मित्रो ऋण जीवन में विष के सामान है.क्युकी अगर ये समय पर समाप्त न किया जाये,तो दिन प्रतिदिन ये बढ़ता ही जाता है.और इसके साथ ही बढ़ती जाती है चिंता,जो आपको रात दिन सोने नहीं देती है.ऋण जीवन में एक ऐसा विघ्न है जो हमें कभी प्रगति कि और बढ़ने नहीं देता है.
और जब विघ्न का नाम आता है तो सबसे पहला स्मरण आता है विघ्नहर्ता गणपति का.क्युकी विघ्नहर्ता के आगे तो बड़े बड़े विघ्न नहीं टिक सकते,तो ऋण क्या चीज़ है.मित्रो आज हम ऋण मुक्ति हेतु आप सभी के समक्ष गणपति जी का एक दिव्य विधान प्रस्तुत कर रहे है.ताकि आप सभी इस ऋण रूपी दैत्य से मुक्ति पा सके.
आप ये साधना किसी भी बुधवार से आरम्भ कर सकते है.समय प्रातः ४ से १० के मध्य का हो अथवा रात्रि ९ के बाद का हो.स्नान कर लाल वस्त्र धारण करे और लाल आसन पर बैठ जाये।आपका मुख उत्तर या पूर्व कि और होना चाहिए।सामने बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाये और उस पर मसूर कि दाल कि एक ढेरी बनाये।उस पर एक छोटी सी ताम्बे कि प्लेट या कटोरी रखे,उस पात्र को सिन्दूर से पूरा भर दे.इस कटोरी में एक गोल सुपारी सिन्दूर से रंजीत कर स्थापित करे.ये सुपारी गणपति का प्रतिक है.साथ ही गणपति का कोई चित्र अथवा विग्रह भी बाजोट पर स्थापित करे.सुपारी और गणपति का सामान्य पूजन करे.तील के तैल का दीपक जलाये।गूढ़ प्रसाद रूप में अर्पित करे नित्य साधना के बाद ये गूढ़ एक रोटी में रखकर गाय को खिला दे स्वयं न खाये।पूजन करे ऋण मुक्ति का संकल्प लेकर।मूंगा माला या रुद्राक्ष माला से २१ माला निम्न मंत्र कि करे.
ॐ गं ऋणहर्तायै गं नमः
om gam rinhartyayi gam namah
इस साधना में आपको नित्य श्वेतआर्क के २१ पत्तो पर सिंदूर से ये मंत्र लिखकर रख लेना है.और प्रत्येक माला कि समाप्ति पर एक पत्ता गणपति पर अर्पित करना है.इस प्रकार नित्य साधना करे.साधना आपको अगले बुधवार तक करनी होगी।अंतिम दिवस साधना के पश्चात् अग्नि प्रज्वलित करे तथा,घी में दूर्वा मिलाकर इसी मंत्र के अंत में स्वाहा लगाकर गणपति को १०८ आहुति प्रदान करे.अगले दिन लाल वस्त्र,सिन्दूर,मसूर,सुपारी तथा वो पात्र जिसमे सिन्दूर भरा था किसी गणपति मंदिर में रख आये तथा ऋण मुक्ति हेतु प्रार्थना करे.इस प्रकार ये दिव्य ऋण मुक्ति साधना पूर्ण होती है.बाद में नित्य एक माला अवश्य करे.साधना करे और स्वयं देखे कि कैसे ऋणहर्ता,विघ्नहर्ता आपके ऋण को समाप्त करते है.आप सभी को सफलता प्राप्त हो इसी कामना के साथ.
जय माँ
अन्य जानकारी के लिए मेल करे.
pitambara366@gmail.com
और जब विघ्न का नाम आता है तो सबसे पहला स्मरण आता है विघ्नहर्ता गणपति का.क्युकी विघ्नहर्ता के आगे तो बड़े बड़े विघ्न नहीं टिक सकते,तो ऋण क्या चीज़ है.मित्रो आज हम ऋण मुक्ति हेतु आप सभी के समक्ष गणपति जी का एक दिव्य विधान प्रस्तुत कर रहे है.ताकि आप सभी इस ऋण रूपी दैत्य से मुक्ति पा सके.
आप ये साधना किसी भी बुधवार से आरम्भ कर सकते है.समय प्रातः ४ से १० के मध्य का हो अथवा रात्रि ९ के बाद का हो.स्नान कर लाल वस्त्र धारण करे और लाल आसन पर बैठ जाये।आपका मुख उत्तर या पूर्व कि और होना चाहिए।सामने बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाये और उस पर मसूर कि दाल कि एक ढेरी बनाये।उस पर एक छोटी सी ताम्बे कि प्लेट या कटोरी रखे,उस पात्र को सिन्दूर से पूरा भर दे.इस कटोरी में एक गोल सुपारी सिन्दूर से रंजीत कर स्थापित करे.ये सुपारी गणपति का प्रतिक है.साथ ही गणपति का कोई चित्र अथवा विग्रह भी बाजोट पर स्थापित करे.सुपारी और गणपति का सामान्य पूजन करे.तील के तैल का दीपक जलाये।गूढ़ प्रसाद रूप में अर्पित करे नित्य साधना के बाद ये गूढ़ एक रोटी में रखकर गाय को खिला दे स्वयं न खाये।पूजन करे ऋण मुक्ति का संकल्प लेकर।मूंगा माला या रुद्राक्ष माला से २१ माला निम्न मंत्र कि करे.
ॐ गं ऋणहर्तायै गं नमः
om gam rinhartyayi gam namah
इस साधना में आपको नित्य श्वेतआर्क के २१ पत्तो पर सिंदूर से ये मंत्र लिखकर रख लेना है.और प्रत्येक माला कि समाप्ति पर एक पत्ता गणपति पर अर्पित करना है.इस प्रकार नित्य साधना करे.साधना आपको अगले बुधवार तक करनी होगी।अंतिम दिवस साधना के पश्चात् अग्नि प्रज्वलित करे तथा,घी में दूर्वा मिलाकर इसी मंत्र के अंत में स्वाहा लगाकर गणपति को १०८ आहुति प्रदान करे.अगले दिन लाल वस्त्र,सिन्दूर,मसूर,सुपारी तथा वो पात्र जिसमे सिन्दूर भरा था किसी गणपति मंदिर में रख आये तथा ऋण मुक्ति हेतु प्रार्थना करे.इस प्रकार ये दिव्य ऋण मुक्ति साधना पूर्ण होती है.बाद में नित्य एक माला अवश्य करे.साधना करे और स्वयं देखे कि कैसे ऋणहर्ता,विघ्नहर्ता आपके ऋण को समाप्त करते है.आप सभी को सफलता प्राप्त हो इसी कामना के साथ.
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