कोई खोट निकालता  है तो ये निंदनीय है.

में किसी भी सम्प्रदाय या पंथ का विरोधी नहीं हु,किन्तु यहाँ जो कुछ चल रहा है उसे देखकर मन अत्यंत दुखी होता है.एक साधक का प्रथम लक्ष्य होता है पूर्णता को प्राप्त करना,और पूर्ण तो वो ही हो सकता है न जो बंधनो से मुक्त हो जाये।पंथ का बंधन,सम्प्रदाय का बंधन ये भी तो फिर एक बंधन ही हुआ है न.मुझसे भी ये प्रश्न पूछे जाते थे कि आप कोनसे पंथ से है.आपके गुरु कोनसे पंथ से थे.मित्रो तो उत्तर तो यही है कि मेरे गुरु का पंथ है "शिष्य "वे अपने शिष्यो को ज्ञान देते और उनमे ही मस्त रहते थे.तब मेरा पंथ था "सद्गुरु" क्युकी में उनमे मस्त रहता था.फिर गुरुगादी मिली और अब मेरा पंथ हो गया " गुरु शिष्य " पंथ क्युकी दिन में अब में अपने शिष्यो में मस्त रहता हु और रात्रि में गुरु कि याद में.
बस यही पंथ है मित्रो।आप वैष्णव बन जाये,दक्षिण मार्गी,कौल,अघोर,वाम,शाक्य या शैव बन जाये किन्तु आप सच्चे साधक तभी बनते है जब सद्गुरु तत्त्व के समक्ष आपका पूर्ण समर्पण हो जाये।

बाकि विवाद तो बस खेल तमाशा है.किसी एक पंथ में बंधकर हमें एक लेवल तो मिल जाता है कि में इस पंथ का हु.लेकिन आपकी विराटता का क्या ? क्युकी कुए में रहकर तालाब  को जाना नहीं जा सकता है.हमें तो कुए को जानने  के बाद सागर में भी गोता  लगाना है,उसकी गहरायी तक उतरना है,उसी प्रकार पंथो में उलझ जायेंगे तो ज्ञान कि तथा साधना क्षेत्र कि विराटता को आप कभी जान ही नहीं पाएंगे।साधक वो जो पूर्ण हो,साधक वो जिसे हर पल कुछ नया करने  कि इच्छा हो,साधक वो जो अपने पंथो में न उलझते हुए सभी पंथो को अपना बना ले.

फकीरी अव्वल बादशाही है मित्रो,
साधक तो फ़क़ीर कि तरह होना चाहिए,जीवन के हर ज्ञान को अपनी धुन में सीखे।बड़ा छोटा अपना पराया सभी का त्याग कर आगे बड़े.

अहंकार का त्याग करे कि मेरे मार्ग से ही मुक्ति सम्भव है,या उसका मार्ग तो तुच्छ मार्ग है.मुक्ति मार्गो से मिला करती मेरे प्यारो, तो हर आदमी मुक्त होता,मुक्ति आती है समर्पण से,निश्चलता से,पवित्रता से,देह से मुक्त हो मोक्ष को पा  जाना मुक्ति नहीं है.ये तो बड़ा सस्ता सौदा है.मुक्त तो वो है जो यही जीते जी मुक्त हो गया हर भेद से,हर पंथ से हर रंग से.

शिव ही सब तंत्रो के जनक है,उनका पंथ क्या है ? उनका तो कोई पंथ नहीं है.जब वे कौल पर बोलते है तो कौलाचार्य हो जाते है,जब वे अघोर पर बोलते है तो अघोर हो जाते है.जब शिवलिंग कि महत्वता समझाते  है तो शैव हो जाते है.जब राम को नमन करते है तो वैष्णव हो जाते है.और जब काम कला काली पर बोलते है तो शाक्य हो जाते है.उनका अपना तो कोई पंथ ही नहीं है.वे जहा खड़े होते है वही से पंथ आरम्भ होता है,वे जिसके साथ खड़े होते है उसी के पंथ में मिल जाते है.वे तंत्र के महा गुरु है क्युकी उनसे ही तंत्र पृथक पृथक रूप में प्रगट होता है.अब मित्रो जब तंत्र के महा गुरु का कोई पंथ नहीं है,तो अन्य गुरु कि क्या बिसात के वे पंथो में उलझे।

बल्कि मेरी तो हिम्मत ही नहीं होती इन सबमे उलझने कि,क्युकी महागुरु मुक्त है तो गुरु क्यों उलझे।न मेरे गुरु उलझे, न में उलझा और न ही मेरे शिष्य कभी उलझेंगे।हम  तो सदा से मुक्त थे है और रहेंगे।

अतः सभी से कर बद्ध निवेदन है कि किसी के गुरु कि निंदा न करे,भले ही आप उनसे सहमत हो या न हो किन्तु ऐसे शब्दो का प्रयोग न करे जिससे किसी का ह्रदय पीड़ित हो,क्युकी ह्रदय में ईश्वर निवास करते है और ईश्वर का घर तोड़कर हमें अपने ज्ञान और पंथो का महल बनाना  पड़े तो क्षमा करे,ऐसा महल किसी काम का नहीं है.अतः सदा सबका सम्मान करे,सबको खुश रखे,हर भेद  भाव से ऊपर उठकर एक ईश्वर कि और बड़े एक गुरु सत्ता कि और बड़े,यही जीवन का आनंद है.

जय अम्बे ,जय जगदम्बे 

Friday 6 December 2013

पितृ मुक्ति रसेश्वर प्रयोग

रसतन्त्र सदा से मनुष्य के लिए आकर्षण का विषय रहा है.क्युकी ये एक ऐसा विषय है जो साधक को सब कुछ दे देने में समर्थ है.किन्तु जितनी इस क्षेत्र में  दिव्यता है,उतना ही परिश्रम भी है.रस तंत्र के साधको ने समय समय पर समाज के समक्ष कई साधनाये रखी जो कि अपने आप में अद्भूत है.आज भी हम पारद से जुडी कई कई साधनाये संपन्न करते है तथा उसके लाभ को अपने जीवन में अनुभूत करते है.ऐसी कोई साधना नहीं है जो पारद विज्ञानं से दूर रही हो,चाहे महालक्ष्मी हो या कुबेर प्रयोग हो,या स्वर्णाकर्षण साधना ही क्यों न हो सभी पारद के माध्यम से कई कई बार संपन्न कि गयी है.जहा हम पारद विग्रह के माध्यम से देवी देवता इतर योनि आदि को आकर्षित कर प्रसन्न कर सकते है,वही इन दिव्य विग्रह पर साधना कर आप पितृ दोष से मुक्त हो पित्रो कि कृपा के पात्र भी बन सकते है.

प्रश्न उठता है कि क्या ये सम्भव है कि हम पारद शिवलिंग के माध्यम से पितृ शांति कर सके ? क्या पारद शिवलिंग के माध्यम से पित्रो कि कृपा प्राप्त कि जा सकती है ?

जी हाँ 

पारद में अद्भूत आकर्षण है.जो शेषनाग को भी अपनी और खीच ले.नागकन्याओ  का सम्मोहन कर उन्हें अपने समक्ष आने पर विवश कर दे.तो फिर पितृ क्यों आकर्षित नहीं होंगे भला.

सामान्य रूप से हम पित्रो कि तृप्ति के लिए तर्पण आदि का सहारा लेते है.और ये अत्यंत प्राचीन विधान भी है.जिसके अंतर्गत पिंड दान,तर पिंडी आदि भी आती है.उसी प्रकार रस तंत्र के ज्ञानी हमें पारद के क्षेत्र में भी पित्रो के कई कई विधान प्रदान करते है.उनमे से ही एक साधना है जिसे रस क्षेत्र में " पितृ मुक्ति रसेश्वर प्रयोग  " के नाम से जाना जाता है.

नाम से ही ज्ञात होता है कि प्रस्तुत विधान पित्रो कि मुक्ति से सम्बन्ध रखता है.

मनुष्य अपने कर्मो के अनुसार गति पाता है.उसी अनुसार उसे पुनः गर्भ में भेज दिया जाता है ताकि वो अपने कर्मो का भोग कर मुक्ति प्राप्त कर सके.परन्तु कभी कभी कर्म अधिक दूषित होने पर मनुष्य को  गर्भ कि भी प्राप्ति नहीं होती है.और उसे  अन्य योनियों में भटकना पड़ता है, जिन्हे हम भूत,प्रेत या पिशाच आदि के नामो से जानते है.इसके अतिरिक्त यदि मनुष्य इन सबसे बच भी जाये तो उसकी आत्मा ब्रह्माण्ड में अतृप्त हो मुक्ति कि चाह में विचरण करती रहती है.और अपने वंशजो को कष्ट पहुचाती रहती है.

ताकि वो इन कष्टो से व्यथित हो उनकी मुक्ति का उपाय करे.प्रस्तुत साधना आज इसी विषय पर है,जिसके करने मात्र से पितृ मुक्त हो जाते है.यदि परिवार का कोई सदस्य किसी अन्य योनि में कष्ट भोग रहा हो तो उसे मुक्ति मिलती है,तथा वो सद्गति पाता  है.और जब पितृ सद्गति को प्राप्त कर लेते है तो वंशजो कि प्रगति निश्चित है.क्युकी अब पितरो कि और से दी जा रही बाधा  सदा सदा के लिए समाप्त हो जाती है.ये प्रयोग पारद शिवलिंग पर किया जाता है क्युकी साधना के मध्य पारद पित्रो का आकर्षण करता है और उन्हें खीचकर साधक के कक्ष तक लाता है.और साधना के अंत में यही पितृ साधना का समस्त पुण्य लेकर पितृ लोक कि और विदा लेते है तथा मुक्ति के मार्ग कि और बढ़  जाते है.इसके साथ ही साधक को आशीर्वाद देते है, जिससे साधक अध्यात्मिक तथा भौतिक दोनों ही सुख प्राप्त करता है.तो मित्रो साधना को कर आप अपने पितरो के ऋण से मुक्त होने का प्रयत्न करे.जिन्होंने आपको जन्म दिया जिनके कारण आपका अस्तित्व है उन्हें समस्त कष्टो से मुक्त कर उन्हें सद्गति प्रदान करवाये।इससे बड़ा उपहार और कोई नहीं होगा जो आप अपने पितरो को दे सके.सभी साधको के लिए प्रस्तुत है. पितृ मुक्ति रसेश्वर प्रयोग।

ये प्रयोग आप किसी भी पूर्णिमा से या सोमवार प्रातः ४ से ९ के मध्य कर सकते है.स्नान कर श्वेत वस्त्र धारण कर श्वेत आसन पर दक्षिण कि और मुख कर बैठ जाये।सामने बाजोट पर श्वेत वस्त्र बिछाकर उस पर ताम्र या स्टील कि थाली रखे.अब इस थाली में काले तील और सफ़ेद तील मिलाकर  एक ढेरी बना दे.अब पारद शिवलिंग को दूध तथा जल से स्नान कराकर स्वच्छ वस्त्र से पोछकर इस ढेरी पर स्थापित कर दे। इसके बाद सद्गुरुदेव तथा गणपति का सामान्य पूजन कर गुरु मंत्र तथा गणपति मंत्र कि एक माला करे.इसके बाद पारदेश्वर का सामान्य पूजन करे.तथा शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित करे.भोग में केसर मिश्रित खीर पारदेश्वर को अर्पित करे.इसके बाद हाथ में जल लेकर संकल्प करे कि में ये पितृ मुक्ति रसेश्वर प्रयोग अपने पितरो कि शांति तथा मुक्ति हेतु कर रहा हु,तथा पितृ दोष से मुक्ति हेतु एवं पितृ शांति हेतु कर रहा हु,भगवान पारदेश्वर मेरी मनोकामना को पूर्ण करे तथा मुझे साधना में सफलता प्रदान करे.जल जमीन पर छोड़ दे.अब कुछ मंत्र दिए जा रहे है, सभी का आपको १०८ बार पाठ करना है और जिस मंत्र के आगे जो सामग्री लिखी गयी है वो पारदेश्वर पर अर्पित करना है.एक बार मंत्र पड़ना और सामग्री अर्पित करना इसी प्रकार हर मंत्र को १०८ बार पड़कर अर्पण करते जाना है.

ॐ भूत मुक्तेश्वराय नमः ( काले तील )

ॐ प्रेत मुक्तेश्वराय नमः  ( सफ़ेद तील )

ॐ पिशाच मुक्तेश्वराय नमः ( जौ )

ॐ श्मशानेश्वराय नमः ( गाय के कंडे या लकड़ी से बनी भस्म )

ॐ सर्व मुक्तेश्वराय नमः ( सफ़ेद तथा काले तील मिश्रित )

ॐ पितृ मुक्तेश्वराय नमः ( सफ़ेद,काले तील तथा जौ मिश्रित )

ॐ  रसेश्वराय नमः ( दूध मिश्रित जल को पुष्प से छीटे )


इसके बाद रुद्राक्ष माला से निम्न मंत्र कि ७ माला जाप करे.

ॐ हरीहर पितृमुक्तेश्वर पारदेश्वराय नमः 

प्रत्येक माला कि समाप्ति के बाद थोड़े अक्षत पारदेश्वर पर अर्पण करे.जब जाप पूर्ण हो जाये तब सम्पूर्ण पूजन भगवान् शिव को अर्पित कर दे.तथा उनसे पितृ शांति,पितृ मुक्ति तथा पितृ  दोष निवारण कि प्रार्थना करे.भोग कि खीर नित्य गाय को खिला दे.तथा साधना के बाद पुनः स्नान करे.इसी प्रकार साधना को ३ दिन करे.साधना  समाप्ति के बाद पारदेश्वर को स्नान कराकर पूजा घर में ही स्थापित कर दे.तथा समस्त समग्री जो पात्र में एकत्रित हुई है उन्हें बाजोट पर बिछे वस्त्र में बांधकर किसी पीपल वृक्ष के निचे गाड़ दे ये सम्भव न हो तो वृक्ष के निचे रख आये.परन्तु प्रयत्न यही करे कि सारी  सामग्री गाड़ी जाये।इस प्रकार ये दिव्य विधान पूर्ण होता है.

निसंदेह साधक के सभी पितृ इस प्रयोग से तृप्त हो साधक को आशीर्वाद प्रदान करते है.पितृ दोष का नाश होता है.पितृ शांति हो जाती है.तथा पितरो को सद्गति प्राप्त होती है.कुपित हुए पितृ शांत हो साधक को आर्थिक,देहिक तथा मानसिक बल प्रदान कर सुखी करते है.साधको प्रयोग को स्वयं कर अनुभव करे.तथा अपने पितरो के प्रति अपने कर्त्तव्य का पालन करे.आपको साधना में सफलता प्राप्त हो तथा पारदेश्वर आपके पितरो को शांति प्रदान करे इसी कामना के साथ ,

जय माँ 

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pitambara366@gmail.com




Sunday 1 December 2013

गौसे आज़म का अमल








गौसे आज़म का नाम सभी ने सुना होगा,इन्हे वलियों का सरदार कहा जाता है.मतलब  सभी वलियों में सबसे आला मुकाम आपको हासिल है ।इनका अमल मुस्लिम तंत्र से किया जाता है,लेकिन  वो अमल  बहुत कि मुश्किलात से भरा होता है,जो कि आम इंसान के बस से बाहर हो जाता है.क्युकी इस्लामिक तरीके से किये जा रहे अमल में आपको नमाज़ और कई शरई बातो का पाबंद होना पड़ता है.इसलिए कई मुश्किलात सामने पेश आती ही है.लेकिन फकीरो ने इस मुआमले में,साबर मंत्रो को भी इजात किया है,जो कि अपने आप में पूरी शिफा और तासीर से भरे हुए है.आज हम उसी मौज़ू पर गुफ्तगु कर रहे है.

काफी दिनों से आप लोगो कि  ख्वाहिश रही है कि हज़रत गौसे आज़म का अमल दिया जाये।जो कि आज दिया जा रहा है.और आगे भी कई ऐसे अमल पेश किये  जायेंगे।लेकिन अमल देने के पहले एक बात आपसे साफ करना  चाहूंगा।अगर आप सोचते है कि,गौसे आज़म का अमल करके आप जिन्नो पर हुकूमत करने लगेंगे,उनसे माल और सामान मंगवा लेंगे।तो जनाब आप गलत सोच रखते है. क्युकी कोई भी वली आपके नेक कामो में ही आपका साथ देंगे,ऐसे किसी काम में वो आपका साथ नहीं देंगे उनके दिल को नागवार गुज़रे।फिर भी वो आपके हर नेक काम में आपका साथ देंगे,जब तक आप नेकी पर है तब तक वो आपके साथ है.आईये अब आपको अमल का तरीका बताते है.

किसी भी नौचंदी जुमेरात से आपको ये अमल शुरू करना होगा।वक़्त होगा रात १२ बजे का.ज़मीन पर सफ़ेद सूती कपडा बिछाये और उस पर बैठे।आपको सफ़ेद लुंगी पहनना है और ऊपर भी एक सफ़ेद कपडा ही डालना है.जो कि बिना सिला हो.जिसे अहराम कहा जाता है.अमल आपको ऐसे कमरे में करना है जहा कोई न आये ४० दिनों तक.अब मगरिब कि और मुह करके बैठ जाये।अपने सामने एक तिल के तैल का चिराग रोशन करे.औए वही पर किसी बर्तन में २१ बादाम और खजूर रखे.लोबान कि अगरबत्ती जलाये।अपने कपड़ो पर इत्र लगाये।अब इस आयत को ९  बार पड़कर किसी तेज़ धारदार चाकू पर दम करे और अपने आस पास एक हिसार खीच ले.

कुल हुवल्लाहु अहद, अल्लाहूस्मद, लम यलिद  व लम युलद व लम युकुल्लुहु कुफ़ुवन अहद 

इसके बाद तस्बीह से इस दुरुद कि एक तस्बीह फेरे 

दुरुद: सलल्लाहो अलेका या मुहम्मदूम  नुरूम मीन नुरिल्लाही 

इसके बाद इस अमल कि  ७ तस्बीह फेरे 

अमल : या गौसे आज़म आओ आओ फरियाद करू मोहम्मद कि आन                   धरु आओ हाज़िर हो दीदार दो,हसन हुसैन के नाम पर,आओ                     आओ आओ अलमदद मेरे मौला 

जब इस अमल कि ७ तस्बीह हो जाये तो ऊपर लिखी दुरुद कि एक तस्बीह फिर फेरे और दिल लगाकर दुआ करे.इसमें तस्बीह वही लेना जिसका  इस्तमाल मुस्लिम लोग करते है.खजूर और बादाम रोज़ सुबह बच्चो में बाट दे गौसे आज़म के नाम पर.

यदि कोई आवाज़ आये तो डरे नहीं अपना अमल जारी रखे.साथ ही अमल के बिच कोई हाज़िर हो जाये और बात करे तो भी जवाब न दे.इससे अमल ख़राब हो जायेगा।आखिर दिन हज़रत ग़ौस पाक के दीदार आमिल को होते है.उनसे अदब के साथ सलाम करे और अपनी बात कहे.आप उनसे वादा ले लीजिये कि जब भी आप ये अमल पड़ेंगे वे आकर आपकी मदद करेंगे।आखिर दिन जब वो हाज़िर हो तो इतर और जो खजूर और बादाम रखे है उनके आगे पेश करे.अमल के दोरान जूठ बोलने से बचे,किसी भी गलत काम को करने से बचे.आपको कामयाबी जरुर मिलेगी।हज़रत से हमेशा अदब से पेश आये,क्युकी वे वली है,किसी के गुलाम नहीं है.

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pitambara366@gmail.com

जय माँ