Saturday 27 April 2013



भ्रामरी साधना 






माँ दुर्गा का ही एक स्वरुप है भ्रामरी देवी।माँ की देह से असंख्य भ्रमर उत्त्पन्न हुए जिससे दैत्य का वध हुआ।इसलिये माँ का नाम हुआ भ्रामरी देवी।वास्तव में माँ ने दैत्य का नहीं बल्कि उस नकारात्मक विचार का वध किया जो सृष्टि को कष्ट दे रहा था।नकारात्मक विचार हमारे अन्दर भी है,जो की हमें दैत्यों की श्रेणी में ले जाकर खड़ा कर देते है।नकारत्मक विचारो के कारन ही हम कई कई बार साधना करने पर भी सफल नहीं हो पाते है।क्युकी हमारे अन्दर इतनी नकारत्मक उर्जा होती है,साधना के प्रति,विधि के प्रति,सफलता के प्रति,की हम चाहकर भी सकारात्मक मन का निर्माण नहीं कर पाते है।और खासकर देव वर्ग की साधनाओ में तो साधक को पूर्ण सकारात्मक होना आवश्यक है।प्रस्तुत साधना इसी विषय पर है।माँ भ्रामरी साधक की नकारात्मक उर्जा पर अपने असंख्य भ्रमरों से प्रहार करती है।या यु कहे की वो भ्रमर नहीं बल्कि माँ ही है जो भ्रमर रूप में साधक की नकारात्मक उर्जा पर प्रहार करती है।और उसका नाश करती है।तब साधक देव वर्ग की साधनों में सफलता प्राप्त करता ही है।

विधि: साधना किसी भी कृष्णा पक्ष की अष्टमी से आरम्भ की जा सकती है।ये संभव न हो तो कोई भी रविवार से करे।पर अष्टमी उत्तम है।आपका मुख दक्षिण की और हो।सामने बजोट पर लाल वस्त्र बिछा कर माँ का कोई भी चित्र स्थापित करे।अब सद्गुरु पूजन संपन्न कर कम से कम एक माला गुरु मंत्र करे।फिर गणेश पूजन तथा भैरव पूजन करे।अब माँ का पूजन सामान्य विधि से करे।लाल पुष्प अर्पण करे।क्युकी ये माँ भ्रामरी की साधना है अतः गुलाब के फूलो का रस माँ को भोग में अर्पण करे।क्युकी भ्रमर फूलो का रस ही पीते है,इस साधना में माँ भी उसी रस का पान करती है।साधना के बाद रोज़ ये रस किसी वृक्ष की जड़ में डाल दिया करे।दीपक कोई भी तेल का लगाये।जो की एक घंटे तक जलता रहे।अब माँ से प्रार्थना करे की माँ अप मेरी सभी नकारात्मक उर्जा को समाप्त कर दीजिये जो मुझे साधना में बाधा देती है। अब दीपक की लो पर त्राटक करते हुए निम्न मंत्र का जाप करे।इसमें माला की कोई जरूरत नहीं है।बस एक घंटे नित्य जाप होगा और क्रम 7 दिन तक चलता रहे।आँखों में दर्द होने पर उन्हें बंद भी किया जा सकता है परन्तु जितना हो सके दीपक की और देखते रहे।इस साधना में साधक को कई भ्रमरों की आवाज़ सुनायी दे सकती है।ये माँ ही है अतः डरे नहीं।घबराहट होना,सर दर्द होना ,क्रोध आना स्वाभाविक है,क्युकी आपकी नकारात्मक उर्जा आपसे बहुत प्रेम करती है तो आसानी से छोड़ती नहीं है।माँ के प्रहार जब उस उर्जा पर पड़ते है तो साधक को ये तकलीफ होती ही है।अतः धैर्य धारण करे।और सफलता प्राप्त करे।

मंत्र : ॐ ह्रीं भ्रामरी महादेवी सकल नकारात्मकता नाशय नाशय छिंदी छिंदी कुरु कुरु फट स्वाहा

1 comment:

  1. Parnam yeh sadhana subah ki ja sakti he ya fir raat ko hi

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