Tuesday 10 December 2013

ब्रह्मचर्य और कुछ आवश्यक बाते

आप जो भी साधनाये करते है,उसमे सदा ब्रह्मचर्य पालन का आदेश दिया जाता है.उसका एक विशेष कारण है कि जब आप साधना करते है तो मंत्रो से संचित कि हुई ऊर्जा मूलाधार से सहस्त्रार कि और बढ़ती है.और उसका भेदन कर इष्ट अथवा सम्बंधित देवता तक जाती है जिनकी आप साधना कर रहे है.और यही ऊर्जा से देवता को बल प्राप्त होता है आपके कार्यो को सिद्ध करने के लिए.

परन्तु ब्रह्मचर्य है क्या ?

क्या केवल ब्रह्मचर्य इतना ही है कि,देहिक सम्बन्धो को स्थापित करने से बचा जाये ?

नहीं ब्रह्मचर्य दो शब्दो से मिलकर बना है,ब्रह्म एवं चर्या। ब्रह्म का अर्थ है ईश्वर, और चर्या का अर्थ है आचरण।इस प्रकार बह्मचर्य का अर्थ होता है.

ईश्वर कि तरह आचरण करना,जैसे ईश्वर रहते है साधना के मध्य उसी प्रकार से रहना।

ईश्वर कैसे रहते है ?

मित्रो ईश्वर आनंद में रहते है,अपनी ही धुन में रहते है,अपनी ही मस्ती में रहते है.हर दृश्य पर दृष्टि तो रखते है परन्तु उन दृश्यों से विचलित नहीं होते है.दृश्य अच्छा है अथवा बुरा वे दोनों ही स्थिति में सम तथा प्रसन्न रहते है.

अब हम पुनः ब्रह्मचर्य पर आते है.साधको हमें चार पुरुषार्थ ईश्वर कि और से प्राप्त हुए है. धर्मं,अर्थ,काम और मोक्ष 

और इन चारो पुरुषार्थो को ही अपने अपने स्थान पर महत्त्व प्राप्त है.इन्ही में से एक है काम.
मित्रो यदि काम बुरा होता तो चार पुरुषार्थो में इसका नाम न होता।काम बुरा नहीं है,बस उसका प्रयोग किस तरह किया जा रहा है.उसी प्रयोग के आधार पर वो अच्छा या बुरा होता है.

जब भी आप साधना करते है तो सबसे बड़ा प्रश्न आपके समक्ष होता है ब्रह्मचर्य का, कि कैसे इतने दिनों तक इसका पालन किया जाये ?

दो या तीन दिन कि बात हो तो शायद आप कर भी ले किन्तु यदि साधनाये लम्बी हो तो क्या किया जाये ? साधना क्षेत्र में तो कई कई साधनाये ऐसी भी है जो कि एक से दो वर्ष तक सतत कि जाती है.या इससे भी अधिक समय तक कि जाती है.ऐसी स्तिथि में ब्रह्मचर्य आम व्यक्ति के लिए अत्यंत कठिन कार्य हो जाता है.

मित्रो क्या देहिक सम्बन्धो को स्थापित करने से बह्मचर्य खंडित हो जाता है ?

नहीं ऐसा कदापि नहीं है। 

ब्रह्मचर्य का अर्थ है कि आप सदा कामुकता से दूर रहे.अब यदि आप विवाहित है तो गृहस्थी से जुड़े आपके कई कर्त्तव्य है जिनका पालन अति आवश्यक हो जाता है.उन्ही कर्तव्यों में से एक कर्त्तव्य है देहिक सम्बन्धो को स्थापित करना।

अब प्रश्न उठा है कि अगर हमने सम्बन्ध स्थापित किये तो साधना खंडित हो जायेगी।परन्तु ऐसा नहीं है मित्रो, साधना उसी कि खंडित होगी जो २४ घंटे सतत कामुक चिंतन करता हो.आज आपके समक्ष इन्ही बातो को स्पष्ट करना चाहता हु ताकि आप सभी इस गम्भीर दुविधा से बाहर  आ सके.

मान कीजिये आपको साधना दी दी  गयी है,४० दिनों कि.अब हो सकता है कि आप  इतने दिनों तक ब्रह्मचर्य का पालन न कर पाये।तो जिस भी गुरु अथवा मार्गदर्शक ने आपको साधना विधान दिया है उनसे अपनी बात कही जाये।योग्य गुरु इस बात को भली प्रकार जानते है कि साधक को लम्बी साधनाओ में भी कब कब देहिक सम्बन्धो को स्थापित करने कि अनुमति दी जा सकती है.क्युकी वे गुरु है और सम्पूर्ण तंत्र एवं साधना मार्ग गुरु सत्ता के ही अधीन होता है.साधान के अनुसार गुरु आपको विशेष समय और दिन बता सकते है कि किस किस समय पर आप देहिक सम्बन्धो को स्थापित कर सकते है.तो मित्रो ऐसा करने पर आप दोनों कार्य ही बड़ी सरलता से कर सकते है.साधना का पालन भी और गृहस्थी का पालन भी.

और इसमें आपको कोई दोष भी नहीं लगेगा,मित्रो डरने कि या घबराने कि आवश्यकता नहीं है.

विष्णु अवतार मोहिनी को देख शिव कामुक हुए और उनका वीर्य स्खलित हुआ जिसे आप पारद के नाम से जानते है.ब्रह्मा सरस्वती पर मोहित हो गए अप्सरा पर मोहित हो गए तो शिव के द्वारा अपना मस्तक खो बैठे,जब शिव का वीर्य स्खलित हो सकता है,जब ब्रह्म देव में कामुक भाव जाग सकते है ,तो आप तो आम मनुष्य है.अतः घबराने कि कोई आवश्यकता नहीं है.लेकिन फिर भी हर समय कामुक चिंतन से सदा बचे.

अब जब सद्गुरु आपको बता दे कि कब कब आपको देहिक सम्बन्धो कि अनुमति दी जा रही है,तो साधना में मन अधिक टिकता है क्युकी विचलित करने वाली समस्या का निवारण हो चूका है.

आईये अब आपको कुछ उपाय बताते है जिससे कि देहिक सम्बन्धो के बाद भी आप अपनी साधनात्मक ऊर्जा को संचित करके रख सके.

मान लीजिये आपकी नवार्ण मंत्र कि साधना चल रही है.और ये सतत कई दिनों तक चलनी है.और इस साधना के मध्य ही आपको सम्बन्धो को स्थापित करने कि आवश्यकता अनुभव हो रही है.तो आप डरे नहीं सम्बन्धो को पूर्ण आनंद के साथ स्थापित कीजिये।क्युकी ब्रह्मचर्य का अर्थ ऊपर बताया जा चूका है.ईश्वर कि तरह आनंद पूर्वक आचरण करना।सम्बन्धो को स्थापित करते समय भी आप अनद का अनुभव करे न कि भय का.क्युकी आनंद से सृजन होता है और भय से नाश.ये आनंद आपकी ऊर्जा को खंडित होने ही नहीं देगा।हा किन्तु गुरु से निषिद्ध दिनों को पहले जान  लेना चाहिए।

अब दूसरा उपाय ये है कि सम्बन्धो के तुरंत बाद स्नान करना अनिवार्य है,और ये आपको सर से लेकर पैर तक स्नान करना होगा स्त्री हो या पुरुष दोनों के लिए ये नियम समान  है.और अगले दिन यदि नवार्ण मंत्र कि साधना चल रही है तो प्रायश्चित स्वरुप नवार्ण मंत्र कि ही २१ माला कर इष्ट को समर्पित कर दे.इसे आप हर दोष से दूर हो जायेंगे।स्मरण रखे आपने  कोई अपराध नहीं किया है.साधना के मध्य आप भोजन करते है,भूके नहीं रह  सकते इसलिए आप सात्विक भोजन करते है.नग्न होकर साधना नहीं कर सकते इसलिए ढीले वस्त्र धारण करते है जिससे कि ऊर्जा के प्रवाह में कोई बाधा  न आये,रात्रि में साधना के कारण सो नहीं पाते है तो दिन में सोकर उसकी पूर्ति करते है.अर्थात आपने हर बात का विकल्प ढूंढ रखा है इस कारण आप साधना के मध्य भोजन,वस्त्र तथा निद्रा को लेकर विचलित नहीं होते है.किन्तु देहिक सम्बन्धो कि बात आते ही ज्ञानी मौन हो जाते है.हो सकता है कि कभी उसके विकल्प पर वे विचार करना ही नहीं चाहते है.किन्तु इस विचलन से मुक्ति के भी उपाय है जिससे कि आप तनाव मुक्त हो साधना कर सकते है.

अब अगले उपाय कि और आते है.अब तक हमने बताया कि सम्बन्धो के बाद तुरंत स्नान करने से दोष समाप्त हो जाता है.साथ ही प्रायश्चित माला का विधान भी बता दिया है.

अब कई लोगो कि समस्या है साधना के मध्य स्वप्न दोष कि,मित्रो अगर ऐसी कोई स्थिति बनती भी है तो घबराने कि आवश्यकता नहीं  है.वीर्य के कारण खोयी शक्ति को वीर्य ही लौटा सकता है.रस क्षेत्र में इसके लिए दिव्याकर्षण गोलक का प्रयोग किया जाता है.क्युकी ये शिव वीर्य अर्थात पारद से निर्मित होता है. जो अत्यंत दुष्कर कार्य है.कुछ विशेष क्रियाओ के साथ ही पारद के संस्कार किये जाते है और अघोर तथा रस तंत्र के मंत्रो के माध्यम से गोलक का निर्माण कर दिया जाता  है.इसके निर्माण कि विधि भी भविष्य में शीघ्र ही ब्लॉग में आपके समक्ष रखी जायेगी,ताकि रस क्षेत्र के ज्ञानी उसका निर्माण स्वयं कर सके.

सम्बन्धो को स्थापित करने के बाद या स्वप्न दोष के बाद,जो ऊर्जा जायेगी उसे ये गोलक  पुनः आपके अंदर स्थापित कर देगा।दोष मुक्ति से कैसे बचा जाये ये हमने ऊपर बताया है.अब बताते है कि कैसे ब्रह्माण्ड में विलीन हो चुकी ऊर्जा को पुनः प्राप्त किया जा सकता है.

प्रातः दिव्याकर्षण गोलक को इष्ट के चरणो में रखे और उसी मंत्र कि एक माल करे जिस मंत्र कि आपकी साधना चल रही है.माला पूर्ण होने के बाद गोलक को सीधे हाथ में रखे तथा इष्ट से प्रार्थना करे कि.देहिक सम्बन्धो के कारण  या स्वप्न दोष के कारण  मेरी जितनी भी ऊर्जा का ह्रास हुआ है.प्रभु इस इस शिव वीर्य से निर्मित दिव्याकर्षण गोलक के माध्यम से मुझे पुनः लौटा दे.प्रार्थना के बाद गोलक को आज्ञा चक्र के स्थान पर रखे और सम्बंधित मंत्र को २१ बार पड़े,इसके बाद गोलक को सहस्त्रार चक्र के स्थान  पर रखे और पुनः २१ बार मंत्र का जाप करे.इसके बाद गोलक को पीले वस्त्र में बांध  दे और इष्ट के चरणो में रख दे.अब जब भी आप रात्रि में या दिन में शयन करे तब इसे अपने तकिये के निचे रख ले मात्र एक घंटे में ही ये गोलक आपकी खोयी  ऊर्जा का बृह्मांड से आकर्षण कर आपके सहस्त्रार में पुनः स्थापित कर देगा।इस प्रकार ये क्रिया पूर्ण हो जाती है.इस गोलक पर सेकड़ो प्रयोग हो सकते है पर उनकी चर्चा फिर कभी होगी।

मित्रो आपको कई उपाय मैंने बताये  साथ ही पूरा प्रयत्न किया है कि आपको ब्रह्मचर्य रुपी भय से मुक्त कर सकू,जिसके भय से आप साधना करते ही नहीं है. आशा करता हु कि आज आपकी इस दुविधा का भी में समाधान करने में सफल हुआ हु.तो मित्रो साधना अवश्य  करे,परन्तु  भय में जीकर नहीं।

आनंद के साथ करे,ताकि आप अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सके.

साथ ही एक बात और स्पष्ट करना चाहूंगा कि उपरोक्त सभी नियम एवं छूट केवल पति पत्नी के मध्य दी गयी है.पर स्त्री गमन करने वाले पुरुष तथा पर पुरुष के साथ गमन करने वाली स्त्री इनका प्रयोग न करे क्युकी ऐसा निन्दित कार्य करने वालो को सदा ईश्वर के कोप का पात्र बनना पड़ता है ऐसो को  न कभी कृपा मिली और न ही मिलेगी।


जय माँ 

अन्य जानकारी के लिए मेल करे 

pitambara366@gmail.com

4 comments:

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  2. 🔯 !! श्री सिद्धनाथ !! 🔯

    🙏 !! जय महाकाली !! 🙏

    मुझे बहुत अच्छा महसूस हुआ आपके ब्लॉग पर जानकारी पढकर...
    आप का दिन मंगलमय हो. 🙏🙏🙏

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  3. Wah ji kya baat hai पूर्ण सत्य कहा अपने कि

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