Friday 27 December 2013

धूम्रवर्णा धूमावती

धूं , धूं ,धूं   कितना प्यारा लगता है ना,ये बीज मंत्र।
जब साधक पूर्ण एकाग्रता से इसका जाप करता है तो,मूलाधार से सहस्त्रार तक एक स्पंदन आरम्भ हो जाता है.एक कंपन सा होने लगता है मणिपुर चक्र में,एक अजीब सी मादकता चढ़ जाती है आज्ञा चक्र और सहस्त्रार चक्र पर.

और ऐसा हो भी क्यों ना ? 

ये शिवा तो शिव को निगल गयी,जिन शिव ने हलाहल का पान किया एक ऐसा हलाहल जिसकी एक बूंद भी सृष्टि का अंत करने में सक्षम थी.परन्तु शिव उसे पि गए अपने कंठ में रख लिया,रोक लिया उस विष को जो अत्यंत भयंकर था.और ऐसे प्रलयंकारी को निगल गयी ये शिवा,ये जगदम्बा।

और तभी प्राकट्य हुआ भगवती धूमावती का,जो सारे संसार के विष को पिने वाले शिव को निगल गयी ऐसी भगवती के उपासक को नशा तो चढ़ेगा ही,शराब का नहीं,धूम्रपान का नहीं, बस इस बीज मंत्र का भगवती के इस परम बीज मंत्र का.

मित्रो इतनी सहज नहीं है इस महाविद्या कि साधना करना।ये जिसे स्वीकार करे वही साधक इसकी भक्ति का नशा प्राप्त कर पाता है.और ये उसे ही स्वीकार करती है जो पूर्ण समर्पण करने को तैयार हो.जो सर कटाने को तैयार हो,सर कटाने को अन्यथा न लेना अपने सर पर तलवार न रख लेना।तुम्हारी ये बुद्धि तुम्हारे अहंकार का प्रतिक है,ईर्ष्या का प्रतिक है,तर्क कुतर्क का प्रतिक है,बस इस जड़ बुद्धि के बंधन को जो काटने को तैयार हो उसे ही स्वीकार करती है धूमावती।अन्यथा ये धुम्रवर्णा धुए में ही उड़ा  देती है साधक को.

२१ माला से कुछ नहीं होगा ५१ माला से भी कुछ नहीं होगा।कामना पूर्ति अवश्य हो जायेगी।भोग कि प्राप्ति अवश्य हो जायेगी,शत्रु का नाश भी हो जायेगा,किन्तु धूमावती कि प्राप्ति नहीं होगी।इस दिव्य महाविद्या को तुम समय में नहीं बांध सकते हो माला कि गिनती के फेर में नहीं बांध सकते हो.ये यात्रा अत्यंत लम्बी है,इस मार्ग में धूमावती का धुआ बिखरा पड़ा है जो तुम्हें भटकाएगा,तुम्हे उलझाएगा तुम्हारे नेत्रो में धुंध बनकर छा जाएगा,बस इसी धुंध में से इसी सांसारिक धुए से तुम्हे खोजना होगा इस धूम्र साम्राज्ञी धूमावती को.लुका छिपी खेल रही है ये तुम्हारे साथ,शमशान में नहीं है,निर्जन स्थान में नहीं है.तुम्हारे ही अंतर में छुपकर बैठी है.अंदर के धुए को साफ करो.समर्पण का दीपक प्रज्वलित करो.स्वतः प्रगट हो जाएगी भगवती।सम्पूर्ण संसार का वैभव और मोक्ष तुम्हारे  चरणो में होगा तब। 

धूं बाधा निवारिणी धूम्रेश्वरी फट 

जय माँ 

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