Sunday 30 March 2014

मंगल तारिणी साधना  


ॐ तारे तू तारे तुरे स्वाहा 

जगदम्बा समस्त सृष्टि को तारने वाली है.यही वो आदि शक्ति है जो शिव को भी तृप्त करती है.तो अन्य मनुष्यों कि बात ही क्या कि जाये। जब भक्त दुखो के सागर में फस जाता है,तब यही तारिणी शक्ति भक्त को मार्ग दिखाती है.परन्तु इसके लिए माँ के श्री चरणो में अनंत श्रद्धा परम आवश्यक है.बिना श्रद्धा और समर्पण के तो आप सांसारिक सम्बन्धो को पूर्णता से नहीं निभा सकते है,तो ये तो फिर भगवती से जन्म जन्मान्तर का सम्बन्ध है.इसमें तो श्रद्धा परम आवश्यक है.और इसके साथ ही उतना समर्पण भी आवश्यक है.तंत्र मार्ग में माँ तारा का क्या स्थान है ये तो किसी से छुपा नहीं है.और इसकी व्याख्या करना मूर्खता ही होगी।आज हम जिस साधना पर चर्चा कर रहे है,वो है " मंगल तारिणी साधना "  

प्रस्तुत साधना कौल मार्ग कि शाबर साधना है और यह हिमाचल के साधको के मध्य प्रचलित रही है.इस साधना का विशेष समय नवरात्री ही है.इसके अतिरिक्त यदि आप ये साधना करते है तो आपको २१ दिन करनी होती है.परन्तु नवरात्री के समय ये केवल ९ दिवस में ही पूर्ण हो जाती है.जिसके जीवन में सतत अमंगल हो रहा हो,कोई शुभ कार्य हो ही नहीं रहा हो.तो उन्हें ये साधना अवश्य करना चाहिए।आर्थिक कष्टो से मुक्ति हेतु भी ये साधना रामबाण कि तरह है.जिन साधको को रोग आदि घेरे रहते हो वे भी ये साधना करके पूर्ण लाभ प्राप्त कर सकते है.अगर संक्षेप में कहु तो ये साधना साधक कि समस्त बाधाओं को समाप्त करने में सहायक है.नवरात्री कि प्रथम रात्रि से आप ये साधना आरम्भ करे,समय होगा रात्रि १० के बाद का.स्नान कर लाल वस्त्र धारण करे तथा उत्तर कि और मुख कर लाल आसन  पर बैठ जाये।सामने भूमि पर बाजोट रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछा दे.इस पर माँ तारा का कोई भी चित्र स्थापित करे.अगर चित्र न हो तो कुमकुम रंजीत अक्षत कि ढेरी बनाकर उस पर एक सुपारी स्थापित कर दे.जिन लोगो के पास दस महाविद्या सिद्धि गोलक हो वे लोग गोलक को ही स्थापित करे इससे साधना का प्रभाव और बड़ जायेगा।इसके पश्चात् गुरु तथा गणपति का पूजन करे.तथा माँ तारा का पूजन करे.तील के तेल  का दीपक माँ के समक्ष  प्रज्वलित करे तथा कोई भी मिष्ठान्न माँ को अर्पित करे.तथा माँ के समक्ष माँ के चरणो में ही एक श्रीफल स्थापित करे. इसके पश्चात् आप मूल मंत्र पड़ते  जाये और थोडा थोडा कुमकुम उस श्रीफल पर अर्पित करते जाये।ये क्रिया आपको एक घंटे तक करनी है.इस साधना में आपको एक विशेष क्रिया भी करना होगी।एक ताम्र पात्र  कोई भी लोटा या थाली अपने पास रखे और मंत्र पढ़ते  समय उलटे हाथ से नीम की  टहनी अथवा किसी भी वृक्ष कि टहनी से उस पात्र  को धीरे धीरे बजाते रहे.अर्थात आप मंत्र पड़ते जाये और सीधे हाथ से कुमकुम अर्पित करते जाये और उल्टे  हाथ से पात्र पर धीरे धीरे  टहनी मारकर हल्की हल्की ध्वनि भी निकालते  जाये।ये इस साधना का आवश्यक अंग है.एक घंटे तक नित्य आपको ये क्रिया करनी होगी।९ दिन बाद लाल वस्त्र,समस्त कुमकुम और श्री फल कुछ दक्षिणा के साथ देवी मंदिर में रख आये.इस प्रकार ये साधना पूर्ण हो जायेगी।इसमें जो मंत्र जपा जायेगा वो इस प्रकार है.

ॐ तारे तू उद्धारे सकल कष्ट नासै, 
घुंघरू बाजे घंटा बाजे तारा मायी   नाचे,
तारा नाचे मंगल होय भक्त सुखी होय 
कामना पुरण करे जो तारा मायी होय
ॐ स्त्रीं हूं फट 

अन्य विधान के अनुसार इसी मंत्र के द्वारा माँ का नृत्य भी करवाया जाता है.इस विषय पर फिर कभी चर्चा होगी।क्युकी ये विषय थोडा लम्बा है.मंत्र  को थोड़ा  गायन करके पड़े तो उत्तम होगा,और जैसा लिखा गया है वैसा ही पड़े.अपनी और से कोई परिवर्तन ना करे.आप सभी कि साधना सफल हो इसी कामना के साथ 

जय अम्बे 

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Friday 21 March 2014

शाबर दशा माता साधना 


तंत्र के क्षेत्र में एक दिवस ऐसा भी आया था जब तंत्र कि दशा में एक मंगलकारी परिवर्तन आया.जिसे साधक दस महाविद्या सिद्धि दिवस भी कहते है.इसी दिन शिव ने दस महाविद्या पर से पर्दा उठाया था,और सम्पूर्ण विश्व ने जाना था कि दस महाविद्या क्या है.इसी दिन भारत के कई क्षेत्रो  में दशा माता पूजन होता है.जहा देवी कि कथा आदि कि जाती है.परन्तु दशा माता का शाबर तंत्र में भी अत्यधिक महत्व है.ये बात कम ही साधको को ज्ञात है कि,शाबर तंत्र में भी दशा माता कि साधना कि जाती है तथा अपनी दुर्दशा का नाश किया जाता है.इस बार ये दिवस २६ मार्च २०१४,को आ रहा है.इस दिन आप दशा माता से जुडी साधना कर सकते है.इस साधना को करने से साधक कि दशा सुधरती  है अर्थात,उसके जीवन को उच्चता कि प्राप्ति होती है.लाख परिश्रम के बाद भी आपका जीवन दुर्गति पूर्ण ही है.तो दशा माता कि साधना अवश्य करे.इससे साधक कि दशा में परिवर्तन होता है.तथा दशा माता कि कृपा से प्रगति के मार्ग खुल जाते है.जीवन में आ रही रुकावटे समाप्त हो जाती है.यदि आपके व्यापार पर या आप पर किसी ने तंत्र क्रिया कि हो तो उसका नाश हो जाता है.जीवन से नकारात्मक ऊर्जा पलायन कर जाती है.तथा जीवन में आनंद कि अनुभूति आती है.यह साधना आप २६ मार्च कि रात्रि ९ के बाद करे.सम्भव हो तो इस दिन व्रत रखे केवल फल का ही सेवन करे.रात्रि में स्नान कर पीले वस्त्र धारण करे तथा पीले आसन पर उत्तर या पूर्व कि और मुख कर बैठ जाये।भूमि पर बाजोट रखकर पिला वस्त्र बिछा दे.वस्त्र पर अक्षत कि ढेरी बनाकर उस पर एक मिट्टी का दीपक स्थापित कर दे.इसमें तील का तेल भरकर दीपक प्रज्वलित करे दीपक कि लो आपकी और होना चाहिए।अब दीपक को दशा माता का स्वरुप मानकर उसकी पूजा करे.कुमकुम,हल्दी अक्षत आदि से दीपक का पूजन करे.भोग में कोई भी पिली रंग कि मिठाई रखे.दशा माता से अपनी दशा को परिवर्तित करने कि प्रार्थना करे तथा कहे कि माँ मेरे जीवन को प्रगति प्रदान करे.इसके बाद निम्नलिखित शाबर मंत्र कि  एक माला जाप करे.इस साधना में आपको माला स्वयं बनानी होगी।एक लाल धागा इतना बड़ा  ले लीजिये जिसमे १०८ गठान लगायी जा सके तथा एक सुमेरु कि गाठ लगायी जा सके.इसी माला से आपको एक माला जाप करना होगा।जाप के पश्चात् अग्नि प्रज्वलित कर घी तथा पञ्च मेवे को मिलाकर अग्नि में १०८ आहुति प्रदान करे.आहुति के पश्चात् जो माला  आपने  बनायीं थी उसे गले में धारण कर ले.तथा माता से पुनः प्रार्थना कर आशीर्वाद प्राप्त करे.प्रसाद में जो मिठाई अर्पित कि गयी थी उसे पुरे परिवार को दे तथा स्वयं भी ग्रहण करे.अगले दिन अक्षत वस्त्र तथा दीपक किसी भी वृक्ष के निचे रख आये.इस प्रकार ये एक दिवसीय साधना पूर्ण होती है जो आपके जीवन को बदल देने में सक्षम है.

                                  मंत्र 

ॐ नमो आदेश गुरु को,दशा पलटे दशा माता।सुख समृद्धि प्रदान करे,धन बरसे सुख बरसे,दशा माँ कल्याण करे,आदेश गुरु गोरखनाथ को आदेश 

आप सभी कि साधना सफल हो इसी कामना के साथ 

जय अम्बे 

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Wednesday 12 March 2014

होली और भैरव प्रयोग



होली निकट ही है,ये ऐसा दिवस है जिस दिन तंत्र अपने चरम पर होता है.आपमें  से कई साधको ने इस दिन के लिए विधान माँगा था.अतः होली पर किये जाने  वाला एक प्रयोग यहाँ दिया जा रहा है.इस प्रयोग के माध्यम से साधक अपनी दरिद्रता, रोग शत्रु कष्ट आदि का निवारण कर सकता है.प्रस्तुत प्रयोग भगवान भैरव से सम्बंधित है.अतः इसका प्रभाव भी अचूक है.मित्रो मैंने कई बार कहा है कि जब भी आप कोई साधना करे तो उसे पूर्ण मनोभाव के साथ ही करे अन्यथा ना करे.क्युकी आसन पर बैठकर इष्ट कि जगह संसार का ध्यान करेंगे तो सफलता सौ जन्मो तक प्राप्त नहीं होगी।अतः जब आप होली पर इस दिव्य प्रयोग को करे तो पूर्ण एकाग्रता के साथ ही करे.वैसे तो इस प्रयोग से कार्य सिद्ध हो जाते है.जैसे 

दरिद्रता का नाश हो जाता है 

धन आगमन के मार्ग खुलने लगते है 

शत्रु द्वारा दिए जा रहे कष्टो से मुक्ति मिलती है 

गम्भीर रोग स्वतः शांत हो जाते है 

और जीवन से जुडी हर समस्या का निवारण इस एक दिवसीय साधना से हो जाता है.प्रस्तुत प्रयोग आपको १६ तारीख कि रात्रि १० के बाद आरम्भ करना है.आपके आसन तथा वस्त्र लाल हो.स्नान कर उत्तर दिशा कि और मुख कर बैठ जाये।बाजोट पर लाल वस्त्र बिछा दे तथा उस पर काले तील कि एक ढेरी बना दे.इस पर एक सुपारी सिंदूर से रंजीत करके स्थापित करे.जिनके पास भैरव सिद्धि गोलक हो वे लोग गोलक पर सिंदूर लगाकर स्थापित करे.अब सर्व प्रथम सद्गुरु तथा गणेश पूजन संपन्न करे.इसके बाद सुपारी अथवा गोलक का सामान्य पूजन करे.भोग में तले हुए पापड़,उड़द के ३ बड़े रखे.तील के तेल  का दीपक प्रज्वलित करे.तथा जीवन से सभी बाधाओ कि निवृति हेतु तथा साधना मार्ग में प्रगति हेतु आप ये साधना कर रहे है ऐसा संकल्प ले.अब साधक मंत्र जाप आरम्भ करे.इसमें माला का प्रयोग नहीं होगा।जाप करते समय भैरव के समक्ष एक कटोरा रखे और अपने पास काले तील,काली मिर्च,काले उड़द  तीनो को समान  भाग में मिलाकर किसी  अन्य पात्र में रखे.अब थोड़ी सी सामग्री ले और अपने मस्तक पर स्पर्श कराये स्पर्श करते समय शाबर भैरव मंत्र पड़ते रहे मंत्र पूर्ण होते ही ये सामग्री भैरव के समक्ष रखे कटोरे में डाल दे.इस प्रकार ये क्रिया एक घंटे तक करे.

मंत्र :  हूं हूं हूं भैरो दरिद्रता नासै,रोग नासै,सत्रु  नासै, नासै सगली  पीड़ा,सुख बरसे सफल होय कारज  डाले भैरो रक्षा घेरा,आदेश आदेश आदेश आदि गुरु को  आदेश 

जब मंत्र जाप कि क्रिया संपन्न हो जाये तब भैरव के समक्ष  कटोरे में जो सामग्री एकत्रित हुई है उसे घी में मिला ले और अग्नि में मंत्र पड़ते हुए १०८ आहुति प्रदान करे.सामग्री जरा भी न बचाये अगर आहुति के बाद भी बच जाये तो बाद में सभी सामग्री अग्नि में डालदे।भगवान भैरव से आशीर्वाद प्राप्त करे.और रात्रि में ही बाजोट पर बिछा वस्त्र,सुपारी भोग कि वस्तुए आदि किसी वृक्ष के निचे रख आये पीछे  मुड़कर न देखे घर आकर स्नान करे,हवन कि भस्म आदि भी अगले दिन कही विसर्जित कर दे.इस प्रकार ये प्रयोग संपन्न होता है.साधक को बाद में भी नित्य २१ बार मंत्र का पाठ करना चाहिए इससे प्रयोग कि तीव्रता दिन प्रतिदिन बढ़ती रहती है.तथा प्रयोग से सम्बंधित सभी लाभ साधक को शीघ्रता से प्राप्त होते है.यदि आप  भैरव सिद्धि गोलक का प्रयोग करे तो साधना के तुरंत बाद गोलक को निम्बू और नमक मिश्रित जल में डुबो दे २४ घंटे के लिए.इसके बाद धोकर शिवलिंग से स्पर्श कराकर पुनः सुरक्षित रख ले.आप सभी कि होली मंगलमय हो इसी कामना के साथ 

जय अम्बे 

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Saturday 8 March 2014

अघोर महालक्ष्मी दरिद्रता नाशक प्रयोग



जिन साधको ने " शिवशक्ति महाघोर कवच " मंगवाए थे उन सभी को कवच प्राप्त हो चुके है.अतः कवच पर कि जाने वाली साधना अब ब्लॉग पर आरम्भ कि जा  रही है.मित्रो लक्ष्मी का जीवन में क्या महत्व है ये तो सभी जानते है.परन्तु परिश्रम के बाद भी यदि लक्ष्मी दूर रहे तो मनुष्य को साधना मार्ग का आश्रय लेना ही चाहिए।क्युकी एक साधक पूर्णता प्राप्त करना चाहता है.और संसार में घुट घुट कर जीना एक साधक का काम नहीं है.साधक तो हर समस्या कि छाती पर पैर रखकर आगे निकल जाता है.और समस्त संसार का भोग करते हुए अंत में अपने इष्ट में लीन  हो जाता है.संसार के भोग के लिए निश्चय ही लक्ष्मी कि कृपा कि आवश्यकता है.क्युकी जिस पर लक्ष्मी प्रसन्न न हो उसे धन तो मिल ही नहीं सकता साथ ही धन के अभाव के कारण मनुष्य कुण्ठा भाव से भी ग्रसित हो जाता है.और रही सही कसर  हमारा समाज पूरी कर देता है.निरंतर आपको आपकी निर्धनता के बारे में कह कह कर.परन्तु आप स्मरण रखे प्रकृति ने यदि आपके भाग्य में कोई दुःख लिखा है तो उस दुःख को सुख में परिवर्तित करने का मार्ग भी इसी प्रकृति में ही है.तंत्र में शिव कहते है कि मनुष्य को वही दुःख प्राप्त होता है जिसका हल पहले से निकाला  जा चूका है.बस मनुष्य उस हल को खोज नहीं पाता  है और फिर उसे भाग्य मानकर बैठ जाता है.कितनी सुलझी हुई बात कही है शिव ने.और एक साधक कभी भाग्य का रोना नहीं रोता है.साधक तो भाग्य को परिवर्तित करने कि क्षमता रखता है.आपके हाथो में तंत्र रूपी कुंजी है जिसके माध्यम से आप भाग्य पर लगे ताले बड़ी सरलता से खोल सकते है.बस आवश्यकता है परिश्रम कि और समर्पण कि.मित्रो आज जो आपको साधाना दी जा रही है.इस साधना के माध्यम से आपके जीवन में धन आगमन के मार्ग स्वतः खुल जायेंगे।साथ ही यदि किसी ने आपके रोजगार पर कोई बंधन कर दिया है तो वो भी स्वतः ही दूर हो जायेगा।धन कि समस्या का हल होगा एवं आर्थिक स्थिति में सुधार होगा।प्रस्तुत प्रयोग  अघोर मार्ग का तीव्र प्रयोग है जिसका प्रभाव होता ही है.यहाँ एक बात  और कहना चाहूंगा कि आप जब भी कोई साधना करे.अपने द्वारा जपे जा रहे मंत्र पर और कि जा रही क्रिया पर पूर्ण विश्वास रखे.तील मात्र भी शंका हो तो सारी  क्रिया और जप व्यर्थ चला जाता है.अतः साधना में विश्वास रखे.आईये अब हम  विधि कि और चलते है.ये साधना आप किसी भी शुक्रवार से कर सकते है जो कि आपको अगले शुक्रवार तक अर्थात ८ दिनों तक करनी होगी।साधना के एक दिन पहले आप लाल कनेर अथवा नीम वृक्ष को निमंत्रण दे आये ये क्रिया आपको गुरूवार कि शाम को करनी होगी।दोनों में से किसी एक वृक्ष के पास जाये अब वृक्ष का सामान्य पूजन करे और एक लोटा जल अर्पित करे और कुछ मिठाई का भोग रख तेल का दीपक लगाये अब हाथ में हल्दी मिश्रित अक्षत ले और कहे " है वृक्ष राज में कल से अघोर महालक्ष्मी दरिद्रता नाशक प्रयोग  आरम्भ करने जा रहा हु.मुझे उस प्रयोग में आपकी एक टहनी कि आवश्यकता है अतः में कल आपकी टहनी लेने आउंगा,और अक्षत वृक्ष पर अर्पित कर दे.अगले दिन प्रातः कोई अच्छी सी टहनी तोड़ लाये साथ ही वृक्ष के हाथ जोड़कर आर्शीवाद भी ले.अब इस लकड़ी को धोकर इसका सामान्य पूजन करे.और " ॐ अघोरेश्वराय हूं फट " मंत्र का जाप करते हुए लकड़ी पर सिन्दूर मिश्रित अक्षत अर्पित करे.ये क्रिया १०८ बार करे और लकड़ी को सुरक्षित रख दे.अब शुक्रवार रात्रि ११.३० बजे के करीब आप साधना आरम्भ कर सकते है.स्नान कर लाल वस्त्र धारण करे,तथा उत्तर कि और मुख करके लाल आसन पर बैठ जाये।भूमि पर बाजोट रखे तथा उस पर लाल वस्त्र बिछा दे.इस पर " शिव शक्ति महाअघोर कवच रखे " अब कवच के ऊपर ही हल्दी मिश्रित अक्षत के एक ढेरी  बनाये।ढेरी  इतनी बड़ी होनी चाहिए कि कवच पूरा ढक जाये।अब इस ढेरी पर एक सुपारी स्थापित करे सुपारी को सिंदूर से रंजीत करके ही स्थापित करे.अब सर्व प्रथम सद्गुरु तथा गणपति का पूजन कर आशीर्वाद प्राप्त करे.इसके बाद सुपारी का लक्ष्मी मानकर सामान्य पूजन करे.कुमकुम,हल्दी अक्षत अर्पित करे.खीर अथवा किसी भी मिष्ठान्न का भोग अर्पित करे.तील के तेल  का दीपक जलाये।अब " आओ लक्ष्मी विराजो कष्ट हरो आदेश अघोरेश्वर को " बोलते हुए २१ बार  सुपारी पर सफ़ेद तील अथवा अक्षत अर्पित करे.इस क्रिया के बाद जो लकड़ी आप लाये थे उसे अपने दाहिने हाथ में रखे और पास में ही एक कटोरी में अक्षत भरकर उस कटोरी में सिद्दीप्रद रुद्राक्ष स्थापित कर दे.अब निम्न लिखित अघोर शाबर मंत्र को एक बार पड़े,पड़ते समय लकड़ी को सिद्धिप्रद रुद्राक्ष से स्पर्श कराकर रखे और जैसे ही मंत्र पूर्ण हो लकड़ी को सुपारी से स्पर्श कराये।बस यही क्रिया आपको बार बार सतत २ घंटे करनी होगी।मंत्र को पड़ना है और सुपारी से स्पर्श कराना है.जब ये क्रिया पूर्ण हो जाये तो भगवान अघोरेश्वर और लक्ष्मी से दरिद्रता दूर करने कि प्रार्थना करे.नित्य ये क्रिया आपको करनी होगी।साधना के अंतिम दिन जाप पूर्ण हो जाने के बाद.घृत में गूगल,तथा सफ़ेद तील मिलाकर २१ आहुति अग्नि में प्रदान करे.आहुति पूर्ण हो जाने के बाद एक बार पुनः मंत्र पड़े और निम्बू काटकर अग्नि में निचोड़ दे.इस प्रकार ये साधना पूर्ण होती है.अगले दिन रुद्राक्ष और कवच को रख ले.वस्त्र तथा अक्षत विसर्जित कर दे.आप जो लकड़ी लाये थे पुनः उसी वृक्ष के पास जाकर रख आये वृक्ष का पूर्व कि  भाती  ही पूजन करे भोग अर्पित करे तथा टहनी प्रदान करने के लिए धन्यवाद दे.

मंत्र 

लागी लागि लागी अघोर धुन लागी,आयी धनलछमी भागी भागी भागी,घर मोय आईके दरिद्रता मिटाये,ना करे कहा तो अघोर दंड खाये,आदेश अघोरेश्वर को आदेश 

इस प्रकार आपकी ये दिव्य साधना पूर्ण होती है जो कि आपके जीवन को बदलकर रख देने में सक्षम है.आवश्यकता है कि आप साधना को पूर्ण निष्ठा से करे.किसी भी प्रश्न के लिए मेल करे.तथा अपनी और से मंत्र में कोई परिवर्तन ना करे.जैसा लिखा गया है वैसा ही करे.

sadhika303@gmail.com

जय अम्बे 

Saturday 1 March 2014

पारद विग्रह और एक योजना



 ॐ नमः शिवाय 

मित्रो कुछ दिनों से कई साधको के सतत सन्देश प्राप्त हो रहे है कि वे पारद विग्रहो पर साधना करना चाहते है,परन्तु पारद विग्रह महंगे होने के कारण वे उसे लेने में समर्थ नहीं है.क्युकी इतना धन एकत्रित ही नहीं हो पाता है कि विग्रह लिया जा सके.

प्रिय साधको सर्व प्रथम यह स्पष्ट करना चाहूंगा कि पारद विग्रह इतने महंगे क्यों है ?

पारद के संस्कार कई मार्गो से किये जाते है.प्रत्येक विग्रह के निर्माण में पृथक पृथक संस्कारो का प्रयोग करना होता है.साथ ही  हर संस्कार के समय जिस विग्रह का निर्माण करना है उस विग्रह से सम्बंधित मंत्रो का सतत जाप किया जाता है.और जिस मार्ग से संस्कार किया जा रहा है उसी मार्ग से सम्बंधित सामग्रीओ का प्रयोग होता है.जब हम  कौल मार्ग से संस्कार करते है तो रक्त वर्णीय फलो के रस,सिन्दूर,रक्त पुष्प आदि कई ऐसी सामग्री होती है जिनके माध्यम से ये संस्कार किये जाते है.पारद के शोधन के समय से ही देवी कुरुकुल्ला के मंत्रो द्वारा पारद को ऊर्जावान करने का कार्य आरम्भ कर दिया जाता है.और प्रत्येक संस्कार में पृथक पृथक मंत्रो सामग्रीओं तथा विधियों का प्रयोग किया जाता है.जब अघोर मार्ग से संस्कार कि बारी  आती है तो अघोरेश्वर पूजन आदि संपन्न कर संस्कार किये जाते है.ठीक इसी प्रकार विहंगम मार्ग,सूत मार्ग,सूर्य मार्ग आदि कई मार्गो से पारद संस्कारित किया जाता है.तब जाकर पारद विग्रह के लिए तैयार होता है.इसके बाद विग्रह निर्मित करना।और उस मार्ग से प्राण प्रतिष्ठा करना जिस मार्ग से संस्कार किये गए है,ये क्रिया भी अत्यंत जटिल होती है.विशेषकर पारद काली का निर्माण सबसे कठिन माना जाता है.क्युकी इसमें अभिमंत्रित मुष्टि मारने पर कई बार काली विग्रह चटक जाता है.और साधक को पूरी क्रिया पुनः करना होती है.खैर इस विषय पर फिर कभी पूर्ण रूप से चर्चा करेंगे कि पारद काली निर्माण में ही कैसे साधक कि परीक्षा आरम्भ कर देती है.

अब आपका प्रश्न होगा  कि फिर बाज़ार में उपलब्ध पारद विग्रह इतने सस्ते क्यों है ?

मित्रो बाज़ार में उपलब्ध पारद विग्रह में और संस्कारित पारद विग्रह में उतना ही अंतर है  जितना अंतर स्वर्ण में तथा सोने का पानी चढ़ाये हुए गहने में होता है.बाज़ार में उपलब्ध विग्रह न तो संस्कारित पारद से निर्मित होते है ना ही सिद्ध होते है.और उनमे ९० % तक रांगा मिलाया जाता है.जो कि आपको पूर्ण फल प्रदान नहीं करता है.जबकि रस तंत्र के अनुसार किस विग्रह में कितना पारद होना चाहिए कितना स्वर्ण होना चाहिए ये सब रसतन्त्र ही  निश्चित करता है.साथ ही विग्रह को केवल एक साँचे में डालकर तैयार  नहीं कर दिया जाता है.इसकी भी एक अलग ही विधि होती है.पारद को शुद्ध कर संस्कारित करना और फिर विग्रह निर्मित कर प्राण प्रतिष्ठा करना इन सभी में अथक परिश्रम लगता है और पग पग पर कई प्रकार कि क्रियाएँ करनी पड़ती है.इसी कारण असली पारद विग्रह थोड़े महंगे होते है.

अब प्रश्न उठता है कि, क्या आम साधक इसे नहीं ले पायेगा ?

इस  मामले में एक बात हम स्पष्ट करना चाहते है कि पारदेश्वर को जहा जाना होता है चले जाते है.पारद काली को जहा स्थापित होना होता है वो हो ही जाती है.अब मूल चर्चा कि और आते है.आपमे  से कई साधको ने कहा कि हम कोई भी विग्रह इकट्ठी धन राशि जमा कराकर नहीं ले सकते है.क्युकी धन एकत्रित हो ही नहीं पाता है बार बार खर्च हो जाने के कारण हम  विग्रह ले ही नहीं पाते है.

इसलिए कुछ साधको को संस्था द्वारा किश्तो में पारद विग्रह उपलब्ध करवाये गए ताकि वे भी पारद विग्रहो पर साधना करने का सौभाग्य प्राप्त कर सके.किन्तु ऐसी व्यवस्था अब तक केवल कुछ साधको के लिए ही कि गयी थी.परन्तु तंत्र माह के इस पावन पर्व पर,ये सुविधा सभी साधको के लिए आरम्भ कि जा रही है.अब बताते है कि आपको करना क्या होगा।

आप जो भी विग्रह प्राप्त करना चाहते है.उसके लिए आप मेल के द्वारा जानकारी प्राप्त कर सकते है.इसके बाद आप तय कर लीजिये कि आप कब कब कितनी राशि जमा करवा पाएंगे।ये भी आप मेल के माध्यम से निश्चित कर लीजियेगा।जब भी राशि जमा कराये उसकी रसीद कि स्कैन कॉपी मेल में ही भेज दिया करे.ताकि आपके द्वारा जमा कि गयी राशि कि जानकारी हमारे पास सुरक्षित रहे.और आप निश्चिन्त रहे आपकी सुविधा को ध्यान में रखते हुए ये भी आप ही निश्चित करेंगे कि आप विग्रह कि राशि कितने किश्तो में जमा करेंगे।इस प्रकार प्रत्येक माह आप थोड़ी थोड़ी धन राशि हमारे पास जमा करवा सकते है.जैसे ही आपके इच्छित विग्रह कि धन राशि हमारे पास पूर्ण रूप से जमा हो जायेगी।आपका इच्छित विग्रह निर्मित कर आप तक सुरक्षित पंहुचा दिया जायेगा।इस प्रकार आप शुद्ध संस्कारित विग्रहो को प्राप्त कर पाएंगे।

मित्रो संस्था के द्वारा बनायीं गयी ये योजना आपको कितनी पसंद आएगी ये हम नहीं जानते है.परन्तु जो साधक वास्तव में पारद विग्रहों पर साधना करना चाहते है ये योजना उनके लिए तो वरदान स्वरुप ही है.अतः निर्णय  आपका है.आप सभी साधना मार्ग पर प्रगति पाये इसी कामना के साथ.

जय अम्बे 

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