Wednesday 22 January 2014

रक्त मातंगी प्रयोग


साधना मार्ग में प्रत्येक साधक के जीवन में कोई न कोई महाविद्या महत्व रखती ही है,वैसे तो शक्ति के किसी भी सवरूप में कोई भेद नहीं समझना चाहिए,क्युकी माँ का तो हर स्वरुप ही कल्याणकारी है.परन्तु हर साधक को कोई एक ऐसा महाविद्या तत्त्व होता है जो अपनी और अधिक आकर्षित करता है.किसी को तारा अपनी और आकर्षित करती है तो किसी को महाकाली आकर्षित करती है.दस महाविद्या में से भगवती मातंगी भी अपना एक प्रमुख स्थान रखती है.मातंगी साधना मूल रूप से साधक गृहस्थ सुख प्राप्ति हेतु तथा तथा गृहस्थी में आ रहे संकटो के निवारण हेतु करते है.परन्तु इनकी शक्ति यही समाप्त  नहीं हो जाती है,हर महाविद्या किसी भी कार्य को पूर्ण रूप से करने में सक्षम है,तथा बृह्मांड पर अपना पूर्णरूपेण अधिकार रखती है.माँ मातंगी के कई स्वरुप है हर महाविद्या कि तरह इनके भी भिन्न भिन्न स्वरूपों कि आराधना भिन्न भिन्न मार्गो से कि जाती है.जैसे अघोर मातंगी,अघोरेश्वरी मातंगी,रौद्र मातंगी,रक्त मातंगी,कौल मातंगी,त्रिशला मातंगी और भी अन्य स्वरुप है भगवती मातंगी के जिनकी आराधना तथा साधना साधक करते आये है.और भविष्य में भी ब्लॉग तथा पत्रिका के माध्यम से माँ के अन्य स्वरूपों पर प्रकाश डालने का प्रयत्न किया जायेगा।आज हम चर्चा करेंगे भगवती मातंगी के " रक्त मातंगी " स्वरुप कि.मित्रो माँ का ये स्वरुप साधक के जीवन से समस्त पापो का नाश कर उसका भाग्योदय करता है.साधक के समस्त शत्रु माँ कि कृपा से निस्तेज हो जाते है.साधक के स्थिर जीवन को माँ कि कृपा से एक गति प्राप्त होती है.साधक कि प्रत्येक कामना को माँ पूर्ण करती है.वैसे माँ के इस स्वरुप कि भी कई साधनाये है.परन्तु आज यहाँ एक लघु प्रयोग दिया जा रहा है,जो कि मात्र एक दिवस में ही पूर्ण हो जाता है,तथा साधक को माँ कि कृपा प्रात होती है.और इस साधना में आपको अधिक परिश्रम भी नहीं करना होता है.ये साधना आप मातंगी सिद्धि दिवस,कृष्णपक्ष कि अष्टमी,किसी भी नवमी,या शुक्रवार को कर सकते है.साधना का समय होगा रात्रि १० के बाद.साधक स्नान कर लाल वस्त्र धारण करे तथा लाल आसन पर उत्तर या पूर्व कि और मुख कर बैठ जाये।सामने भूमि पर एक बजोट स्थापित करे उस पर लाल वस्त्र बिछाकर एक कुमकुम मिश्रित अक्षत कि ढेरी बनाये और उस पर एक गोल सुपारी स्थापित कर दे सुपारी को भी कुमकुम से रंगकर ही स्थापित करे.इस साधना में लाल रंग का ही महत्व है अतः सभी वस्तु जहा तक सम्भव हो लाल ही ले.सर्व प्रथम सद्गुरुदेव का सामान्य पूजन करे,फिर गणपति पूजन करे.इसके बाद एक माला निम्न मंत्र कि करे मूंगा माला से.

ॐ हूं भ्रं हूं मतंग भैरवाय नमः 

इसके पश्चात् सुपारी का माता मातंगी मानकर पूजन करे.कुमकुम,हल्दी,सिंदूर,अक्षत,रक्तपुष्प आदि अर्पित कर माँ का सामान्य पूजन करे.सम्भव हो तो माँ को लाल रंग कि ही मिठाई प्रसाद रूप में अर्पित करे.तील के तेल का दीपक प्रज्वलित करे.इसके बाद " ॐ ह्रीं मातंगी ह्रीं फट " २१ बार पड़कर कुमकुम मिश्रित अक्षत भगवती को अर्पित करे,एक बार मंत्र पड़े और अक्षत अर्पित करे इस प्रकार २१ बार अक्षत अर्पित करे.इस क्रिया के संपन्न हो जाने  के बाद आप निम्न मंत्र कि कम से कम २१ माला मूंगा माला से जाप करे.इससे अधिक भी किया जा सकता है.

ॐ ह्रीं हूं ह्रीं रक्त मातंगी रक्तवर्णा रक्त मातंग्यै फट 

माला जाप के बाद घी में अनार के दाने,कुमकुम,तथा नागकेसर मिलाकर  कम से कम १०८ आहुति प्रदान करे.और माँ से ह्रदय से प्रार्थना कर आशीर्वाद मांगे।प्रसाद परिवार में सभी को दिया जा सकता है.अगले दिन लाल वस्त्र,अक्षत,सुपारी विसर्जित कर दे,माला अन्य साधनाओं  में काम  में ली जा सकती है.इस प्रकार भगवती रक्त मातंगी कि ये लघु साधना संपन्न होती है.पूर्ण समर्पण और विश्वास से कि गयी साधना कभी निष्फल नहीं जाती है.और एकाग्रता तो सर्वोपरि है ही.आप सभी भगवती कि साधना को कर अपने जीवन को सफल बनाये इसी कामना के साथ,

जय अम्बे 



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pitambara366@gmail.com.

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