Saturday 21 December 2013

सदगुरु कि आवश्यकता

कुछ लोगो ने प्रश्न पूछा कि,

जिसने दीक्षा ना ली हो, परन्तु व्यक्ति महाविद्या कि साधना  करना चाहता हो और उसे योग्य गुरु कि प्राप्ति न हो रही हो,तो क्या वह महाविद्या आदि कि साधना कर सकता है ?

मित्रो यहाँ आपको स्पष्ट करना चाहूंगा कि साधना तो आप बिना गुरु के भी कर सकते है.परन्तु साधना के मध्य कई ऐसे अनुभव या प्रश्न साधक के समक्ष खड़े होते है,जिनका उत्तर केवल गुरु ही दे पाते है.उदाहरण के तौर पर मान लीजिये,हम गणित का कोई सवाल हल कर रहे है.और आपने  देखा होगा कि पुस्तक में कुछ हल उदाहरण के तौर पर दिए जाते है,कुछ सूत्र भी दिए  जाते है,जिससे आप समझ सके कि आपको अमुक सवाल कैसे हल करना है.कई बार ऐसा होता था कि हमें शिक्षक कह देते थे कि ये सवाल घर से हल करके लाना,सही हो या गलत हो पर करके अवश्य लाना नहीं आएगा तो में बताऊंगा।

फिर हम घर पर उन्ही उदाहरण तथा सूत्र को आधार बनाकर सवाल हल करते थे.कुछ बच्चे सही हल करते थे तो कुछ गलत हल करते थे.और अधिकतर १०० में से ९० विद्यार्थी गलत ही करते थे.अब प्रश्न उठता है कि,सभी ने उदाहरण को देख कर सामान सूत्र लगाकर सवाल किया फिर १० के सही उत्तर और ९० के गलत क्यों ?

मेरा भी गलत ही होता था :-(

तब शिक्षक महोदय समझाते थे कि अपने सूत्र तो सही लगाए  है परन्तु जहा लगाने थे वहा  नहीं लगाए  है.या तो उन्हें पहले लगा दिया है या बाद में जिससे कि सही विधि पता होते हुए भी तुम्हारा उत्तर गलत आ रहा है.और फिर हमारा उत्तर भी सही आता था :-)

क्युकी गलती कहा हो रही थी शिक्षक ने समझा दिया था.अब तक किताब में लिखे सूत्र और उदाहरण हम अपनी बुद्धि से समझ रहे थे और वही कर रहे थे जो समझ आ रहा था.किन्तु अब हमने सवाल,सूत्र तथा उदाहरण को शिक्षक कि बुद्धि से समझने का प्रयत्न किया और सफल हुए.

पर ऐसा क्यों हुआ,जबकि हमारे पास किताब थी उसमे उदाहरण था,सूत्र थे जिन्हे देखकर भी हम सवाल हल नहीं कर पाए  किन्तु शिक्षक ने न किताब देखि न सूत्र मात्र सवाल देखा और २ मिनट में हल कर दिया :-\

ऐसा क्या था उनके पास ?

उत्तर वही है बंधू, उनके पास किताब नहीं थी,सूत्र नहीं थे,किन्तु उनके पास अनुभव था वर्षो का अनुभव जो उन्होंने अपने परिश्रम से अर्जित किया था.और यही अनुभव था जिसके माध्यम से उन्होंने आपके सवाल को हल कर दिया।

मित्रो आपने  गणित को सिखने के लिए शिक्षक का आश्रय लिया,जबकि ये गणित तब तक ही काम आएगा जब तक आप जीवित है.और जीवन अधिक से अधिक १०० साल जी पाएंगे आप.अब आप स्वयं ही बताए  कि मात्र कुछ वर्ष यहाँ रहना था कुछ वर्ष जीवन कि यात्रा करनी थी उसमे भी आपको एक शिक्षक कि आवश्यकता पढ गयी.

तो सोचिये कि मृत्यु के बाद तो आपकी अनंत कि यात्रा आरम्भ होगी तो क्या वहा आपको सदगुरु कि आवश्यकता नहीं होगी ?

होगी अवश्य होगी, क्युकी वही जीवन कि सबसे कड़ी परीक्षा ली जाती है.यदि गुरु से उसका अनुभव और ज्ञान पहले से ही ले लिया जाए  तो यात्रा अत्यंत सरल हो जाती है.

तो अब तक आपने पड़ा कि जीवन में सद्गुरु कि कितनी महत्वता है.उनके बिना सब कुछ असम्भव सा प्रतीत होगा आपको।अब आपको उत्तर दिया जा रहा है आपके सवाल का कि क्या बिना गुरु के महाविद्या कि साधना या मंत्र जाप किये जा सकते है ?

जी हा किये जा सकते है,माँ पर तो सबका सामान अधिकार है,कोई भी साधना या मंत्र जाप कर सकता है.किन्तु समस्या वही उत्पन्न होगी आरम्भ में तो किताबे बड़ा अच्छा साथ निभाएगी जहा से आप साधना के सूत्र ले रहे है.किन्तु जैसे जैसे आप साधना मार्ग पर आगे बढ़ते जायेंगे। नाना प्रकार के प्रश्न तथा दुविधा आपको घेरेंगी, तब उनका निवारण कौन करेगा ?

और प्यास लगने पर कुआ तो मुर्ख ही खोदते है,ज्ञानी तो सदा प्यास बुझाने कि व्यवस्था करके रखते है.हा ये बात सही है है कि आप नित्य पूजन में किसी भी महाविद्या कि साधना या मंत्र जाप आदि कर सकते है.किन्तु बात जब पूर्णता प्राप्त करने कि हो तब सद्गुरुदेव कि अत्यंत आवश्यकता है. नित्य पूजन करना या सामान्य रूप से मंत्र जाप करना,प्रथम या द्वितीय कक्षा पड़ने जैसा है जो कि हमने अपनी ही मस्ती में उत्तीर्ण कर ली थी.और कोई विपदा आदि ने हमें नहीं घेरा।

किन्तु महाविद्या को पूर्ण रूप से प्राप्त करने कि जब बात हो जब उन्हें अपने भीतर उतार लेने कि बात हो तब गुरु कि आवश्यकता पड़ती ही है,क्युकी ये प्रथम कक्षा नहीं आप मास्टर डिग्री या पी.एच.डी  करने जा रहे है जहा कोचिंग या अन्य प्रोफेसेर कि नितांत आवश्यकता है.सद्गुरु तत्त्व भी महाविद्या साधना में जिसे आप पूर्णता से करना चाहते है उसमे प्रोफ़ेसर कि भूमिका निभाते है.आशा करता हु आपको समझ आया होगा।

अब चलते एक और प्रश्न कि और कि योग्य गुरु कि प्राप्ति नहीं हो रही है तब क्या करे ?

मित्रो योग्य गुरु है कौन ? आपने  भी तो कोई मापदंड निश्चित किया होगा न कि योग्य गुरु ऐसा होना चाहिए।

तो आपका उत्तर होगा जिसके पास ढेर सारी  सिद्धियाँ हो,ढेर सारी साधनाए  हो,जो उच्च कोटि का हो.मित्रो सिद्धि तो रावण के पास भी थी,कंस के पास भी थी,सुरसा के पास भी थी,हिरण्यकश्यप,हिरण्याक्ष आदि कई कई दैत्यों के पास भी थी.तो क्या ये सब आपकी दृष्टि में गुरु हो जायेंगे ? नहीं ना ?

सद्गुरु का चयन उसकी सिद्धि के आधार पर नहीं किया जाता है, सद्गुरु का चयन उनके ज्ञान के आधार पर किया जाता है.सबसे बड़ी बात ये है कि,जिस गुरु को सुनकर,पड़कर तुरंत आपके भीतर एक शांति स्थापित हो जाए  वही आपके गुरु हो सकते है.क्युकी शांत मन में ही साधना के अंकुर प्रस्फुटित होते है.गुरु का चयन कभी सिद्धि के आधार पर ना करे,अन्यथा भटक जाओगे।

आज मेरे जितने भी शिष्य है वो मेरे ज्ञान और उनके प्रति मेरा जो समर्पण है उसका सम्मान करते है.उन्हें मेरी सिद्धि से कोई लेना देना नहीं है.क्युकी वे जानते है कि किसी कि सिद्धि दूसरे का कल्याण नहीं करेगी।गुरु का केवल ज्ञान और शिष्यों के प्रति जो समर्पण होता है वही शिष्य का निर्माण करता है.

आगे क्या लिखू ? क्युकी सद्गुरु विषय ही ऐसा है कि संसार कि हर ऊँगली थक जायेगी लिखते लिखते परन्तु इस तत्त्व का  तनिक भी वर्णन नहीं हो पायेगा।

और वैसे भी जो ज्ञानी है मेरे इतना लिख देने से ही समझ जायेंगे,अति ज्ञानियों का तो मेरे पास भी कोई हल नहीं है.अतः अपनी बुद्धि और विवेक अनुसार सद्गुरु शरण में जाये और अपने जीवन को नविन गति प्रदान करे.झुक जाओ किसी के कदमो में एक बार जाकर पूरी शिद्दत के साथ पूरी मोहब्बत के साथ,फिर देखना वो गुरु तत्त्व तुम्हे किसी और के आगे झुकने नहीं देगा तुम्हारे मस्तक को गर्व के साथ संसार में उचा करवा देगा।इस परम पवित्र गुरु तत्त्व के बारे में तो बस इतना ही कहूंगा।

तू देखे या न देखे मुझको ये तेरी मर्जी 
में तुझको देखता हु हर वक़्त बंदगी में। 

जगदम्ब प्रणाम  


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