Tuesday 28 January 2014

शिव शक्ति महाअघोर कवच और लघु प्रयोग



मित्रो जिन साधको ने " शिव शक्ति महाअघोर कवच " मंगवाए थे,कवच निर्मित होते ही उन्हें कवच भेजने कि क्रिया आरम्भ कर दी जायेगी।आपको कवच प्राप्ति के बाद साधना के लिए अधिक प्रतीक्षा न करना पड़े इसलिए यहाँ महाअघोर कवच पर किये जाने वाले कुछ लघु प्रयोग दिए जा रहे है,ताकि आप कवच प्राप्त होते ही उस पर प्रयोग कर सके.अतः आपकी सेवा में कुछ लघु प्रयोग प्रस्तुत है.

निरंतर धन लाभ हेतु 

आप ये प्रयोग अपनी नित्य पूजा में सम्मिलित कर सकते है.अपने सामने " शिव शक्ति महाअघोर कवच " को स्थापित करे और आपको कवच के साथ जो " सिद्धिप्रद रुद्राक्ष " दिया जा रहा है.उस रुद्राक्ष को कवच के ऊपर रखे या कवच के पास उससे सटाकर रख दे रुद्राक्ष इस प्रकार रखे कि वो कवच से स्पर्श होता रहे.अब सिद्धिप्रद रुद्राक्ष पर त्राटक करते हुए,

हूंहूं धनलक्ष्मी आकर्षय आकर्षय हूंहूं 

मंत्र का जाप करे त्राटक आपको नित्य ५ मिनट  तक करना है,या आप रुद्राक्ष माला से जाप करते हुए एक माला करे और त्राटक करते रहे.इस प्रयोग से आपके जीवन में कभी भी धन कि रूकावट नहीं आएगी।

 तंत्र बाधा निवारण 

किसी भी समय ये प्रयोग किया जा सकता है.अपने बाये हाथ में कवच और रुद्राक्ष को रखकर मुट्ठी बांध ले.मुट्ठी जितनी हो सके कसकर बांधे।और अपने सामने एक पात्र में थोडा जल रखे.अब रुद्राक्ष माला से 

रं रं हूं हूं फट 

५ माला जाप करे.इसके बाद जल में फुक मार दे और कवच तथा रुद्राक्ष को पात्र से स्पर्श कराते  हुए ११ बार पुनः उपरोक्त मंत्र का जाप करे.फिर ये जल जिसे पिलाया जायेगा उस पर किया गया तंत्र प्रयोग तुरंत नष्ट हो जायेगा।आप इस जल को घर में भी छिट सकते है इससे घर नकारात्मक ऊर्जाओं से सुरक्षित हो जायेगा।

बुरे सपनो के नाश हेतु 

बाये हाथ में कवच और एक सुपारी रखे और दाये हाथ से ह्रदय मुद्रा का प्रदर्शन करते हुए. " ॐ हूं वज्रेश्वर हूं " मंत्र का २१ बार जाप करे.इसके बाद इस सुपारी को जिसे बुरे स्वप्न  आते हो उसके तकिये के निचे रात  को सोते समय रख दे.और अगले दिन इस सुपारी को घर के बाहर फिकवा दे.समस्या का निवारण हो जायेगा।

उदर रोग नाश हेतु 

किसी लाल वस्त्र पर एक पात्र स्थापित करे और उसे भस्म से भर दे.इस भस्म पर कवच स्थापित कर दे.और बाये हाथ में सिद्धिप्रद रुद्राक्ष रखे,अब  " ॐ ह्रीं शूलधारिणी ह्रीं फट " मंत्र का रुद्राक्ष माला से २१ माला जाप करे प्रत्येक माला के बाद रुद्राक्ष को कवच से स्पर्श कराये।जब जाप पूर्ण हो जाये रुद्राक्ष और कवच संभाल  कर रख दे.और भस्म जिसे उदर रोग हो उसे नित्य एक चुटकी  सेवन कराये तथा कुछ भस्म पेट पर भी लगाये धीरे धीरे उदर रोग समाप्त होने लगेगा।

विपदा नाश हेतु 

कभी कभी जीवन में एक के बाद एक विपदा आती रहती है.ऐसी समस्या के निवारण हेतु रविवार रात्रि १० के बाद कवच को लाल वस्त्र पर स्थापित करे.कवच का सामान्य  पूजन करे.और ११ माला रुद्राक्ष माला से " ॐ हूं ह्लीं हूं फट " मंत्र कि ११ माला संपन्न करे.जाप के बाद अग्नि प्रज्वलित कर,सरसो के तेल और काली मिर्च से २५१ आहुति प्रदान करे.

इन प्रयोगो में सभी जाप वाचिक या उपांशु होंगे।मित्रो भविष्य में भी कई प्रयोग समय समय पर दिए जायेंगे।साधनाओ से सम्बंधित किसी भी प्रश्न के उत्तर हेतु आप सादर आमंत्रित है.किसी भी अन्य जानकारी के लिए मेल करे  sadhika303@gmail.com  पर.

जय अम्बे 


Wednesday 22 January 2014

रक्त मातंगी प्रयोग


साधना मार्ग में प्रत्येक साधक के जीवन में कोई न कोई महाविद्या महत्व रखती ही है,वैसे तो शक्ति के किसी भी सवरूप में कोई भेद नहीं समझना चाहिए,क्युकी माँ का तो हर स्वरुप ही कल्याणकारी है.परन्तु हर साधक को कोई एक ऐसा महाविद्या तत्त्व होता है जो अपनी और अधिक आकर्षित करता है.किसी को तारा अपनी और आकर्षित करती है तो किसी को महाकाली आकर्षित करती है.दस महाविद्या में से भगवती मातंगी भी अपना एक प्रमुख स्थान रखती है.मातंगी साधना मूल रूप से साधक गृहस्थ सुख प्राप्ति हेतु तथा तथा गृहस्थी में आ रहे संकटो के निवारण हेतु करते है.परन्तु इनकी शक्ति यही समाप्त  नहीं हो जाती है,हर महाविद्या किसी भी कार्य को पूर्ण रूप से करने में सक्षम है,तथा बृह्मांड पर अपना पूर्णरूपेण अधिकार रखती है.माँ मातंगी के कई स्वरुप है हर महाविद्या कि तरह इनके भी भिन्न भिन्न स्वरूपों कि आराधना भिन्न भिन्न मार्गो से कि जाती है.जैसे अघोर मातंगी,अघोरेश्वरी मातंगी,रौद्र मातंगी,रक्त मातंगी,कौल मातंगी,त्रिशला मातंगी और भी अन्य स्वरुप है भगवती मातंगी के जिनकी आराधना तथा साधना साधक करते आये है.और भविष्य में भी ब्लॉग तथा पत्रिका के माध्यम से माँ के अन्य स्वरूपों पर प्रकाश डालने का प्रयत्न किया जायेगा।आज हम चर्चा करेंगे भगवती मातंगी के " रक्त मातंगी " स्वरुप कि.मित्रो माँ का ये स्वरुप साधक के जीवन से समस्त पापो का नाश कर उसका भाग्योदय करता है.साधक के समस्त शत्रु माँ कि कृपा से निस्तेज हो जाते है.साधक के स्थिर जीवन को माँ कि कृपा से एक गति प्राप्त होती है.साधक कि प्रत्येक कामना को माँ पूर्ण करती है.वैसे माँ के इस स्वरुप कि भी कई साधनाये है.परन्तु आज यहाँ एक लघु प्रयोग दिया जा रहा है,जो कि मात्र एक दिवस में ही पूर्ण हो जाता है,तथा साधक को माँ कि कृपा प्रात होती है.और इस साधना में आपको अधिक परिश्रम भी नहीं करना होता है.ये साधना आप मातंगी सिद्धि दिवस,कृष्णपक्ष कि अष्टमी,किसी भी नवमी,या शुक्रवार को कर सकते है.साधना का समय होगा रात्रि १० के बाद.साधक स्नान कर लाल वस्त्र धारण करे तथा लाल आसन पर उत्तर या पूर्व कि और मुख कर बैठ जाये।सामने भूमि पर एक बजोट स्थापित करे उस पर लाल वस्त्र बिछाकर एक कुमकुम मिश्रित अक्षत कि ढेरी बनाये और उस पर एक गोल सुपारी स्थापित कर दे सुपारी को भी कुमकुम से रंगकर ही स्थापित करे.इस साधना में लाल रंग का ही महत्व है अतः सभी वस्तु जहा तक सम्भव हो लाल ही ले.सर्व प्रथम सद्गुरुदेव का सामान्य पूजन करे,फिर गणपति पूजन करे.इसके बाद एक माला निम्न मंत्र कि करे मूंगा माला से.

ॐ हूं भ्रं हूं मतंग भैरवाय नमः 

इसके पश्चात् सुपारी का माता मातंगी मानकर पूजन करे.कुमकुम,हल्दी,सिंदूर,अक्षत,रक्तपुष्प आदि अर्पित कर माँ का सामान्य पूजन करे.सम्भव हो तो माँ को लाल रंग कि ही मिठाई प्रसाद रूप में अर्पित करे.तील के तेल का दीपक प्रज्वलित करे.इसके बाद " ॐ ह्रीं मातंगी ह्रीं फट " २१ बार पड़कर कुमकुम मिश्रित अक्षत भगवती को अर्पित करे,एक बार मंत्र पड़े और अक्षत अर्पित करे इस प्रकार २१ बार अक्षत अर्पित करे.इस क्रिया के संपन्न हो जाने  के बाद आप निम्न मंत्र कि कम से कम २१ माला मूंगा माला से जाप करे.इससे अधिक भी किया जा सकता है.

ॐ ह्रीं हूं ह्रीं रक्त मातंगी रक्तवर्णा रक्त मातंग्यै फट 

माला जाप के बाद घी में अनार के दाने,कुमकुम,तथा नागकेसर मिलाकर  कम से कम १०८ आहुति प्रदान करे.और माँ से ह्रदय से प्रार्थना कर आशीर्वाद मांगे।प्रसाद परिवार में सभी को दिया जा सकता है.अगले दिन लाल वस्त्र,अक्षत,सुपारी विसर्जित कर दे,माला अन्य साधनाओं  में काम  में ली जा सकती है.इस प्रकार भगवती रक्त मातंगी कि ये लघु साधना संपन्न होती है.पूर्ण समर्पण और विश्वास से कि गयी साधना कभी निष्फल नहीं जाती है.और एकाग्रता तो सर्वोपरि है ही.आप सभी भगवती कि साधना को कर अपने जीवन को सफल बनाये इसी कामना के साथ,

जय अम्बे 



अधिक जानकारी के लिए मेल करे 

pitambara366@gmail.com.

०००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००० 

Monday 20 January 2014

शिव शक्ति महाअघोरेश्वर कवच और कुछ आवश्यक नियम।

मित्रो कई साधको के मेल हमें " शिव शक्ति महाघोरेश्वर कवच "    के लिए प्राप्त हुए.अब जिन साधको के लिए ये कवच भेजे जा  रहे है.ये लेख उनके लिए है क्युकी यहाँ हम  आपको उस दिव्य कवच से जुड़े कुछ सामान्य नियम से अवगत करवा रहे है.जिसका पालन करने से आप कवच से जुडी शक्ति का पूर्ण लाभ उठा पाएंगे।प्रस्तुत है कवच से जुडी कुछ आवश्यक बाते।

१. कवच के साथ ही आपको अघोर मंत्रो से सिद्ध सिद्धिप्रद रुद्राक्ष भी भेजा जा रहा है.मित्रो एक बात यहाँ स्मरण रखे कि आपको कवच और सिद्धिप्रद रुद्राक्ष को सदा एक साथ ही रखना होगा।आप ऐसा बिल्कुल  भी न करे कि रुद्राक्ष अलग रख दिया और कवच अलग रख दिया।दोनों को सदा एक ही डिब्बी में साथ रखे.इससे दोनों कि शक्ति एक दूसरे से जुडी रहती है.केवल साधना के समय ही साधना में यदि इसका प्रयोग अलग लिखा हो तो अलग कर सकते है.किन्तु जब भी प्रयोग न कर रहे हो तो इसे साथ ही रखे.

२. अपने कवच और रुद्राक्ष को कभी भी किसी अन्य व्यक्तिको साधना के लिए ना दे,क्युकी इस कवच और रुद्राक्ष का प्रयोग केवल एक ही साधक कर सकता है.किसी और के प्रयोग करने से इसकी सिद्धि समाप्त होने का भय रहता है.

३.यदि आप कवच  को नित्य पूजा के समय थोड़ी देर धारण करते है तो ये कवच आपकी देहिक ऊर्जा में विकास करता है.अतः इसे नित्य पूजन के समय भी धारण किया जा सकता है.

४. यदि कोई अन्य व्यक्ति आपके कवच या रुद्राक्ष को स्पर्श कर ले,तो चिंता न करे.ये कवच और रुद्राक्ष स्पर्श दोष से मुक्त है.यदि कोई रजस्वला स्त्री इसका स्पर्श कर ले,तो किसी भी समय इन दोनों पर अपने हाथो से जल छीट दे.हाथ में जल ले और " ॐ अघोरे ॐ " इस मंत्र को २१ बार पड़कर कवच और रुद्राक्ष पर छीट दे.इस क्रिया के माध्यम से ये कवच और रुद्राक्ष ब्रह्माण्ड में विलीन हुई अपनी शक्ति को पुनः संचित कर लेता है.

५. कभी भी कवच को खोले नहीं ऐसा करके आप इस कवच कि सिद्धि समाप्त कर देंगे।हा यदि त्रुटिवश कवच खुल जाता है तो उसे पुनः बंद करके,ऊपर जो क्रिया बतायी गयी है उसे करके जल छीट दे और किसी भी शिवलिंग से स्पर्श करा ले.परन्तु ये क्रिया तभी कार्य करेगी जब कवच त्रुटिवश खुल जाये।अतः जानबूझकर ऐसा न करे.

६. किसी अन्य व्यक्ति कि समस्या निवारण के लिए इस कवच पर साधना कि जा सकती है परन्तु वो आपको ही करनी होगी क्युकी इसका प्रयोग केवल आप ही कर सकते है.हा दुसरो के लिए संकल्प लेकर इस पर साधना कि जा सकेगी।

७. यदि आप कभी श्मशान जाते है तो इस दिव्य कवच और रुद्राक्ष को पहन कर जा सकते है.इससे कवच और रुद्राक्ष कि शक्ति में कोई अंतर नहीं आने वाला है.बल्कि शमशान भूमि से ये कवच और रुद्राक्ष शक्ति को अपने भीतर खीचने कि क्रिया करते है.अतः इनकी शक्ति और बढ़ जाती है.

तो साधको ये इस कवच से जुड़े कुछ आवश्यक नियम है.जो कि अत्यंत सरल है और मुझे आशा है कि आपको इनका पालन करने में कोई कठिनाई नहीं होगी।बस आप साधना मार्ग पर सदा प्रगति करते रहे इसी कामना के साथ.

जय माँ 

अधिक जानकारी के लिए मेल करे 

sadhika303@gmail.com

Wednesday 15 January 2014

शिव शक्ति महा अघोरेश्वर कवच


है शिव जब तुम समस्त जगत से विरक्त हो श्मशान में निवास करते हो तो तुम अघोरी हो जाते हो,जिसे ना मान कि कोई चाह है, ना अपमान का कोई भय है.जिसे कुछ नहीं चाहिए,जो सबको दे सकता है और मात्र दे सकता है,जो समस्त भय से मुक्त है,जो सब कुछ कर देने में समर्थ है,जो समस्त सृष्टि पर शासन करते है,वही है अघोरेश्वर शिव.

वास्तव में शासन  वही कर सकता है,जो पूर्ण है,जो समर्थ है,जो दाता है,जो शक्ति संपन्न है वही है अघोरेश्वर,और इन्ही सृष्टि पर शासन करने  वाले अघोर शिव पर शासन करती है महा अघोरा भद्रकाली ,जो अघोर से भी ऊपर है.जिसे तंत्र ने अघोरेश्वर कि भी जननी माना है.अघोर शिव और महा अघोरा काली ही है,जो समस्त श्मशान पर राज करते है.भूत,प्रेत,यक्ष,गन्धर्व,किन्नर,यक्षिणी,आदि जिनकी निरंतर सेवा करते रहते है,और जो सब कुछ कर देने में समर्थ है,वही है अघोरश्वर और अघोरेश्वरी।

मित्रो संसार कि ऐसी कोई वस्तु नहीं है जो अघोरेश्वर शिव और अघोरेश्वरी काली देने में समर्थ ना हो.क्युकी संसार कि समस्त सत्ता इनके ही हाथो में है.जब ये प्रसन्न होते है तो सृजन होता है,और जब रुष्ट हो तांडव करते है तो महा प्रलय का आरम्भ होता है.प्रसन्न  होने पर कुबेर को धनाध्यक्ष बना दिया और रुष्ट होने पर दक्ष के मस्तक को धड़ से अलग कर तांडव किया।जब अघोरा महाकाली प्रसन्न हुई तो भक्तो को अभय दान दिया और जब कुपित हुई तो धूमावती का प्राकट्य हुआ.अघोर और अघोरा जो भी करते  है,उसके पीछे अत्यंत गहरे रहस्य छुपे हुए होते है.कोई नहीं जान सकता कि वे ऐसा क्यों करते है,कोई नहीं जान सकता कि उनके हर निर्णय के पीछे क्या उद्देश्य हो सकता है.

साधको सदा से ही शिव का अघोरेश्वर स्वरुप और काली का अघोरा स्वरुप साधको के मध्य चर्चा का विषय रहा है.और समय समय पर साधक इनकी साधनाये करते ही आये है.किन्तु कुछ साधनाये जो साधक नहीं कर पाते है,उसका मुख्य कारण है कि अघोर साधनाये अधिकतर या तो श्मशान में होती है या एकांत स्थान पर होती है.और वर्त्तमान में ऐसे स्थान का मिल पाना असम्भव सा प्रतीत  होने लगता है कई साधको को.तथा कुछ साधनाये यदि घर में कि भी जा सकती हो तो उसके लायक सामग्री नहीं मिल पाती  है,क्युकी अघोर मार्ग में सामग्री भी अन्य सामग्री से पृथक होती है.इस कारण साधक चाहकर भी अघोर मार्ग कि साधनाये नहीं कर पाते है.

ऐसी कई साधनाये है जो साधक इन्ही दुविधा के चलते नहीं कर पाये है,जैसे अघोर लक्ष्मी साधना, अघोर कुबेर साधना, कनकावती स्वर्ण दात्री साधना,आकस्मिक धन प्राप्ति साधना,अघोर पारदेश्वर पूजन,अघोरा शत्रु मर्दिनी साधना,भैरूण्डा प्रयोग आदि ऐसी कई साधनाये है जो साधक नहीं कर पाये है,वास्तव में ये साधनाये अघोर मार्ग कि अत्यंत महत्वपूर्ण साधनाओ में से मानी  जाती है.उदाहरणार्थ  जब साधक कनकावती स्वर्ण दात्री साधना करता है तो जीवन में बिना किस अड़चन के धन का आगमन आरम्भ हो जाता है.इसी शक्ति कि सहायता से साधक शेयर मार्किट आदि में सफलता प्राप्त कर पाता है.तो दूसरी और विजय साधना से हर क्षेत्र में विजय प्राप्त करता है,चाहे वो कोई भी क्षेत्र हो.अघोर कुबेर साधना से साधक साक्षात् कुबेर के सामान हो जाता है,यही कारण है कि अघोरेश्वर किसी के आगे हाथ नहीं फैलाते  क्युकी वो दाता है.
किन्तु जब साधक ऐसी उच्च कोटि कि साधनाये नहीं कर पाता  है तो उसे अत्यंत पीड़ा का अनुभव होता है.क्युकी एक साधक जीवन में पूर्णता चाहता है.हर क्षेत्र में चाहे वो साधना का क्षेत्र ही क्यों ना हो.किन्तु चिंता करने कि कोई आवश्यकता नहीं है,क्युकी मैंने बार बार कहा है कि,

साधना क्षेत्र में हर सवाल का जवाब है,हर समस्या का हल है,

तो क्या इस समस्या का हल भी है साधना मार्ग में कि वो उपरोक्त सभी साधनाओ को बिना शमशान जाये कर सके ? बिना किसी विघ्न के इन साधनाओ को पूर्ण कर सके ?

जी हाँ ,

इसका भी हल है मित्रो,परन्तु कभी भी इस विषय पर किसी साधक ने प्रकाश डालना आवश्यक ही नहीं समझा,या यु कहे कि उच्च कोटि के साधक सदा से समाज  से दूर ही रहे इस कारण ये विषय अनछुआ रहा,या गुरु और ज्ञानियों ने ये अद्भूत ज्ञान दिया भी तो केवल कुछ चयनित शिष्यों को,कदाचित इसका मुख्य कारण केवल इस विषय कि गोपनीयता को बनाकर रखना ही रहा होगा,क्युकी कलयुग में स्वार्थी तत्वो कि संख्या दिन प्रति दिन बढ़ती जा रही है.और वे जनकल्याण कि भावना से कोसो दूर होते जा रहे है.खैर इसमें कोई बड़ी बात नहीं है क्युकी जबसे संसार बना है तबसे ही मनुष्य अच्छे और बुरे दो भागो में बटा हुआ है.और इस समस्या का हल तो सृष्टि के अंत तक नहीं होगा।

कदाचित ये माया भी अघोरेश्वर और अघोरा कि ही होगी,

साधको एवं साधिकाओं, शीघ्र ही गुरु गम्य परिवार, " शिव शक्ति महा अघोरेश्वर कवच " का निर्माण करने जा रहा है.निसंदेह ये कार्य इतना सरल नहीं है,परन्तु कुछ सिमित संख्या में इनका निर्माण अघोर पदत्ति द्वारा  कुछ साधको के आग्रह पर किया जा रहा है.ताकि वे उच्च कोटि कि साधनाओ को भी घर पर संपन्न कर सके,और जटिल प्रक्रिया के स्थान पर सरलता से साधना कर सके.उपरोक्त सभी साधनाये साधक इस कवच पर ही कर पाएंगे।इसके लिए उन्हें किसी अन्य विशेष सामग्री कि आवश्यकता नहीं पड़ेगी।हा हर साधना के पहले कवच पर उस साधना से सम्बंधित क्रिया आपको अवश्य करनी होगी जिससे कि आप कवच कि ऊर्जा से तुरंत संपर्क में आ जायेंगे और साधना को पूर्णता के साथ कर पाएंगे।

साधको " शिव शक्ति महा अघोरेश्वर कवच " का वास्तविक नाम तो महा अघोरेश्वर कवच है,परन्तु में इसे शिव शक्ति महा अघोरेश्वर कवच बोलता हु,इसका मुख्य कारण केवल इतना है कि,इस कवच के निर्माण में केवल शिव ही नहीं शक्ति का भी स्थापन किया जाता है.क्युकी बिना शक्ति के शिव तो शव समान ही है.अतः कवच को अघोर मार्ग कि शिव शक्ति पदत्ति से निर्मित किया जाता है.ताकि इस कवच पर आप देवता ही नहीं बल्कि देवी शक्ति कि भी साधना कर पाये,तभी तो पूर्णता आएगी न साधक के जीवन में ,जब वो शिव और शक्ति दोनों को अपने ह्रदय में समाहित कर लेगा तब वो पूर्णता का अनुभव करेगा।अब प्रश्न उठता है कि इस कवच पर कौन कौन सी साधनाये कि जा सकती है ?

तो मित्रो इस कवच पर जो साधनाये कि जा सकेंगी उसकी एक लघु सूचि यहाँ देने  का प्रयत्न कर रहा हु.

१ षट्कर्म साधना 

२ तारिणी अस्त्र प्रयोग ( दरिद्रता नाश हेतु )

३ महालक्ष्मी धन पात्र साधना ( लक्ष्मी को स्थिर करने का अघोर विधान )

४ नवग्रह चक्र साधना ( गृह शांति का अघोर विधान )

५ तत्त्व चेतना साधना (पञ्च तत्वो को नियंत्रण में लाने कि साधना )

६ अघोर मातंगी पूजन (गृहस्थ सुख प्राप्ति हेतु )

७ रूद्र तारा साधना ( अचूक स्मरण शक्ति हेतु )

८ त्वरिता सिद्धि साधना ( कार्यो में आने वाली अड़चनो से मुक्ति हेतु )

९ कृतिका साधना ( मनोकामना पूर्ति का अघोर विधान )

१० चंडिका प्रयोग ( प्रचंड ऊर्जा प्राप्ति हेतु )

११ भवानी  चेटक साधना ( हर विपदा को भस्म कर देने कि साधना )

१२  महालक्ष्मी स्थापिनी  साधना ( इडा पिंगला सुषुम्ना में महालक्ष्मी को स्थापित करने का प्रयोग )

१३ विद्युत मालिनी साधना ( तीव्र इच्छा शक्ति हेतु )

१४ षोडशी विद्या प्रयोग ( अटूट धन सम्पदा हेतु )

१५ अघोर रौद्रवल्गा साधना ( राजनीती तथा प्रतियोगी परीक्षा में सफलता हेतु बगलामुखी साधना विधान )

मित्रो ये केवल कुछ साधनाये ही यहाँ प्रस्तुत कि गयी है जो आप " शिव शक्ति महा अघोर कवच " पर संपन्न कर पाएंगे। और ऊपर वर्णित कि गयी,अघोर लक्ष्मी साधना,अघोर कुबेर साधना,आकस्मिक धन प्राप्ति साधना,अघोर पारदेश्वर पूजन,कनकावती स्वर्ण दात्री प्रयोग,
तो है ही जो कवच के माध्यम से किये जा सकेंगे।इसके अतिरक्त १०० से भी अधिक साधनाये है जो इस कवच पर कि जा सकेगी।तो साधको शीघ्र ही इस दिव्य कवच का निर्माण गुरु गम्य परिवार करने जा रहा है.किन्तु ये सिमित संख्या में ही होगा अधिक संख्या में इसका निर्माण सम्भव नहीं हो पायेगा,और न ही इस पर कोई हज़ारो रूपये का शुल्क रखा गया है.केवल उतना ही शुल्क इस पर  रखा गया है जितने में ये निर्मित होगा और आपके घर तक पहुच जायेगा।एक बात और यदि आपको ये कवच प्राप्त होता है तो इसे प्राणो से अधिक संभाल  कर रखे क्युकी,हम भविष्य में इसका निर्माण कर पाएंगे या नहीं ये तो हम भी नहीं जानते है.और अभी भी इस कवच कि निर्माण संख्या मात्र २१ ही होगी अगर अधिक हो भी पाया तो संख्या ३० कवच तक जा सकती है इससे अधिक नहीं।साथ ही सभी को कवच प्राप्त करवा पाना हमारे लिए सम्भव नहीं होगा,इस विषय में कोई शिकायत स्वीकार नहीं कि जायेगी।अब जो इन्हे प्राप्त करना चाहते है.वे  sadhika303@gmail.com पर मेल कर दे मेल के विषय में " शिव शक्ति महा अघोर कवच " लिखना न भूले।मेल  से ही आपको सम्पूर्ण जानकारी भेज दी जायेगी।और कवच से सम्बंधित साधनाये ब्लॉग तथा मासिक पत्रिका के माध्यम से ही दी जायेगी।अब निर्णय आपका है.आप सदा प्रसन्न रहे,स्वस्थ्य रहे इसी कामना के साथ.

शरणम् अम्बिके 

Thursday 9 January 2014

सिद्ध योगिनी साधना

तंत्र में सदा से योगिनीयो का अत्यंत महत्व रहा है.तंत्र अनुसार योगिनी आद्य शक्ति के सबसे निकट होती है.माँ योगिनियो को आदेश देती है और यही योगिनी शक्ति साधको के कार्य सिद्ध करती है.मात्र लोक में यही योगिनिया है जो माँ कि नित्य सेवा करती है.

योगिनी साधना से कई प्रकार कि सिद्धियाँ साधक को प्राप्त होती है.प्राचीन काल में जब तंत्र अपने चरम पर था तब योगिनी साधना अधिक कि जाती थी.परन्तु धीरे धीरे इनके साधको कि कमी होती गयी और आज ये साधनाये बहुत कम हो गयी है.इसका मुख्य कारण है समाज में योगिनी साधना के प्रति अरुचि होना,तंत्र के नाम से ही भयभीत होना,तथा इसके जानकारो का अंतर्मुखी होना।इन्ही कारणो से योगिनी साधना लुप्त सी होती गयी.परन्तु आज भी इनकी साधनाओ के जानकारो कि कमी नहीं है.आवश्यकता है कि हम उन्हें खोजे और इस अद्भूत ज्ञान कि रक्षा करे.मित्रो आज हम जिस योगिनी कि चर्चा कर रहे है वो है " सिद्ध योगिनी " कई स्थानो पर इन्हे सिद्धा योगिनी या सिद्धिदात्री योगिनी भी कहा गया है.ये सिद्दी देने वाली योगिनी है.

जिन साधको कि साधनाये सफल न होती हो,या पूर्ण सफलता न मिल रही हो.तो साधक को सिद्ध योगिनी कि साधना करनी चाहिए।इसके अलावा सिद्ध योगी कि साधना से साधक में सतत प्राण ऊर्जा बढ़ती जाती है.और साधना में सफलता के लिए प्राण ऊर्जा का अधिक महत्व होता है.विशेषकर माँ शक्ति कि उपासना करने वाले साधको को तो सिद्ध योगिनी कि साधना करनी ही चाहिए,क्युकी योगिनी साधना के बाद भगवती कि कोई भी साधना कि जाये उसमे सफलता के अवसर बड़ जाते है.साथ ही इन योगिनी कि कृपा से साधक का गृहस्थ जीवन सुखमय हो जाता है.जिन साधको के जीवन में अकारण निरंतर कष्ट आते रहते हो वे स्वतः इस साधना के करने से पलायन कर जाते है.आइये  जानते है इस साधना कि विधि।

आप ये साधना किसी भी कृष्ण पक्ष कि अष्टमी से आरम्भ कर सकते है.इसके अलावा किसी भी नवमी या शुक्रवार कि रात्रि भी उत्तम है इस साधना के लिए.साधना का समय होगा रात्रि ११ के बाद का.आपके आसन तथा वस्त्र लाल होना आवश्यक है.इस साधना में सभी वस्तु लाल होना आवश्यक है.अब आप उत्तर कि और मुख कर बैठ जाये और भूमि पर ही एक लाल वस्त्र बिछा दे.वस्त्र पर कुमकुम से रंजीत अक्षत से एक मैथुन चक्र का निर्माण करे.इस चक्र के मध्य सिंदूर से रंजीत कर " दिव्याकर्षण गोलक " स्थापित करे  जिनके पास ये उपलब्ध न हो वे सुपारी का प्रयोग करे.इसके बाद सर्व प्रथम गणपति तथा अपने सद्गुरुदेव का पूजन करे.इसके बाद गोलक या सुपारी को योगिनी स्वरुप मानकर उसका पूजन करे,कुमकुम,हल्दी,कुमकुम मिश्रित अक्षत अर्पित करे,लाल पुष्प अर्पित करे.भोग में गुड का भोग अर्पित करे,साथ ही एक पात्र में अनार का रस अर्पित करे.तील के तेल का दीपक प्रज्वलित करे.इसके बाद एक माला नवार्ण मंत्र कि करे.जाप में मूंगा माला का ही प्रयोग करना है या रुद्राक्ष माला ले.नवार्ण मंत्र कि एक माला सम्पन करने के बाद,एक माला निम्न मंत्र कि करे,

ॐ रं रुद्राय सिद्धेश्वराय नमः 

इसके बाद कुमकुम मिश्रित अक्षत लेकर निम्न लिखित मंत्र को एक एक करके पड़ते जाये और थोड़े थोड़े अक्षत गोलक पर अर्पित करते जाये।

ॐ ह्रीं सिद्धेश्वरी नमः 

ॐ ऐं ज्ञानेश्वरी नमः 

ॐ क्रीं योनि रूपाययै नमः 

ॐ ह्रीं क्रीं भ्रं भैरव रूपिणी नमः 

ॐ सिद्ध योगिनी शक्ति रूपाययै नमः 

इस क्रिया के पूर्ण हो जाने  के बाद आप निम्न मंत्र कि २१ माला जाप करे.

ॐ ह्रीं क्रीं सिद्धाययै सकल सिद्धि दात्री ह्रीं क्रीं नमः 

जब आपका २१ माला जाप पूर्ण हो जाये तब घी में अनार के दाने मिलाकर  १०८ आहुति अग्नि में प्रदान करे.ये सम्पूर्ण क्रिया आपको नित्य करनी होगी नो दिनों तक.आहुति के समय मंत्र के अंत में स्वाहा  अवश्य लगाये।अंतिम दिवस आहुति पूर्ण होने के बाद एक पूरा अनार जमीन पर जोर से  पटक कर फोड़ दे और उसका रस अग्नि कुंड में निचोड़ कर अनार उसी कुंड में डाल दे.अनार फोड़ने से निचोड़ने तक सतत जोर जोर से बोलते रहे,

सिद्ध योगिनी प्रसन्न हो। 

साधना समाप्ति के बाद अगले दिन गोलक को धोकर साफ कपडे से पोछ ले और सुरक्षित रख ले.कपडे का विसर्जन कर दे.नित्य अर्पित किया गया अनार का रस और गुड साधक स्वयं ग्रहण करे.सम्भव हो तो एक कन्या को भोजन करवाकर दक्षिणा दे,ये सम्भव न हो तो देवी मंदिर में दक्षिणा के साथ मिठाई का दान कर दे.इस प्रकार ये दिव्य साधना पूर्ण होती है.निश्चय ही अगर साधना पूर्ण मनोभाव और समर्पण के साथ कि जाये तो साधक के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आने लगते है.और जीवन को एक नविन दिशा मिलती ही है.तो अब देर कैसी आज ही संकल्प ले और साधना के लिए आगे बड़े.

जय माँ 

अन्य जानकारी के लिए मेल करे 

pitambara366@gmail.com



Monday 6 January 2014

मासिक पत्रिका

साधना क्षेत्र के सभी भाई एवं बहनो,आपको जानकर अत्यंत प्रसन्नता होगी कि,हमारे ब्लॉग को ५०,००० से भी अधिक बार पड़ा जा चूका है.इस स्वर्ण अवसर पर शक्ति  परिवार आपके लिए एक विशेष उपहार लेकर आया है.वो उपहार ये है कि अब हर माह साधक एवं साधिकाओं के लिए मासिक पत्रिका का शुभारम्भ किया जा रहा है. क्युकी मूल रूप से हम सभी माँ शक्ति के उपासक है इसलिए पत्रिका का नाम रखा गया है. " शरणम् अम्बिके " जिसका प्रथम अंक फरवरी में आप  सभी के समक्ष होगा।ये ई पत्रिका है,जो कि आपकी मेल आईडी पर हर माह १० तारीख तक भेजने का पूर्ण प्रयत्न किया जायेगा।

पत्रिका के माध्यम से आप  सभी के मध्य दुर्लभ साधनाए रखी जाएँगी तथा उनसे जुड़े गोपनीय विषयो पर भी चर्च कि जायेगी।क्युकी हो सकता है शीघ्र ही ब्लॉग बंद किया जाए,परन्तु ये भी निश्चित नहीं है.फिर भी अगर ऐसा होता है तो आप सभी पत्रिका के माध्यम से हम  सभी से संपर्क में रहेंगे।

इतना ही नहीं शीघ्र ही विडियो के माध्यम से सभी का मार्ग दर्शन करने कि भी तैयारी आरम्भ कर दी गयी है.ताकि मुद्रा आदि का ज्ञान पूर्ण रूप से दिया जा सके.तो ये दो उपहार विडियो के माध्यम से मार्गदर्शन और ई पत्रिका, शीघ्र ही आने वाली है.

पत्रिका का प्रथम अंक  होगा शक्ति साधना विशेषांक,जिसमे दुर्लभ शक्ति साधनाए आपके समक्ष रखी जायेगी।

अब आपका सवाल होगा कि इस पत्रिका का क्या शुल्क होगा ?

तो मित्रो ये ई पत्रिका पूर्णतः निशुल्क है :-)

किन्तु फिर भी आपको एक कार्य करना होगा आपको एक मेल करना होगा,

sadhika303@gmail.com  पर,

जिससे कि आपका मेल आयी डी,रजिस्टर्ड हो जायेगा और आपको प्रति माह आपके मेल पर पत्रिका भेज दी जाएगी। तो मित्रो देर कैसी ? 

शीघ्र ही अपना मेल रजिस्टर्ड करे.और इस  स्वर्ण अवसर  का लाभ उठाए।क्युकी ३० जनवरी के बाद कोई भी मेल स्वीकार नहीं किये जायेंगे। अब इस अवसर का लाभ आप लेना चाहते है या नहीं ये आप पर छोड़ा जा रहा है.

प्रणाम 

Thursday 2 January 2014

सूर्य सायुज्य कुबेर प्रयोग ( मकर सक्रांति पर )

मकर सक्रांति का समय निकट ही है.ये एक ऐसा दिव्य दिवस होगा जब भगवान सूर्य देव अपने पूर्ण तेज पर होंगे।इसी पवित्र दिवस पर साधना जगत में कई कई साधनाए साधक संपन्न कर जीवन को नयी गति प्रदान करते है.साधको में प्रति वर्ष ये दिव्य साधना करती ही हु.और विगत पाँच वर्षो से मेरी ये साधना कभी नहीं रुकी प्रति वर्ष इस साधना को संपन्न करना में अपना परम कर्त्तव्य समझती हु.

उसका विशेष कारण  ये है कि इस दिव्य साधना से हमें भगवान  आदित्य और भगवान कुबेर का आशीर्वाद सहज ही प्राप्त हो जाता है.भगवान सूर्य के तेज से साधक के सभी पापो तथा रोगो का नाश होता है.जीवन में एक तेजस्विता आती है.गृहस्थ जीवन में सुख शांति का वातावरण निर्मित हो  जाता है. तथा कुबेर देव के आशीर्वाद से धन का व्यर्थ का व्यय समाप्त हो धन स्थिर होने लगता है.धन के आगमन में आ रही सभी बाधाओं का निवारण हो जाता है.साधना के बाद मन में प्रसन्नता स्थापित हो जाती है.

हर साधना धैर्य और विश्वास से किए जाने  पर ही परिणाम देती है.अतः साधना में अति शीघ्रता अच्छी बात नहीं है.ऐसा करके केवल हम अपना समय व्यर्थ ही करते है कोई लाभ नहीं उठा पाते है.अतः इस उच्च कोटि के प्रयोग को आप पूर्ण धैर्य और विश्वास के साथ करे आपको अवश्य लाभ होगा।

ये साधना आप मकर सक्रांति के दिन करे,ये एक दिवसीय प्रयोग है.यदि आप इस दिन न  कर पाए तो आप मुझसे मत पुछना  कि और कब किया जा सकता है क्युकी इसका पूर्ण प्रभाव तो मकर सक्रांति के दिन ही होता है.फिर भी आप न कर पाए  तो किसी भी रविवार को करे.साधक सूर्योदय के समय स्नान कर पीले वस्त्र धारण करे तथा सूर्य दर्शन कर ताम्र पात्र से गुलाब जल मिले हुए जल से  सूर्य को अर्घ्य प्रदान करे.इसके बाद साधक अपने पूजन कक्ष में आकर पूर्व मुख होकर बैठ जाए  सामने बाजोट पर पिला वस्त्र बिछाकर उस पर गेहू कि एक ढेरी बनाये और उस पर केसर से रंजीत एक सुपारी स्थापित करे.और कक्ष में ही उत्तर कि और एक बाजोट पर पिला वस्त्र बिछा कर हल्दी मिश्रित अक्षत कि ढेरी पर एक हल्दी से रंजीत सुपारी स्थापित करे.

पूर्व में रखी गयी सुपारी सूर्य का प्रतिक है,तथा उत्तर में रखी गयी सुपारी कुबेर का प्रतिक है.सर्व प्रथम सद्गुरुदेव तथा गणपति का सामान्य पूजन करे.इसके बाद सूर्य पूजन करे पूजन सामान्य करना है.खीर का प्रसाद अर्पित करना है जिसमे केसर मिश्रित हो.शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित करे.इसी प्रकार उत्तर में स्थापित कुबेर का भी पूजन करे ,तथा संकल्प ले कि में ये सूर्य सायुज्य कुबेर प्रयोग अपने जीवन से समस्त दरिद्रता के नाश हेतु,पाप नाश हेतु,साधना में सफलता हेतु कर रहा हु भगवान सूर्य देव तथा कुबेर देव मेरी साधना को स्वीकार कर मेरी मनोकामना पूर्ण करे.इसके बाद स्फटिक माला से दिए गए क्रम अनुसार जाप करे.

सर्व प्रथम एक माला महामृत्युंजय मंत्र कि करे इसके बाद 

३ माला  ॐ सूं सूर्याय नमः कि करे और प्रत्येक माला के बाद थोड़े अक्षत सूर्य देव को अर्पित करे.

इसके बाद ३ माला ॐ यक्ष राजाय नमः कि करे.प्रत्येक माला के बाद थोड़े अक्षत कुबेर पर अर्पित करे.

अब १  माला  ॐ सूर्याय तेजोरूपाय आदित्याय नमो नमः   माला के  बाद सूर्य को अक्षत अर्पित करे.

अब ३ माला  ॐ धं कुबेराय धं  ॐ कि करे प्रत्येक  माला के बाद अक्षत कुबेर को अर्पित करे.

इस क्रिया के संपन्न होने के बाद अब साधक निम्न मंत्र कि ११  माला संपन्न करे.

ॐ धं कुबेराय आदित्य स्वरूपाय धं नमः 

इसके बाद पुनः एक माला महामृत्युंजय मंत्र कि संपन्न करे.अब अग्नि प्रज्वलित कर जिस मंत्र कि ११ माला कि थी उसकी कम से कम १०८ आहुति दही तथा घी मिश्रित कर प्रदान करे.आप चाहे तो अधिक आहुति भी दी जा सकती है.इस  प्रकार ये दिव्य साधना पूर्ण होती है.जो कि आपके जीवन में तेजस्विता लाती है.सुख और समृद्धि लाती है.शाम को गेहू अक्षत बाजोट पर बिछे वस्त्र किसी भी मंदिर में रख दे.साधना के तुरंत बाद प्रसाद स्वयं ग्रहण करे तथा परिवार के सभी सदस्यों को भी दे.

अब विचार आपको करना है कि आप इस विशेष दिवस पर ये दिव्य साधना संपन्न करते है या नहीं।आप सभी कि साधना सफल हो.

जय सद्गुरुदेव 


sadhika Akanksha