Monday 23 December 2013

विद्या

आप में से कुछ साधको ने थोड़े दिन पहले प्रश्न किया था कि,आसुरी विद्या या काली विद्या कैसे होती है ? क्या होती है ?

सर्व प्रथम हम चर्चा करेंगे आसुरी विद्या पर,मित्रो ये अत्यंत ही सुक्ष्म विषय है,और यहाँ पर मनुष्य अधिक भ्रमित होता है.क्युकी जितने मस्तिष्क उतने ज्ञान आपको दे दिए जाते है.और आप  भी सब है मस्त राम जो दिख गया बस उससे राय लेना शुरू कर दी.तो भटक तो जाओगे ही न.इसलिए जिन पर भरोसा हो उनसे हर विषय पर राय ले और संकल्प ले कि वे जैसा कहेंगे हम करेंगे इसके सिवा  किसी अन्य से चर्चा नहीं करेंगे।तब आप प्रगति पर आयेंगे अन्यथा जीवन भटकने में और शंकाओं में ही निकल जायेगा।ये सब बाते में अपने शिष्यों को कह  रहा हु अन्य लोग इन सब बातो पर ध्यान न दे.

हा तो चर्चा चल रही थी आसुरी विद्या कि,मित्रो प्राचीन समय में असुर जिन विद्या का प्रयोग कर शक्ति संपन्न बनते थे,उनकी वही विद्या आसुरी विद्या कहलाती है.इसमें माँ दुर्गा के ही एक स्वरुप जिसे आसुरी दुर्गा कहा जाता है इनकी वे साधना तथा पूजा करते थे.आपको एक बात यहाँ सर्व प्रथम स्पष्ट कर देता हु कि आप आसुरी दुर्गा नाम सुनकर अपने मन में एक अलग ही छाप मत बना लेना कि माँ को बली देते होंगे असुर या मदिरा आदि अर्पित करते होंगे।मित्रो ऐसा कुछ नहीं है असुर भी माँ के इस स्वरुप कि सात्विक भाव से ही पूजा करते थे.हा परन्तु माँ का ये सवरूप पूजना इतना सरल नहीं था और न आज है इसमें वही सफल हो पाता  था जो धैर्यवान होता था या जो हर कष्ट को सहन  करने कि क्षमता रखता था,और आज भी यही नियम इन साधनाओ पर लागु होता है.और यही कारण है कि देवताओं से अधिक शक्ति दानव अर्जित कर लेते थे,क्युकी उनमे साधना   के प्रति अत्यधिक समर्पण था.और वे ही देवी आसुरी दुर्गा कि कसोटी पर खरे उतरते थे.इसके साथ ही आसुरी साधनाओ में एक देवी और है जिनकी पूजा कि जाती थी,जिनका नाम है निकुंबला, वास्तव में भगवती बगलामुखी ही है  जिन्हे असुर कूल में देवी निकुंबला के नाम से पूजा जाता था,और इनकी साधना कि जाती थी.हा अन्य पदत्ति से इनकी साधना पदत्ति थोड़ी पृथक एवं क्लिष्ट होती थी.अब हम आसुरी विद्या के तीसरे आराध्य कि और बढ़ते है,और वो थे गुह्यक,ये भी इतर योनि में ही आते है.जैसे यक्षिणी,अप्सरा,किन्नरी,यक्ष आदि है,उसी प्रकार ये भी इतर योनि में एक वर्ग आता है.जिनका अपना संसार होता जहा ये निवास करते है.इनकी साधना करके असुर मायावी होते थे,मूल रूप से असुर कूल में इनकी साधना एवं उपासना कि जाती थी.इन्ही कि सहायता से असुर माया को अपने अंदर पूर्ण रूप से उतार  लेते थे,असुर माताए  जब गर्भ धारण करती थी तो योनि में संतान उत्पत्ति के लिए बीजारोपण करते समय ही गुह्यक मंत्रो का जाप आरम्भ कर देती थी.और गर्भ धारण के बाद भी संतान के जन्म लेने तक सतत गुह्यक साधना करती थी,और साधना कि ऊर्जा को गर्भ में स्थित संतान को प्रेषित करती रहती थी,यही कारण था कि असुर जन्म से ही मायावी होते थे.उनमे अपने रूपो को विभक्त कर देने कि,कोई भी रूप धारण करने कि,वायु गमन करने कि,अदृश्य होने कि और नाना प्रकार कि मायावी शक्तिया जन्म से विद्यमान होती थी.आपको स्मरण होगा गर्भ में ही अष्टावक्र वेद सिख गए थे क्युकी उनके पिता वेदपाठी थे.इसी प्रकार असुर भी गर्भ में ही शिक्षा ग्रहण करते थे.आज भी ये सब सम्भव है किन्तु,आजकल माताए या तो टीवी सीरियल में व्यस्त है या पार्लर में,और पिता बैंक बैलेंस बनाने में इसलिए ये असम्भव होता जा रहा है.खैर कलयुग है ये सब तो होगा ही.वैसे तो आसुरी विद्या के और भी कई रहस्य है जो कि यहाँ लिख पाना सम्भव नहीं है क्युकी उस पर तो एक ग्रन्थ लिखा जा सकता है.साथ ही यु सब कुछ लिख देना मेरी मर्यादा के विरुद्ध है,क्युकी गुरुपद कि अपनी मर्यादा है जिसका पालन मेरे लिए अनिवार्य है.फिर भी संक्षेप में जितना लिख सकता था लिख दिया है ताकि आप समझ सके.साथ ही एक बात पुनः कहना चाहूंगा कि आसुरी विद्या बुरी या गलत नहीं होती थी बस हठ योग इसमें अधिक था.असुर भी पूर्ण सात्विक भाव से ही साधना करते थे,अपने कु कृत्यों को छुपाने के लिए,अपने भोग विलास को सही प्रमाणित करने के लिए असुर का नाम न ले कि वो भी ऐसा ही करते थे.जगदम्बा का नियम सबके लिए समान है चाहे वो देवता हो,मनुष्य हो या दानव हो.इस विषय पर अब यही विराम। 

अब चलते है अगले प्रश्न कि और 

काली विद्या क्या होती है ?

मित्रो अगर आप सोचते है कि काली विद्या किसी भी प्रकार से उचित है तो आप बिल्कुल  गलत सोचते है.क्युकी इसमें न तो शिव कि पूजा होती है और न ही शक्ति कि और न ही किसी देवी अथवा देवता कि.इस विद्या को करने वाले इतर योनि को पूजते है.अब इतर योनि में भी दो वर्ग है.यक्षिणी,अप्सरा,किन्नरी,गुह्यक ये सब देव वर्ग में आते है तथा ये  सतो प्रधान है.इनकी पूजा नहीं कि जाती काली विद्या में.बल्कि जो इतर योनि में बिलकुल निचे का वर्ग है भूत,प्रेत,पिशाच,बृह्मराक्षस,अतृप्त आत्माए इनकी पूजा कि जाती है काली विद्या में.इस विद्या को करने वाले इनकी पूजा करते है और इन्हे बलि आदि से तृप्त कर अपने कार्य सिद्ध करवाते है.किन्तु इस मार्ग पर चलने वाले स्वयं कब इसमें उलझ जाते है,उन्हें खुद पता नहीं चलता है.पहले इन सबकी पूजा करके व इन्हे अपने जीवन का हिस्सा बना लेते है और फिर बाद में एक इष्ट कि ही तरह ये योनियां साधना करने वाले पर शासन  करती है.स्मरण रखे इनकी पूजा करना और इनको वश में करना दो अलग बात है,इनको वश में हम साधक करते है,अपनी साधना और मन्त्र के माध्यम से परन्तु हमारे इष्ट शिव शक्ति तथा सद्गुरुदेव ही होते है.हम इनकी पूजा नहीं करते है, हम  इन योनियों को अपने अधीन कर इन पर शासन करते है,साक्षात् शिव कि ही भाती।किन्तु काली विद्या करने वाले इनको पूजते है और जीवन भर इनकी पूजा कर इनसे सहायता लेते रहते है.परन्तु ऐसे लोगो कि कोई गति नहीं होती ये जितने वर्ष उनको पूजते है उतने ही वर्ष इन्हे भी मृत्यु पर्यन्त उस योनि में रहना पड़ता है.उदाहरण  के लिए यदि आप ने इनकी पूजा १० वर्ष तक कि तो आपको भी मृत्यु के बाद १० वर्ष उस योनि में भटकना होगा जिसकी आपने  पूजा कि थी.आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आप समझ गए होंगे कि काली विद्या क्या होती है.इस विषय को भी यही विराम।इसके साथ ही वाम मार्ग में मैली देवी कि पूजा कि जाती है,इनके उपासक जिस विद्या का प्रयोग करते है उस विद्या को मेलि विद्या कहा जाता है.परन्तु इसमें भी कई जन भ्रमित है कि मेलि देवी माँ जगदम्बा का ही एक सवरूप है,किन्तु ये सर्वथा गलत धारणा है.मेलि देवी का अर्थ है जो मेल से उत्पन्न हो अर्थात इस देवी कि उत्पत्ति आपकी ही नकारत्मक ऊर्जा से होती है.सरल शब्दो में कहु तो साधक अपनी ही नकारात्मक ऊर्जा को पूजकर शक्ति अर्जित करता है,हालाकि  अगर वो चाहे इस शक्ति का सदुपयोग कर सकता है.किन्तु शक्ति  के अपने गुण भी होते है तमस भाव कि शक्ति  आएगी तो सदुपयोग कि जगह दुरुपयोग कि ही प्रेरणा देती है या यु कहु कि साधक कि  बुद्धि ही ऐसी हो जाती है.

मैंने अपने सालो के साधना मार्ग में जो जाना जो समझा वो आपके सामने लेख के माध्यम से रख दिया है.और ये केवल मोटी मोटी जानकारी ही रखी है ताकि आप  समझ सके.क्युकी पूरी चर्चा तो आप मुझसे मिलकर ही कर सकते है साथ ही जान भी सकते है.और वैसे भी में तो अपनी माँ का सीधा साधा छोटा सा साधक हु.मुझे उसके सिवा  और कोई दिखाई ही नहीं देता।ये लेख लिखकर में किसी का विरोध नहीं कर रहा हु,बस जो मुझसे पूछा गया उसे ही मैंने अपने अल्प ज्ञान के माध्यम से समझाने का प्रयत्न किया है.अन्य ज्ञानयों कि इस पर अलग सोच हो सकती है.अतः वे मेरे लेख को मात्र एक छलावा समझ कर भूल जाए ।कोई विवाद या तर्क कुतर्क स्वीकार नहीं है.अगर किसी को चोट पहुची हो तो क्षमा प्रार्थना के साथ.

जगदम्ब प्रणाम  


5 comments:

  1. Agar aap se milna ho to kaise milsakte hai.... kaha mil sakte hai. Jai mata di.

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  2. Maili vidya ke bare me aur kuch bhi janna h..kya maili vidya krte samay kapde utarne padte h ya pir yoni pe tika kumkum lgana hota h

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  3. Guruji pranam. Mera naam amit kumar hai. Main Dwarka , new delhi me rahta hu. Aapse kaise mil sakte hai?

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  4. आदेश गुरुदेव

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