चंडिका प्रयोग
( ऊर्जा प्राप्ति का तीव्र विधान )
जो सभी मनुष्यों में शक्ति निवास करती है,उस शक्ति अर्थात जगदम्बा को हमारा कोटि कोटि प्रणाम।
शक्ति अर्थात ऊर्जा , वो ऊर्जा जिससे ये समस्त संसार चलायमान है.जिसके बिना ना तो हमारा अस्तित्व है ना ही इस संसार का.जिसकी कृपा के बिना बीज से अंकुर तक नहीं फुट सकता,तो हम मनुष्यों का जीवन चलना तो दुर् कि बात है.
यही ऊर्जा शक्ति हमें साधनाओं से प्राप्त होती है.वैसे तो हर मनुष्य में जन्म से ही ऊर्जा विद्यमान होती है.परन्तु वो केवल उतनी ही होती है.जितनी एक जीवन जीने के लिये आवश्यक होती है.और जीवन को जीने कि ऊर्जा तो हम भोजन से भी प्राप्त कर लेते है.किन्तु जहा साधनात्मक ऊर्जा कि बात आती है.वहाँ अधिकतर मनुष्य स्वयं को ऊर्जाहीन पाते है.हम जितने भी कार्य करते है,जैसे भोजन करना,स्नान करना,चलना,सोना और भी जो दैनिक कार्य है,इन सभी को करने में ऊर्जा कि आवश्यकता लगती ही है.और साथ ही इन सभी कार्यो में सतत देहिक ऊर्जा का प्रयोग होता रहता है.और इस ऊर्जा कि पूर्ति हम भोजन के माध्यम से पुनः कर लेते है.
किन्तु साधनात्मक ऊर्जा कि पूर्ति भोजन से नहीं कि जा सकती।चक्रो को ऊर्जा भोजन से नहीं अपितु मंत्रो तथा ध्यान से प्राप्त होती है.अगर एक कटु सत्य कहु तो मनुष्य अपनी देहिक ऊर्जा का इतना नाश नहीं करता है,जितना कि वो अपने भीतर स्थापित चक्रो कि तथा अध्यात्मिक ऊर्जा का नाश कर देता है. जब आप जूठ बोलते है,किसी को अपशब्द बोलते है,किसी के प्रति नकारात्मक भाव मन में लाते है.या किसी कि निंदा करते है,तब तीव्रता के साथ आपकी साधनात्मक ऊर्जा का नाश होता है.यही कारण है कि विद्वानो ने सदा कहा है कि साधना काल में यथा सम्भव मौन रहे और इष्ट का चिंतन करते रहे.ऐसा करने से आपकी ऊर्जा में वृद्धि होती है.और ऊर्जा के नाश होने कि सम्भावना कम हो जाती है.जिस प्रकार देहिक ऊर्जा के ना होने से देह कार्य करना बंद कर देती है.उसी प्रकार साधक में साधनात्मक ऊर्जा ना हो या उसके चक्र ऊर्जाहीन हो जाये तो,उसकी साधनाये सफल नहीं हो पाती है.तथा साधना काल में भी उसका चित्त स्थिर नहीं हो पाता है.साधना में एकाग्रता और सफलता प्राप्ति के लिए एक साधक में साधनात्मक ऊर्जा का होना अत्यंत आवश्यक है.इसलिए में बार बार कहता हु कि अधिक से अधिक साधक को इष्ट मंत्र करते रहना चाहिए तथा व्यर्थ कि बातो से बचना चाहिए।ताकि उसका आतंरिक विकास होता रहे.बुद्धि के घोड़ो कि लगाम खीचकर रखना चाहिए तथा उन्हें अपने इष्ट कि और बढ़ाते रहना चाहिए।अन्यथा ऊर्जा का नाश होगा ही.आज हम आपको चण्डिका प्रयोग दे रहे है.इस प्रयोग के माध्यम से साधक अपने भीतर साधनात्मक ऊर्जा को बड़ा सकता है.इस प्रयोग के माध्यम से साधक के सभी चक्रो में एक विशेष ऊर्जा का संचार होता है,जिसके माध्यम से वो साधना मार्ग में प्रगति प्राप्त करता है.यह प्रयोग आप किसी भी कृष्ण पक्ष की अष्टमी,पूर्णिमा अथवा किसी भी मंगलवार की रात्रि ११ बजे के बाद आरम्भ कर सकते है. साधक स्नान कर लाल वस्त्र धारण करे तथा लाल आसन पर उत्तर की और मुख कर बैठ जाये।अपने सामने भूमि पर ही एक लाल वस्त्र बिछा दे.अब इस पर कोई भी मिटटी का घड़ा स्थापित करे,साधक चाहे तो स्टील का लोटा अथवा ताम्बे का लोटा भी स्थापित कर सकता है. अब सर्व प्रथम इस लोटे के अंदर पांच सुपारी,५ लौंग,और पांच इलाइची रखे और इनके ही साथ रखे शिव शक्ति महाअघोर कवच.ये सभी वस्तुए कवच के साथ एक लाल वस्त्र में बांधकर लोटे में रखना है.अब ऊपर से इस पात्र को अक्षत से भर दीजिये।इसके बाद इस पात्र पर एक ऐसी प्लेट या कोई कटोरी रखे जिससे की ये पूरी तरह ढक जाये।फिर इस कटोरी में भी अक्षत भरे और इस पर सिद्धिप्रद रुद्राक्ष रख दीजिये।ये रुद्राक्ष आपको कवच के साथ ही भेजा गया था.ये क्रिया पूर्ण हो जाने के बाद पात्र का सामान्य पूजन करे.कुमकुम हल्दी अक्षत अर्पित करे.तथा पात्र के समक्ष ही कोई भी मिष्ठान्न रखे.घृत अथवा तेल का दीपक प्रज्वलित करे. माँ चण्डिका से प्रार्थना करे की इस साधना के फल स्वरुप मुझमे साधनात्मक ऊर्जा एवं शक्ति का विकास हो.इसके बाद साधक मूंगा माला अथवा रुद्राक्ष माला से,निम्न मंत्र की २१ माला संपन्न करे.
ॐ स्त्रीं ह्रीं श्रीं प्रचंड चण्डिके हूं हूं हूं ऐं फट
Om Streem Hreem Shreem Prachand Chandike Hoom Hoom Hoom Aim phat
जब जाप पूर्ण हो जाये तब साधक थोड़ा कुमकुम लेकर पानी में गिला कर ले और उपरोक्त मंत्र को ही पड़ते हुए पात्र पर ११ बिंदी कुमकुम की लगाये।तथा पुनः प्रार्थना करे.तथा कम से कम सीधे होकर ५ मिनट तक आसन पर ही बैठे रहे और पुनः मंत्र का मानसिक जाप करे.इसके बाद साधक प्रसाद स्वयं वही बैठे बैठे खा ले.इस प्रकार साधना ८ दिनों तक करे.इस साधना में हवन की कोई आवश्यकता नहीं है.परन्तु साधक चाहे तो यथा संभव आहुति प्रदान कर सकता है.ऐसा करने से मंत्र में चैतन्यता ही आती है.८ दिन बाद रुद्राक्ष तथा कवच को सुरक्षित रख ले.अक्षत और लाल वस्त्र किसी मंदिर में रख दे लौंग सुपारी तथा इलाइची को किसी पीपल वृक्ष के निचे रखे आये.यदि आपने मिटटी की मटकी का प्रयोग किया है तो उसे भी किसी मंदिर में दान कर दे.यदि ताम्र पात्र का प्रयोग किया है तो धोकर पुनः प्रयोग किया जा सकता है.सभी साधको को समय समय पर इस प्रयोग को करते रहना चाहिए जिससे की उनकी साधनात्मक ऊर्जा का विकास होता रहे.आप सभी सदा प्रसन्न रहे इसी कामना के साथ.
जय अम्बे
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Om Streem Hreem Shreem Prachand Chandike Hoom Hoom Hoom Aim phat
जब जाप पूर्ण हो जाये तब साधक थोड़ा कुमकुम लेकर पानी में गिला कर ले और उपरोक्त मंत्र को ही पड़ते हुए पात्र पर ११ बिंदी कुमकुम की लगाये।तथा पुनः प्रार्थना करे.तथा कम से कम सीधे होकर ५ मिनट तक आसन पर ही बैठे रहे और पुनः मंत्र का मानसिक जाप करे.इसके बाद साधक प्रसाद स्वयं वही बैठे बैठे खा ले.इस प्रकार साधना ८ दिनों तक करे.इस साधना में हवन की कोई आवश्यकता नहीं है.परन्तु साधक चाहे तो यथा संभव आहुति प्रदान कर सकता है.ऐसा करने से मंत्र में चैतन्यता ही आती है.८ दिन बाद रुद्राक्ष तथा कवच को सुरक्षित रख ले.अक्षत और लाल वस्त्र किसी मंदिर में रख दे लौंग सुपारी तथा इलाइची को किसी पीपल वृक्ष के निचे रखे आये.यदि आपने मिटटी की मटकी का प्रयोग किया है तो उसे भी किसी मंदिर में दान कर दे.यदि ताम्र पात्र का प्रयोग किया है तो धोकर पुनः प्रयोग किया जा सकता है.सभी साधको को समय समय पर इस प्रयोग को करते रहना चाहिए जिससे की उनकी साधनात्मक ऊर्जा का विकास होता रहे.आप सभी सदा प्रसन्न रहे इसी कामना के साथ.
जय अम्बे
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